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Tuesday, August 20, 2013
Police Festival: पुलिस न्यूज़ के सभी पाठक पुलिस मित्रों को 'रक्षाबंधन' की शुभकामनाएं। जानिए मुहूर्त.
रक्षा बंधन का पर्व एक ऐसा पर्व है, जो धर्म और वर्ग के भेद से परे भाई-बहन के स्नेह की अटूट डोर का प्रतीक है। बहन द्वारा भाई को राखी बांधने से दोनों के मध्य विश्वास और प्रेम का जो रिश्ता बनता है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। रक्षा बंधन की पर्व का सबसे खूबसूरत पहलू यही है कि यह पर्व धर्म ओर जाति के बंधनों को नहीं मानता। अपने इसी गुण के कारण आज इस पर्व की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है। कोई भी कार्य शुभ समय में किया जाता है, तो उस कार्य की शुभता में वृ्द्धि होती है। भाई-बहन के रिश्ते को अटूट बनाने के लिये इस राखी बांधने का कार्य शुभ मुहूर्त समय में करना चाहिए।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्तः
रक्षाबंधन 20-8-2013 को सुबह 10 बजकर 30 मिनट से दिन के 1 बजकर 30 मिनट के मध्य अपने भाइयों कि कलाई पर रक्षा सूत्र बांधे यह समय लाभ और अमृत की चौघड़िया का है शाम को 3 बजे से लेकर 4 बजकर 30 मिनट तक शुभ चौघडिया है। इस समय भी रक्षा सूत्र बांधे। कुछ लोग 21 अगस्त 2013 को रक्षा बंधन का पर्व मनाएंगे। उनके लिए मेरी राय है कि वे लोग बुधवार को सुबह 7 बजकर 26 मिनट के पहले सुबह भद्रा मुक्त समय में भाइयों की कलाई पर राखी बांधे। 21 तारीख की सुबह 7 बजकर 26 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। अर्थात 21 को सुबह 7 बजकर 26 के पहले त्योहार मनाये। गणेशआपा वाराणसी पंचांगानुसार, अन्य पंचांग के अनुसार विभिन्न शहरो के समय में 5 से 7 मिनट का अंतर हो सकता है। इस कारण यह समय घट और बढ़ सकता है।
अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा बंधन का कार्य करना शुभ रहता है। शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है। परन्तु भद्रा के पुच्छ काल समय का प्रयोग शुभ कार्यों के के लिये विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
ऐसे मनाया जाता है रक्षाबंधन पर्व
प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक और मिठाई होते हैं। लड़के और पुरुष स्नानादि कर पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। उन्हें रोली या हल्दी से टीका कर चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उनकी आरती उतारी जाती है और तब दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। रक्षाबंधन का अनुष्ठान पूरा होने के बाद ही भोजन किया जाता है। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।
पौराणिक मान्यताओं में भद्रा सूर्य पुत्री यानी शनि की बहन है
किसी शुभ या मंगल कार्य को शुरू करने से पहले पंचांग में भद्रा या विष्टि योग भी देखा जाता है। यह तिथि के आधे भाग करण का ही एक नाम है। वहीं पौराणिक मान्यताओं में भद्रा सूर्य पुत्री यानी शनि की बहन है। जिसके क्रूर स्वभाव पर काबू पाने के लिए ब्रह्मदेव की कृपा से उसे करण में विष्टि नाम से स्थान दिया गया। इसे अशुभ घड़ी भी माना जाता है।
भद्रा योग के दौरान कार्य विशेष शुभ नहीं माने जाते। जिनमें यात्रा, कारोबार, कृषि, मांगलिक कार्य आदि प्रमुख है। वहीं तंत्र, अदालती कार्य या राजनीति सफल होती है। धार्मिक व ज्योतिष मान्यताओं के मुताबिक भद्रा तीन लोकों में घूमने के दौरान जब पृथ्वी पर होती है तो इस स्थिति में अमंगल करती है। भू-लोक में होने की पहचान चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने के द्वारा की जाती है। इसे विष्टिकरण योग भी कहा जाता है। रक्षाबंधन या होलिका दहन के वक्त इस पर विशेष रूप से गौर किया जाता है।
भद्रा 5 घड़ी मुख में, 2 घड़ी कंड में, 11 घड़ी हृदय में, 5 घड़ी नाभि में, 5 घड़ी कटि में और 3 घड़ी पुच्छ में स्थिर रहती है। जब भद्रा मुख में रहती है तब कार्य का नाश होता है। कंड में धन का नाश, हृदय में प्राण का नाश, नाभि में कहल, कटि में अर्थ-भंश होता है तथा पुच्छ में विजय तथा कार्य सिद्धि हो जाती है।
शनि की सगी बहन है भद्रा
भद्रा भगवान सूर्य का कन्या है। सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि की सगी बहन है। यह काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली है। सूर्य भगवान से सोचा इसका विवाह किसके साथ किया जाए। प्रचा के दु:ख को देखकर ब्रह्माजी ने भी सूर्य के पास जाकर उनकी कन्या द्वारा किये गये दुष्कर्मो को बतलाया। यह सुनकर सूर्य ने कहा आप इस विश्व के कर्ता तथा भर्ता हैं, फिर आप कहें। ब्रह्माजी ने विष्टि को बुलाकर कहा- भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो और जो व्यक्ति यात्रा, प्रवेश, मांगल्य कृत्य, रेवती, व्यापार, उद्योग आदि कार्य तुम्हारे समय में करे, उन्हीं में तुम विघ्न करो। तीन दिन तक किसी प्रकार की बाधा न डालो। चौथे दिन के आधे भाग में देवता और असुर तुम्हारी पूजा करेंगे। जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम ध्वस्त कर देना। इस प्रकार से भद्रा की उत्पत्ति हुई। अत: मांगलिक कार्यो में अवश्य त्याग करना चाहिए।
रक्षा बंधन से जुड़ी कहानी:
भगवान विष्णु वामन रूप धारण करके राजा बली के पास आये। उन्होने राजा बली से तीन पग भूमि माँग कर धरती ,आकाश , पाताल को दो पग में ही नाप लिया और तीसरा पग राजा बली के ऊपर रखा और राजा बली से कुछ माँगने के लिये कहा। तो राजा बली ने भगवान् विष्णु से कहा कि आप मेरे यहाँ (पाताल में ) चार मास तक पहरेदार बन कर रहोगे , ऐसा वरदान दीजिये। तब से ही भगवान् विष्णु लक्ष्मी जी को स्वर्ग में ही छोड कर वर्ष में चार मास तक पहरेदार के रूप में रहने लगे। रक्षा बंधन के दिन लक्ष्मी जी राखी लेकर पाताल में गयी। राजा बली को भाई बना कर राखी बांधी। बली ने लक्ष्मी को भेंट के रूप हीरे - मोती देने चाहे तो लक्ष्मी ने कहा कि मुझे भेंट के रूप में हीरे मोती के बजाय मेरे पति को मुझे दे दो। बली ने लक्ष्मी की बात मान कर भगवान विष्णु लौटा दिया। लक्ष्मी विष्णु को अपने साथ लेकर चली गयी।
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