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Wednesday, November 9, 2011
MP Police: Indore: कहां जाएं इंदौर में पुलिसवालों के परिवार, इंदौर पुलिस लाइन के मकानों की हालत खस्ता,
इंदौर पुलिस लाइन में रहने वाले 385 पुलिस परिवार विभाग की मनमानी झेल रहे हैं। यहां मकानों की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए विभाग ने आरक्षक से लेकर सब-इंस्पेक्टर श्रेणी के पुलिसवालों को 400 से लेकर 600 रुपए किराए में मकान ढ़ूंढने को कह दिया। चूंकि शहर में इतने किराए में मकान मिलना संभव नहीं इसलिए मजबूरी में पुलिसकर्मियों ने मकान खाली नहीं किए। उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए विभाग ने उनसे लिखवा लिया कि यदि जर्जर मकानों के कारण कोई दुर्घटना होती है तो इसके लिए जवाबदार वे खुद होंगे न कि विभाग। यह सब तब हो रहा है जबकि पुलिसकर्मियों की इस श्रेणी को मुफ्त आवास उपलब्ध करवाने का नियम है। इंदौर पुलिस के 3 हजार 591 कर्मचारी-अधिकारियों के पास सिर्फ 2 हजार 385 आवास उपलब्ध हैं।
रिजर्व इंस्पेक्टर विक्रमसिंह रघुवंशी इस मामले में सफाई देते हुए कहते हैं कि हमने यहां रहने से कर्मचारियों को रोका था लेकिन उन्होंने ही जिद की। ऐसे में दुर्घटना होने पर वे खुद जिम्मेदार होंगे। दूसरी ओर मकान न होने की स्थिति में बाजार मूल्य के आधार पर किराया देने की फाइल पांच सालों से गृह विभाग में अटकी है जिसकी आड़ में अफसरों को टाला जा रहा है। विभाग में प्रधान आरक्षक भीम बहादुर कहते हैं 500 रुपए किराए में तो झोपड़ी भी नहीं मिलती। इससे ज्यादा किराया दिया तो परिवार को छह लोगों को कैसे पालेंगे। आरक्षक मांगीलाल जाटव के मुताबिक हमसे लिखवा लिया गया है कि दुर्घटना होने पर जिम्मेदारी हमारी होगी। परिवार के सात बच्चों को महंगे किराए के मकान में रखा तो मर-मरकर जीना होगा। इससे तो यहीं रहना बेहतर है।
नाम राशि
आरक्षक 400
प्र. आरक्षक 500
ए.एस.आई 600
एस.आई 600
इंस्पेक्टर 800
अफसर वेतन का 8000000
106 साल पुराने हैं मकान
पुलिस लाइन में बने ज्यादातर मकान १क्५ साल पुराने हैं, जो १9क्५ में बनाए गए थे। हर साल मकानों की कीमत का दो प्रतिशत मेंटेनेंस पीडब्ल्यूडी को दिया जाता था, जिसके आधार पर हर साल रिपेयरिंग की जाती थी। 2004 के बाद पीडब्ल्यूडी ने मेंटेनेंस की यह राशि लेना बंद कर दी और इसके बाद इन मकानों का मेंटेनेंस भी नहीं हुआ।
क्चपुलिस विभाग के कर्मचारी जर्जर घोषित भवनों में रहने के लिए मजबूर क्यों हैं?
बल के मुताबिक मकान कम हैं इसलिए।
क्चतो क्या विभाग को भी उनकी परवाह नहीं है?
हमने समय-समय पर मुख्यालय में मकान भत्ता बाजार मूल्य के अनुसार देने की सिफारिश की है।
क्चजर्जर भवन में रहने वाले पुलिसकर्मियों को ४क्क् से 600 रुपए में किराए का मकान ढूंढने को कहा जा रहा है, यह कैसे संभव है?
हम जानते हैं इंदौर जैसे शहर में यह संभव नहीं है। मगर मुख्यालय से इसी दर पर एचआर दिया जाता है। हम खुद कोई निर्णय नहीं ले सकते।
क्चदुर्घटना पर क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं बनती?
नैतिक रूप जिम्मेदार हमारी ही बनती है। शासन के नियमानुसार तो इन्हें मुफ्त मकान उपलब्ध करवाने का नियम है जो लागू नहीं हो पा रहा है।
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