दिल्ली पुलिस को देश की सर्वोच्च अदालत ने “वोट फॉर कैश” मामले में सुस्ती दिखाने पर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि जांच में मुस्तैदी दिखाई जाए और पुलिस यह बताए कि सांसदों को दी गई रकम कहां से आई। जांच को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने और अंतिम रिपोर्ट देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को तीन हफ्ते की मोहलत दी है। जस्टिस आफताब आलम और आर.एम लोढ़ा की बेंच ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि एक मामूली से बिचौलिए को संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचाने की छूट दी गई। बेंच ने दिल्ली पुलिस से कहा, ' आप आधे अधूरे मन से कार्रवाई कर रहे हैं। आपको इस मामले में तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। ' गौरतलब है कि 2008 के नोट फॉर वोट मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की शुरुआती रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में कोई नेता शामिल नहीं है। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की जांच रिपोर्ट देने के लिए 40 दिन की मोहलत मांगी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर असंतोष जताते हुए 3 हफ्ते के भीतर उसे फाइन रिपोर्ट देने को कहा है। शीर्ष अदालत ने यह उम्मीद जताई कि दिल्ली पुलिस इस मामले में सही और निष्पक्ष जांच करेगी।
दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को वोट के बदले नोट केस में जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में सौंपी थी। इसमें उसने सुहैल हिंदुस्तानी और संजीव सक्सेना को गिरफ्तार किए जाने के अलावा अमर सिंह, रेवती रमण और अशोक अर्गल से पूछताछ की जानकारी दी थी। बताया जा रहा है कि पुलिस ने यह भी कहा था कि जांच से इसमें किसी नेता के शामिल होने के सबूत नहीं मिल रहे हैं। दिल्ली पुलिस पहले भी कह चुकी है कि अमर सिंह या रेवती रमण ने बीजेपी सांसदों को रकम देने के लिए सुहैल हिंदुस्तानी से संपर्क नहीं किया था।
गौरतलब है कि बीजेपी सांसदों को घूस दिए जाने की कोशिश के तीन साल पुराने इस मामले में दिल्ली पुलिस ने कोई खास कार्रवाई तक नहीं की थी। 15 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली पुलिस से तेजी से जांच करने का निर्देश दिया था।
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