गांव के ही पूनाराम राजपूत के खेत से सबमर्सिबल पंप की चोरी हुई। थाने में कहा गया कि पहले पंप का नंबर लाओ, फिर एफआईआर होगी। पूनाराम आज तक नहीं समझ पाया कि पंप का नंबर क्या होता है। इसी प्रकार टिबलू के खेत से पैनल बोर्ड और भागवत के खेत से पंप का पाइप चोरी हो गया।
वे भी शिकायत लेकर थाने पहुंचे लेकिन न तो एफआईआर ही हुई और न ही आवेदन लिया गया। इसी तरह के कई पंप चोरी के मामले क्षेत्र में हो चुके हैं, जिसमें एफआईआर नहीं ली जा रही। इसी तरह चोरी के मामलों में प्रार्थी को पावती देकर वापस भेज दिया जाता है।
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Monday, June 13, 2011
CG Police : bilaspur: ना खाता ना बही जो थानेदार कहें, वहीं सही
बिलासपुर.पुलिस विभाग का समाज से जुड़ने का दावा खोखला साबित हो रहा है। एक तरफ आला अधिकारी हर मीटिंग में आम व्यक्ति से अच्छा बर्ताव करने और उन्हें पुलिस से जोड़ने पर जोर दे रहे हैं तो दूसरी तरफ थाने का स्टाफ शिकायत लेकर आने वालों को इस तरह परेशान करते हैं कि वह दोबारा न आने की कसम खा लेता है।
हरि पुलिस की मनमानी का आलम यह है कि बलात घर में घुसकर हथियार से वार कर जेवरात छीनने वालों के खिलाफ सिर्फ मारपीट का मामला दर्ज होता है, जबकि यह लूटपाट का प्रकरण है। चोरी की रिपोर्ट से थाने की बदनामी होती है इसलिए रिपोर्ट न दर्ज हो इसकी पूरी कोशिश होती है।
कोई अड़ ही जाए तो उससे आवेदन लेकर पावती सौंप दी जाती है। वहीं हरि टीआई ऐसे आरोपों को निराधार बता रहे हैं। उनका कहना है कि मामलों में किसी तरह का पेंच फंसा होता है, जिसके कारण ऐसा होता है।
डीबी स्टार को हरि पुलिस की ओर से की जा रही अनियमितताओं को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही थीं।
इन्हीं में से एक शिकायत थी सरगांव के मालिकराम साहू की। मालिकराम के खेत खपरी रोड में है। खेत में ही उसने घर भी बना रखा है। 3 मई की रात करीब साढ़े 8 बजे वह घर में खाना खा रहा था। किसी ने बाहर से आवाज दी। मालिकराम की पत्नी शबाना ने दरवाजा खोला।
तीन युवक घर में घुस आए और पति-पत्नी पर टूट पड़े। उनके हाथ में हंसिया, पेचकस और चाकू था। उन्होंने मालिकराम पर हंसिया और चाकू से वार किया और पत्नी को बुरी तरह से पीटा। उन्हें लहूलुहान कर युवकों ने घर की तलाशी ली। पत्नी के शरीर से जेवरात उतार लिए और पेटी तोड़कर दो हजार रुपए निकाले।
घर में मालिकराम का मंदबुद्धि बेटा भी था, जिसे आरोपियों ने बख्श दिया। लूटपाट के बाद आरोपी घर को बाहर से बंद कर फरार हो गए। घायल मालिकराम ने मोबाइल से फोन कर पड़ोसी को सूचना देकर बुलाया। एक घंटे के भीतर घायल पति-पत्नी हरि थाने पहुंचे। टीआई इशहाक खलखो ने रोजनामचा में शिकायत दर्ज कराई।
उन्हें मुलाहिजा के लिए बिल्हा भेजा गया, जहां गंभीर चोटों को देखकर डॉक्टर ने जिला अस्पताल रिफर कर दिया। वारदात को हुए एक घंटा भी नहीं बीता था लेकिन आरोपियों की घेराबंदी के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। 3 मई की रात से 6 मई की सुबह तक मालिकराम जिला अस्पताल में भर्ती रहा।
अगले दिन 4 मई को मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई। तीन आरोपियों के खिलाफ धारा 294, 506, 323, 34 के तहत जुर्म दर्ज किया गया। मालिकराम की पत्नी के जेवरात आरोपी निकाल कर ले गए थे, जो कि लूटपाट का मामला है।
इसके बाद भी लूट की बात एफआईआर में नहीं लिखी गई। इस तरह लूटपाट जैसे गंभीर अपराध को छिपाकर मामला सिर्फ मारपीट तक सीमित कर दिया गया है। उसने जब एसपी से शिकायत करने की बात कही तो पुलिस वालों ने उसे रोक दिया और मामला जल्द निपटाने का आश्वासन दिया।
प्रार्थी अस्पताल में, फिर भी हो गई एफआईआर
हरि पुलिस ने घायल मालिकराम के अस्पताल से छुट्टी होने का भी इंतजार नहीं किया। वारदात के अगले दिन सुबह 4 मई को दोपहर 12 बजे के आसपास थाने का मुंशी जिला अस्पताल पहुंचा। मालिकराम से बातचीत की और कागजों में दस्तखत करा लिए गए।
वास्तव में यह एफआईआर की कॉपी थी। मालिकराम के दस्तखत के बाद पुलिस ने अपनी ओर से एफआईआर में वारदात की घटना लिख ली। मामले में मारपीट का मामला दर्ज किया गया, जबकि इसमें लूट की घटना भी शामिल थी। प्रक्रिया के तहत अस्पताल में भर्ती होने के कारण मालिकराम का सिर्फ बयान लिया जाना था।
इसके आधार पर एफआईआर होती। वहीं थाने में मौजूद एफआईआर में मालिकराम के दस्तखत हैं। इसका मतलब कि वह थाने पहुंचा था। हकीकत यह है कि वह अगले दिन अस्पताल में था। ऐसी सूरत में किसी भी स्थिति में वह एफआईआर में दस्तखत कराने थाने नहीं पहुंच सकता था। पुलिस की सारी कारगुजारी सिर्फ इसलिए है ताकि किसी भी सूरत में लूटपाट की बात सामने न आ सके।
आजीवन कारावास का प्रावधान
लूट व डकैती की वारदात गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। किसी भी थाना क्षेत्र में इस तरह की वारदात वहां की पुलिस व्यवस्था में भारी चूक को साबित करती है। इस प्रकरण में भी पत्नी के जेवरात जबरदस्ती उतरवा कर आरोपियों द्वारा ले जाना पाया गया है जो कि लूट का मामला है। ऐसे प्रकरण में अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
टीआई के आदेश पर होता है जुर्म दर्ज
हरि थाने में कोई बड़े से बड़ा या छोटे से छोटा प्रकरण भी लेकर जाए तो फौरन एफआईआर नहीं होती है। थाने के स्टाफ को टीआई की ओर से सख्त निर्देश हैं कि उनके आदेश के बिना किसी मामले में एफआईआर न लिए जाए। पहले प्रकरण टीआई तक पहुंचता है इसके बाद उनके निर्देश पर ही प्रकरण दर्ज होता है। यही कारण है कि बहुत से मामलों में पावती थमाई जाती है या मामले को ही पेंडिंग कर दिया जाता है।
हरि पुलिस की मनमानी का आलम यह है कि बलात घर में घुसकर हथियार से वार कर जेवरात छीनने वालों के खिलाफ सिर्फ मारपीट का मामला दर्ज होता है, जबकि यह लूटपाट का प्रकरण है। चोरी की रिपोर्ट से थाने की बदनामी होती है इसलिए रिपोर्ट न दर्ज हो इसकी पूरी कोशिश होती है।
कोई अड़ ही जाए तो उससे आवेदन लेकर पावती सौंप दी जाती है। वहीं हरि टीआई ऐसे आरोपों को निराधार बता रहे हैं। उनका कहना है कि मामलों में किसी तरह का पेंच फंसा होता है, जिसके कारण ऐसा होता है।
डीबी स्टार को हरि पुलिस की ओर से की जा रही अनियमितताओं को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही थीं।
इन्हीं में से एक शिकायत थी सरगांव के मालिकराम साहू की। मालिकराम के खेत खपरी रोड में है। खेत में ही उसने घर भी बना रखा है। 3 मई की रात करीब साढ़े 8 बजे वह घर में खाना खा रहा था। किसी ने बाहर से आवाज दी। मालिकराम की पत्नी शबाना ने दरवाजा खोला।
तीन युवक घर में घुस आए और पति-पत्नी पर टूट पड़े। उनके हाथ में हंसिया, पेचकस और चाकू था। उन्होंने मालिकराम पर हंसिया और चाकू से वार किया और पत्नी को बुरी तरह से पीटा। उन्हें लहूलुहान कर युवकों ने घर की तलाशी ली। पत्नी के शरीर से जेवरात उतार लिए और पेटी तोड़कर दो हजार रुपए निकाले।
घर में मालिकराम का मंदबुद्धि बेटा भी था, जिसे आरोपियों ने बख्श दिया। लूटपाट के बाद आरोपी घर को बाहर से बंद कर फरार हो गए। घायल मालिकराम ने मोबाइल से फोन कर पड़ोसी को सूचना देकर बुलाया। एक घंटे के भीतर घायल पति-पत्नी हरि थाने पहुंचे। टीआई इशहाक खलखो ने रोजनामचा में शिकायत दर्ज कराई।
उन्हें मुलाहिजा के लिए बिल्हा भेजा गया, जहां गंभीर चोटों को देखकर डॉक्टर ने जिला अस्पताल रिफर कर दिया। वारदात को हुए एक घंटा भी नहीं बीता था लेकिन आरोपियों की घेराबंदी के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। 3 मई की रात से 6 मई की सुबह तक मालिकराम जिला अस्पताल में भर्ती रहा।
अगले दिन 4 मई को मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई। तीन आरोपियों के खिलाफ धारा 294, 506, 323, 34 के तहत जुर्म दर्ज किया गया। मालिकराम की पत्नी के जेवरात आरोपी निकाल कर ले गए थे, जो कि लूटपाट का मामला है।
इसके बाद भी लूट की बात एफआईआर में नहीं लिखी गई। इस तरह लूटपाट जैसे गंभीर अपराध को छिपाकर मामला सिर्फ मारपीट तक सीमित कर दिया गया है। उसने जब एसपी से शिकायत करने की बात कही तो पुलिस वालों ने उसे रोक दिया और मामला जल्द निपटाने का आश्वासन दिया।
प्रार्थी अस्पताल में, फिर भी हो गई एफआईआर
हरि पुलिस ने घायल मालिकराम के अस्पताल से छुट्टी होने का भी इंतजार नहीं किया। वारदात के अगले दिन सुबह 4 मई को दोपहर 12 बजे के आसपास थाने का मुंशी जिला अस्पताल पहुंचा। मालिकराम से बातचीत की और कागजों में दस्तखत करा लिए गए।
वास्तव में यह एफआईआर की कॉपी थी। मालिकराम के दस्तखत के बाद पुलिस ने अपनी ओर से एफआईआर में वारदात की घटना लिख ली। मामले में मारपीट का मामला दर्ज किया गया, जबकि इसमें लूट की घटना भी शामिल थी। प्रक्रिया के तहत अस्पताल में भर्ती होने के कारण मालिकराम का सिर्फ बयान लिया जाना था।
इसके आधार पर एफआईआर होती। वहीं थाने में मौजूद एफआईआर में मालिकराम के दस्तखत हैं। इसका मतलब कि वह थाने पहुंचा था। हकीकत यह है कि वह अगले दिन अस्पताल में था। ऐसी सूरत में किसी भी स्थिति में वह एफआईआर में दस्तखत कराने थाने नहीं पहुंच सकता था। पुलिस की सारी कारगुजारी सिर्फ इसलिए है ताकि किसी भी सूरत में लूटपाट की बात सामने न आ सके।
आजीवन कारावास का प्रावधान
लूट व डकैती की वारदात गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। किसी भी थाना क्षेत्र में इस तरह की वारदात वहां की पुलिस व्यवस्था में भारी चूक को साबित करती है। इस प्रकरण में भी पत्नी के जेवरात जबरदस्ती उतरवा कर आरोपियों द्वारा ले जाना पाया गया है जो कि लूट का मामला है। ऐसे प्रकरण में अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
टीआई के आदेश पर होता है जुर्म दर्ज
हरि थाने में कोई बड़े से बड़ा या छोटे से छोटा प्रकरण भी लेकर जाए तो फौरन एफआईआर नहीं होती है। थाने के स्टाफ को टीआई की ओर से सख्त निर्देश हैं कि उनके आदेश के बिना किसी मामले में एफआईआर न लिए जाए। पहले प्रकरण टीआई तक पहुंचता है इसके बाद उनके निर्देश पर ही प्रकरण दर्ज होता है। यही कारण है कि बहुत से मामलों में पावती थमाई जाती है या मामले को ही पेंडिंग कर दिया जाता है।
CG Police : वायरलेस पर रहे एसपी साहब
बिलासपुर.तालापारा में एक युवक को रविवार रात कुछ युवकों ने लाठी, रॉड से पीट-पीटकर मार डाला। घटना के बाद तालापारा में माहौल तनावपूर्ण हो गया। हालात को देखते हुए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। हत्या से आक्रोशित लोगों ने आरोपियों के घर पर पथराव किया।
इन्हें रोकने के लिए पुलिस ने लाठियां भांजी। देर रात तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। हत्या की वजह आपसी रंजिश को बताया जा रहा है।
तालापारा में दो पक्षों में लंबे समय से विवाद चला आ रहा था। रविवार को पीपल चौक के पास रहने वाले इमरान उर्फ बाबा का यहीं के हरीश चेलकर व मनीष चेलकर से किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ था।
रात को मोहम्मद अनीश, अब्दुल तौकीब और रज्जाक दोनों पक्षों में समझौता कराने गए, लेकिन बात नहीं बनी और दोनों पक्ष फिर से उलझ गए। इसके बाद हरीश चेलकर व मनीष चेलकर ने अपने साथियों के साथ मिलकर मो. अनीश पर टांगी, रॉड से हमला कर दिया।
इससे अनीश के सिर पर गंभीर चोंटें आईं और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। घटना के बाद आरोपी भाग निकले। इधर, अनीश की मौत की खबर मिलते ही उसके परिजन व मोहल्लेवाले आक्रोशित हो गए।
कुछ ही देर में घटनास्थल पर भीड़ जुट गई और संदेहियों के घरों मंे पथराव व तोड़फोड़ शुरू कर दी। सूचना मिलने पर सिविल लाइन टीआई सीएल सिंह व जवान मौके पर पहुंचे। पुलिस ने शव को सिम्स भेज दिया।
देर रात तक रहा तनाव
घटना को लेकर देर रात तक पीपल चौक व आसपास तनाव की स्थिति बनी रही। इसे देखते हुए यहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया।
सिविल लाइन थाने में देर रात तक किसी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी और न ही इस मामले में किसी आरोपी की गिरफ्तारी हो सकी थी। बताया गया कि अनीश के खिलाफ मारपीट, बलवा सहित करीब एक दर्जन से अधिक मामले सिविल लाइन थाने में दर्ज हैं।
नहीं रहा पुलिसका खौफ
शहर में बढ़ती आपराधिक घटनाओं की एक वजह पुलिस का घटता खौफ है। पुलिस और जेल के नाम से बना खौफ अब कम होता जा रहा है। यही वजह है कि आए दिन हत्या, लूट जैसी वारदातों में इजाफा हुआ है। इससे साफ है कि अब कानून का खौफ नहीं रहा।
थानों में पुलिस की कार्यप्रणाली से भी अपराध को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं पैसे के बल पर जेल में मिलने वाली सुविधाएं भी इसकी वजह है।
आईजी ने एक माह पहले बिलासपुर रेंज के चारों एसपी की बैठक ली थी और अपहरण व हत्या के मामले में चिंता जताते हुए कार्ययोजना बनाने व ऐसी वारदातों पर काबू पाने पर जोर दिया था। उन्होंने ब्लाइंड मर्डर के मामलों में असफलता पर अफसरों को आड़े हाथों लिया था।
लाठियों से काबू
हत्या के बाद आक्रोशित लोगों ने आरोपियों के घर जाकर तोड़फोड़ करने की कोशिश की। स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया और लाठियां चलाईं। किसी तरह उपद्रवियों को खदेड़ा गया।
वायरलेस पर रहे एसपी
अप्रिय स्थिति से बचने के लिए एसपी अजय यादव पूरे घटनाक्रम के दौरान वायरलेस के जरिए पुलिस अधिकारियों के संपर्क में रहे। वे वायरलेस व फोन पर घटना की जानकारी लेते रहे और अफसरों को निर्देश देते रहे।
वारदातें अनसुलझी
जनवरी से अब तक शहर में ही करीब 20 से अधिक हत्याएं हो चुकीं। सुशील पाठक हत्याकांड समेत इनमें से एक तिहाई मामलांे का पुलिस को सुराग नहीं मिल सका है। पुलिस के लिए ये मामले चुनौती बन चुके हैं।
इन्हें रोकने के लिए पुलिस ने लाठियां भांजी। देर रात तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। हत्या की वजह आपसी रंजिश को बताया जा रहा है।
तालापारा में दो पक्षों में लंबे समय से विवाद चला आ रहा था। रविवार को पीपल चौक के पास रहने वाले इमरान उर्फ बाबा का यहीं के हरीश चेलकर व मनीष चेलकर से किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ था।
रात को मोहम्मद अनीश, अब्दुल तौकीब और रज्जाक दोनों पक्षों में समझौता कराने गए, लेकिन बात नहीं बनी और दोनों पक्ष फिर से उलझ गए। इसके बाद हरीश चेलकर व मनीष चेलकर ने अपने साथियों के साथ मिलकर मो. अनीश पर टांगी, रॉड से हमला कर दिया।
इससे अनीश के सिर पर गंभीर चोंटें आईं और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। घटना के बाद आरोपी भाग निकले। इधर, अनीश की मौत की खबर मिलते ही उसके परिजन व मोहल्लेवाले आक्रोशित हो गए।
कुछ ही देर में घटनास्थल पर भीड़ जुट गई और संदेहियों के घरों मंे पथराव व तोड़फोड़ शुरू कर दी। सूचना मिलने पर सिविल लाइन टीआई सीएल सिंह व जवान मौके पर पहुंचे। पुलिस ने शव को सिम्स भेज दिया।
देर रात तक रहा तनाव
घटना को लेकर देर रात तक पीपल चौक व आसपास तनाव की स्थिति बनी रही। इसे देखते हुए यहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया।
सिविल लाइन थाने में देर रात तक किसी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी और न ही इस मामले में किसी आरोपी की गिरफ्तारी हो सकी थी। बताया गया कि अनीश के खिलाफ मारपीट, बलवा सहित करीब एक दर्जन से अधिक मामले सिविल लाइन थाने में दर्ज हैं।
नहीं रहा पुलिसका खौफ
शहर में बढ़ती आपराधिक घटनाओं की एक वजह पुलिस का घटता खौफ है। पुलिस और जेल के नाम से बना खौफ अब कम होता जा रहा है। यही वजह है कि आए दिन हत्या, लूट जैसी वारदातों में इजाफा हुआ है। इससे साफ है कि अब कानून का खौफ नहीं रहा।
थानों में पुलिस की कार्यप्रणाली से भी अपराध को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं पैसे के बल पर जेल में मिलने वाली सुविधाएं भी इसकी वजह है।
आईजी ने एक माह पहले बिलासपुर रेंज के चारों एसपी की बैठक ली थी और अपहरण व हत्या के मामले में चिंता जताते हुए कार्ययोजना बनाने व ऐसी वारदातों पर काबू पाने पर जोर दिया था। उन्होंने ब्लाइंड मर्डर के मामलों में असफलता पर अफसरों को आड़े हाथों लिया था।
लाठियों से काबू
हत्या के बाद आक्रोशित लोगों ने आरोपियों के घर जाकर तोड़फोड़ करने की कोशिश की। स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया और लाठियां चलाईं। किसी तरह उपद्रवियों को खदेड़ा गया।
वायरलेस पर रहे एसपी
अप्रिय स्थिति से बचने के लिए एसपी अजय यादव पूरे घटनाक्रम के दौरान वायरलेस के जरिए पुलिस अधिकारियों के संपर्क में रहे। वे वायरलेस व फोन पर घटना की जानकारी लेते रहे और अफसरों को निर्देश देते रहे।
वारदातें अनसुलझी
जनवरी से अब तक शहर में ही करीब 20 से अधिक हत्याएं हो चुकीं। सुशील पाठक हत्याकांड समेत इनमें से एक तिहाई मामलांे का पुलिस को सुराग नहीं मिल सका है। पुलिस के लिए ये मामले चुनौती बन चुके हैं।
Rajasthan Police : छोटी-छोटी बात पर आपस में ही उलझ जाते हैं पुलिसकर्मी
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हो चुकी हैं कई घटनाएं
श्रीगंगानगर& किन्हीं दो पक्षों के विवाद में सुलह पर जोर देने वाले पुलिसकर्मी आपसी तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। पिछले चार-पांच सालों में छोटी-छोटी बात पर पुलिसकर्मियों के आपस में झगडऩे की कई घटनाएं हो चुकी हैं। हाल ही सदर और जवाहरनगर थाने के दो कांस्टेबलों में मामूली बात को लेकर हुआ विवाद मारपीट तक पहुंच गया। सदर थाने के कांस्टेबल तेजपाल ने जवाहरनगर थाने के कांस्टेबल जीवराजसिंह के खिलाफ एसपी के शेष & पेज 15
समक्षपरिवाद दायर किया है। घटना की रिपोर्ट सदर थाने के रोजनामचे में भी दर्ज की गई है। सूत्रों के अनुसार पूर्व में भी पुलिसकर्मियों के आपस में उलझने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। यूं तो ज्यादातर मामलों को विभागीय अधिकारी समझाइश कर निपटा देते हैं, लेकिन उनके समय रहते गौर न करने पर कुछ मामले जगजाहिर हो ही गए हैं।
च्च्मैं वर्दी में था। जीवराजसिंह ने मुझसे दुव्र्यवहार किया। इसकी शिकायत एसपी को की है।ज्ज्
तेजपाल, कांस्टेबल, सदर थाना।
च्च्मैंने दुव्र्यवहार नहीं किया। सदर थाने के कांस्टेबल को महज गलतफहमी हुई है।ज्ज्
जीवराजसिंह, कांस्टेबल, जवाहरनगर थाना।
च्च्सदर थाने के कांस्टेबल का शिकायती परिवाद जांच के लिए एसपी कार्यालय में मिला है। बुधवार को कार्यालय से बाहर होने के कारण जांच नहीं हो सकी। अगले दिनों में जांच शुरू की जाएगी।ज्ज्
सरवर अली, सीआई, अपराध सहायक, एसपी कार्यालय, श्रीगंगानगर।
सिरे नहीं
चढ़े सुलह के प्रयास
कांस्टेबल तेजपाल और जीवराजसिंह के बीच सोमवार रात पौने ग्यारह बजे सदर थाने में झगड़ा हुआ। तेजपाल ने आरोप लगाया है कि जीवराजसिंह सिविल ड्रेस में आया, जबकि वह वर्दी में संतरी की ड्यूटी कर रहा था। जीवराज ने एक्सीडेंट होने के बाद आई गाड़ी देखने के लिए थाने के पीछे क्वार्टरों की तरफ जाने की कोशिश की। जब उसने रोककर एचएम से पूछने के लिए कहा तो जीवराजसिंह ने कहा कि मैं जवाहरनगर थाने का थानेदार हूं। तेजपाल का आरोप है कि उसने गालियां निकाली व मारपीट की। पुलिस सूत्रों के अनुसार घटना के बाद दोनों के बीच सुलह कराने के प्रयास भी हुए, जो सिरे नहीं चढ़े।
ये रहे विवाद
ठ्ठ दो महीने पूर्व गणेशगढ़ पुलिस चौकी में शराब पीकर दो कांस्टेबल झगड़ पड़े। मामला बढऩे पर दोनों को लाइन हाजिर कर दिया गया।
ठ्ठ सदर थाने के एक एएसआई पर महिला हवलदार ने उसकी लड़की से दुव्र्यवहार करने का आरोप लगाया। पुलिस विभाग में अंदरूनी तौर पर उठे इस विवाद को शांत करने के लिए एएसआई को थाने से हटाया गया।
ठ्ठ दो साल पहले पुलिस लाइन के आरआई और जवानों के बीच ड्यूटी को लेकर विवाद हुआ। जवानों ने विरोध-प्रदर्शन किया तो अधिकारियों ने आरआई के दो महीने बाद रिटायर्ड होने का वास्ता देकर जवानों को शांत किया।
ठ्ठ वर्ष २०06-07 में बच्चों के खेल के दौरान गेंद घर जाने की बात पर लालगढ़ थाने के संतरी कृष्ण व एचएम गोपीराम झगड़ पड़े। एचएम ने संतरी पर बंदूक तानने का आरोप लगाया, तब एचएम के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हुई थी।
'जब जुबान नहीं खुलती तो हाथ-पैर चलते हैंÓ
मनो रोग विशेषज्ञों का मानना है कि
पुलिस कर्मियों का मिजाज गर्म होने का
कारण लंबी ड्यूटी, ऑफ की व्यवस्था न
होना और लंबे समय तक छुट्टी न मिलना है। राजकीय चिकित्सालय के मनो विशेषज्ञ डॉ. एसके पाटनी के अनुसार अधिकारियों व जवानों के बीच विभागीय कार्य के अलावा घरेलू परिस्थितियों को लेकर संवादहीनता की स्थिति रहती है। ऐसे में लंबे समय तक जुबान न खुलने का नतीजा चिड़चिड़ापन और हाथ पैर चलने के रूप में सामने आता है। डॉ. एसके पाटनी के अनुसार पुलिस विभाग में काम की अधिकता होने से जवान अपने घर-परिवार की जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा नहीं पाते। आपसी मारपीट की घटनाओं से बचे रहने के लिए पुलिस अधिकारियों व जवानों को आपसी संबंधों को मजबूत कर फ्रेंडली माहौल बनाना चाहिए। अधिकारी जवानों की बात सहजता से सुनें और भयरहित वातावरण तैयार करें।
हो चुकी हैं कई घटनाएं
श्रीगंगानगर& किन्हीं दो पक्षों के विवाद में सुलह पर जोर देने वाले पुलिसकर्मी आपसी तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। पिछले चार-पांच सालों में छोटी-छोटी बात पर पुलिसकर्मियों के आपस में झगडऩे की कई घटनाएं हो चुकी हैं। हाल ही सदर और जवाहरनगर थाने के दो कांस्टेबलों में मामूली बात को लेकर हुआ विवाद मारपीट तक पहुंच गया। सदर थाने के कांस्टेबल तेजपाल ने जवाहरनगर थाने के कांस्टेबल जीवराजसिंह के खिलाफ एसपी के शेष & पेज 15
समक्षपरिवाद दायर किया है। घटना की रिपोर्ट सदर थाने के रोजनामचे में भी दर्ज की गई है। सूत्रों के अनुसार पूर्व में भी पुलिसकर्मियों के आपस में उलझने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। यूं तो ज्यादातर मामलों को विभागीय अधिकारी समझाइश कर निपटा देते हैं, लेकिन उनके समय रहते गौर न करने पर कुछ मामले जगजाहिर हो ही गए हैं।
च्च्मैं वर्दी में था। जीवराजसिंह ने मुझसे दुव्र्यवहार किया। इसकी शिकायत एसपी को की है।ज्ज्
तेजपाल, कांस्टेबल, सदर थाना।
च्च्मैंने दुव्र्यवहार नहीं किया। सदर थाने के कांस्टेबल को महज गलतफहमी हुई है।ज्ज्
जीवराजसिंह, कांस्टेबल, जवाहरनगर थाना।
च्च्सदर थाने के कांस्टेबल का शिकायती परिवाद जांच के लिए एसपी कार्यालय में मिला है। बुधवार को कार्यालय से बाहर होने के कारण जांच नहीं हो सकी। अगले दिनों में जांच शुरू की जाएगी।ज्ज्
सरवर अली, सीआई, अपराध सहायक, एसपी कार्यालय, श्रीगंगानगर।
सिरे नहीं
चढ़े सुलह के प्रयास
कांस्टेबल तेजपाल और जीवराजसिंह के बीच सोमवार रात पौने ग्यारह बजे सदर थाने में झगड़ा हुआ। तेजपाल ने आरोप लगाया है कि जीवराजसिंह सिविल ड्रेस में आया, जबकि वह वर्दी में संतरी की ड्यूटी कर रहा था। जीवराज ने एक्सीडेंट होने के बाद आई गाड़ी देखने के लिए थाने के पीछे क्वार्टरों की तरफ जाने की कोशिश की। जब उसने रोककर एचएम से पूछने के लिए कहा तो जीवराजसिंह ने कहा कि मैं जवाहरनगर थाने का थानेदार हूं। तेजपाल का आरोप है कि उसने गालियां निकाली व मारपीट की। पुलिस सूत्रों के अनुसार घटना के बाद दोनों के बीच सुलह कराने के प्रयास भी हुए, जो सिरे नहीं चढ़े।
ये रहे विवाद
ठ्ठ दो महीने पूर्व गणेशगढ़ पुलिस चौकी में शराब पीकर दो कांस्टेबल झगड़ पड़े। मामला बढऩे पर दोनों को लाइन हाजिर कर दिया गया।
ठ्ठ सदर थाने के एक एएसआई पर महिला हवलदार ने उसकी लड़की से दुव्र्यवहार करने का आरोप लगाया। पुलिस विभाग में अंदरूनी तौर पर उठे इस विवाद को शांत करने के लिए एएसआई को थाने से हटाया गया।
ठ्ठ दो साल पहले पुलिस लाइन के आरआई और जवानों के बीच ड्यूटी को लेकर विवाद हुआ। जवानों ने विरोध-प्रदर्शन किया तो अधिकारियों ने आरआई के दो महीने बाद रिटायर्ड होने का वास्ता देकर जवानों को शांत किया।
ठ्ठ वर्ष २०06-07 में बच्चों के खेल के दौरान गेंद घर जाने की बात पर लालगढ़ थाने के संतरी कृष्ण व एचएम गोपीराम झगड़ पड़े। एचएम ने संतरी पर बंदूक तानने का आरोप लगाया, तब एचएम के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हुई थी।
'जब जुबान नहीं खुलती तो हाथ-पैर चलते हैंÓ
मनो रोग विशेषज्ञों का मानना है कि
पुलिस कर्मियों का मिजाज गर्म होने का
कारण लंबी ड्यूटी, ऑफ की व्यवस्था न
होना और लंबे समय तक छुट्टी न मिलना है। राजकीय चिकित्सालय के मनो विशेषज्ञ डॉ. एसके पाटनी के अनुसार अधिकारियों व जवानों के बीच विभागीय कार्य के अलावा घरेलू परिस्थितियों को लेकर संवादहीनता की स्थिति रहती है। ऐसे में लंबे समय तक जुबान न खुलने का नतीजा चिड़चिड़ापन और हाथ पैर चलने के रूप में सामने आता है। डॉ. एसके पाटनी के अनुसार पुलिस विभाग में काम की अधिकता होने से जवान अपने घर-परिवार की जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा नहीं पाते। आपसी मारपीट की घटनाओं से बचे रहने के लिए पुलिस अधिकारियों व जवानों को आपसी संबंधों को मजबूत कर फ्रेंडली माहौल बनाना चाहिए। अधिकारी जवानों की बात सहजता से सुनें और भयरहित वातावरण तैयार करें।
Rajasthan Police : राजस्थान पुलिस की कांस्टेबल भर्ती परीक्षा दी नहीं, फिर भी आया कॉल लेटर
जोधपुर. राजस्थान पुलिस की कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में कहीं न कहीं चूक रही है। ड्राइवर पद का एक आवेदक पहले तो एडमिशन कार्ड नहीं मिल पाने के कारण परीक्षा नहीं दे पाया। उसे ही बाद में कॉल लेटर जारी हो गया जिसमें शारीरिक परीक्षण के लिए बुलवाया गया है। यानी कि जो परीक्षा उसने दी ही नहीं उसमें उसे सीधे पास कर दिया गया।
डीबी स्टार टीम ने मामले की पड़ताल की। दरअसल सरस्वती नगर बासनी (फस्र्ट) निवासी पप्पूराम पुत्र तुलसीराम ने कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में ड्राइवर पद के लिए एससी वर्ग से आवेदन किया था। प्रवेश पत्र नहीं मिलने के कारण पप्पूराम जनवरी में हुई लिखित परीक्षा में नहीं बैठ सका। वह परीक्षा से पहले आरएसी कार्यालय भी गया। वहां उसका फार्म ही नहीं मिला। आखिरकार उसे मायूस होना पड़ा। 10 जून को उसे डाक से कॉल लेटर मिला।
इसमें उसे राजस्थान पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, मंडोर में 25 जून की सुबह सात बजे रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसके अलावा फार्म भाग-1 भी डाक से मिला। इसमें उसकी फोटो लगी है जिस पर रोल नंबर 106448 हैं। पड़ताल के लिए टीम शनिवार को आरएसी 1 पहुंची। वहां डिप्टी कमांडेंट चतुर्भुज पंवार ने कॉल लेटर देखा और दस्तावेज निकलवाए। परीक्षा नहीं देने वाले अभ्यर्थी को कॉल लेटर कैसे मिल गया? इसकी जांच की जा रही है।
केटेगरी में भी गड़बड़ी: पप्पूराम सरगरा ने एससी श्रेणी में परीक्षा में बैठने का फार्म भरा था लेकिन कॉल लेटर में जनरल केटेगरी है। ऐसे में केटेगरी में भी चूक हुई। ड्राइवर पद के लिए कुल 12 अभ्यर्थी ही पास हुए थे। उनके रोल नंबरों का मिलान किया गया तो पप्पूराम के नंबर नहीं मिले। ऐसे में यह कॉल लेटर कैसे जारी हो गया? इसका पता लगाया जा रहा है।
अफसरों को आशंका यह भी: पड़ताल में पता चला कि बैंड के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की लिखित परीक्षा नहीं ली गई थी। उन्हें सीधे फिटनेस टेस्ट के लिए बुलवाया है। पप्पूराम के फार्म में ड्राइवर पद भरा है। अफसर आशंका जता रहे हैं कि दूसरे फार्म में बैंड तो नहीं भर गया। डीबी स्टार के पास पप्पूराम का फार्म मौजूद है। इसमें कांस्टेबल ड्राइवर पद के लिए आवेदन ही भरा हुआ है।
किसी का कॅरियर खराब न हो जाए: 10 जून को जब मुझे कॉल लेटर मिला तो दंग रह गया। एडमिशन फार्म नहीं मिलने के कारण मैं परीक्षा ही नहीं दे सका था। इसके लिए मैंने तीन दिन तक आरएसी के चक्कर काटे लेकिन तब मेरा फार्म ही नहीं मिला था। अब मैंने अफसरों को बता दिया है ताकि गलती से किसी और का कॉल लेटर मुझे मिल गया तो उसे समय पर पता चल सके। - पप्पूराम, परीक्षा नहीं देने पर भी कॉल लेटर मिलने वाला अभ्यर्थी
पता कर रहे हैं चूक कहां हुई: पप्पूराम को बिना परीक्षा दिए कॉल लेटर मिलने के बारे में पता किया जा रहा है। हम पता कर रहे हैं कि चूक कहां हुई? गलती यहीं हुई या जयपुर से? यह कागजात संभालने के बाद ही पता चलेगा। - चतुभरुज पंवार, डिप्टी कमांडेंट, आरएसी प्रथम बटालियन, जोधपुर
डीबी स्टार टीम ने मामले की पड़ताल की। दरअसल सरस्वती नगर बासनी (फस्र्ट) निवासी पप्पूराम पुत्र तुलसीराम ने कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में ड्राइवर पद के लिए एससी वर्ग से आवेदन किया था। प्रवेश पत्र नहीं मिलने के कारण पप्पूराम जनवरी में हुई लिखित परीक्षा में नहीं बैठ सका। वह परीक्षा से पहले आरएसी कार्यालय भी गया। वहां उसका फार्म ही नहीं मिला। आखिरकार उसे मायूस होना पड़ा। 10 जून को उसे डाक से कॉल लेटर मिला।
इसमें उसे राजस्थान पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, मंडोर में 25 जून की सुबह सात बजे रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसके अलावा फार्म भाग-1 भी डाक से मिला। इसमें उसकी फोटो लगी है जिस पर रोल नंबर 106448 हैं। पड़ताल के लिए टीम शनिवार को आरएसी 1 पहुंची। वहां डिप्टी कमांडेंट चतुर्भुज पंवार ने कॉल लेटर देखा और दस्तावेज निकलवाए। परीक्षा नहीं देने वाले अभ्यर्थी को कॉल लेटर कैसे मिल गया? इसकी जांच की जा रही है।
केटेगरी में भी गड़बड़ी: पप्पूराम सरगरा ने एससी श्रेणी में परीक्षा में बैठने का फार्म भरा था लेकिन कॉल लेटर में जनरल केटेगरी है। ऐसे में केटेगरी में भी चूक हुई। ड्राइवर पद के लिए कुल 12 अभ्यर्थी ही पास हुए थे। उनके रोल नंबरों का मिलान किया गया तो पप्पूराम के नंबर नहीं मिले। ऐसे में यह कॉल लेटर कैसे जारी हो गया? इसका पता लगाया जा रहा है।
अफसरों को आशंका यह भी: पड़ताल में पता चला कि बैंड के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की लिखित परीक्षा नहीं ली गई थी। उन्हें सीधे फिटनेस टेस्ट के लिए बुलवाया है। पप्पूराम के फार्म में ड्राइवर पद भरा है। अफसर आशंका जता रहे हैं कि दूसरे फार्म में बैंड तो नहीं भर गया। डीबी स्टार के पास पप्पूराम का फार्म मौजूद है। इसमें कांस्टेबल ड्राइवर पद के लिए आवेदन ही भरा हुआ है।
किसी का कॅरियर खराब न हो जाए: 10 जून को जब मुझे कॉल लेटर मिला तो दंग रह गया। एडमिशन फार्म नहीं मिलने के कारण मैं परीक्षा ही नहीं दे सका था। इसके लिए मैंने तीन दिन तक आरएसी के चक्कर काटे लेकिन तब मेरा फार्म ही नहीं मिला था। अब मैंने अफसरों को बता दिया है ताकि गलती से किसी और का कॉल लेटर मुझे मिल गया तो उसे समय पर पता चल सके। - पप्पूराम, परीक्षा नहीं देने पर भी कॉल लेटर मिलने वाला अभ्यर्थी
पता कर रहे हैं चूक कहां हुई: पप्पूराम को बिना परीक्षा दिए कॉल लेटर मिलने के बारे में पता किया जा रहा है। हम पता कर रहे हैं कि चूक कहां हुई? गलती यहीं हुई या जयपुर से? यह कागजात संभालने के बाद ही पता चलेगा। - चतुभरुज पंवार, डिप्टी कमांडेंट, आरएसी प्रथम बटालियन, जोधपुर
Rajasthan Police : सैकड़ों पेइंग गेस्ट, रजिस्टर्ड केवल चार
अजमेर. आज के तेज रफ्तार युग में लोग हर तरह से पैसे कमाना चाहते हैं मगर सरकारी दिशा-निर्देशों को जाने बिना कई लोग ऐसी मनमानी भी कर रहे हैं जो भविष्य में उनके लिए परेशानी बन सकती है। अजमेर शहर में पिछले सालों में पेइंग गेस्ट रखने का सिलसिला तेजी से बढ़ा है।
कई युवा पढ़ाई और जॉब के कारण पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे हैं। इनमें यदि कोई युवा अपराध करके भाग जाए तो मकान मालिक के पास उसकी पूरी जानकारी मिल जाएगी, यह निश्चित नहीं है। कारण यह है कि केवल 600 रुपए बचाने के चक्कर में लोग पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे लोगों का पंजीकरण पर्यटन विभाग में नहीं करवा रहे हैं। इतना ही नहीं पुलिस को भी लोग किरायेदारों या पेइंग गेस्ट की सूचना देना मुनासिब नहीं समझते। यह जरा सी मनमानी शहर की आंतरिक सुरक्षा से खिलवाड़ भी है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि शहर में सिर्फ 6 घरों में पेइंग गेस्ट रखे गए हैं। जबकि हकीकत में हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक, दूसरे शहरों व राज्यों से आए सैकड़ों स्टूडेंट्स पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे हैं। ये पेइंग गेस्ट जिन घरों में रहते हैं उन घरों के मालिक न तो इनकी जानकारी पुलिस को देते हैं, न ही पेइंग गेस्ट आवास योजना के तहत पर्यटन विभाग में अपना पंजीकरण करवाते हैं।
पर्यटन विभाग और पुलिस इसे व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा मान रहे हैं। अजमेर में 2009-10 में सिर्फ 4 आवास मालिकों ने पंजीकरण करवाया था, वहीं 2010-11 में ये 6 हुए। इनमें 28 कमरे और 56 बैड की क्षमता है लेकिन वास्तविक आंकड़े पता करना बिना पंजीकरण की अनिवार्यता के संभव नहीं है।
क्या है योजना: पर्यटन विभाग ने 20 साल पहले ‘पेइंग गेस्ट आवास योजना’ शुरू की थी। इसका लक्ष्य था, ऐसे आवास मालिकों के आंकड़े जमा करना जो अपने यहां पेइंग गेस्ट रखते हैं ताकि पर्यटन उद्योग का विकास हो और सुरक्षा व्यवस्था बेहतर रहे। आवास मालिकों के पंजीकरण व वार्षिक नवीनीकरण के लिए कलेक्टर अथवा सहायक कलेक्टर, आरटीडीसी इकाई प्रभारी अथवा सदस्य और पर्यटन सहायक निदेशक अथवा पर्यटक स्वागत केंद्र सदस्य सचिव को मिलाकर समिति बनाई जानी थी।
पेइंग गेस्ट आवास योजना में पंजीकरण शुल्क 500 रुपए और वार्षिक नवीनीकरण शुल्क 100 रुपए रखा गया था। इसका फायदा आवास मालिकों को यह होता कि वे ज्यादा सुरक्षित ढंग से पर्यटकों या विद्यार्थियों अथवा किसी अन्य को अपने यहां ठहरा सकेंगे। वे इसके लिए ऑथोराइज्ड होंगे। साथ ही पर्यटकों को राजस्थानी संस्कृति को करीब से समझने का मौका भी मिलेगा।
यहां सबसे ज्यादा हैं पेइंग गेस्ट: आदर्शनगर, शालीमार कॉलोनी, माधवनगर, विज्ञान नगर, सेठी कॉलोनी। साथ ही परबतपुरा, गेल कॉलोनी, माखुपुरा, रीको आवासीय कॉलोनी। यहां इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक व आईटीआई के सैकड़ों विद्यार्थी पेइंग गेस्ट रखे जाते हैं। पुष्कर में कई आवास मालिक भी पर्यटकों को बतौर पेइंग गेस्ट रखते हैं।
नहीं देते हैं जानकारी: आदर्शनगर क्षेत्र में सर्वाधिक आवास मालिकों ने पेइंग गेस्ट रखे हैं मगर इसकी जानकारी वे इनकी जानकारी पुलिस को नहीं देते। गिने-चुने लोग ही किराएदारों की जानकारियां पुलिस को देते हैं। वैरिफिकेशन तो और भी कम लोग करवाते हैं। सीएलजी मीटिंग्स में बीट ऑफिसर क्षेत्रवासियों को आगाह करते हैं कि जब भी कोई पेइंग गेस्ट, किराएदार, नौकर या किसी नए अनजान व्यक्ति को अपने आवास में रखें तो इसकी सूचना पुलिस को दें और उनसे वैरिफिकेशन फॉर्म भरवाएं। लेकिन ऐसा नहीं किया जाता।
अब अनिवार्य होगा: पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक दलीप सिंह कहते हैं कि अजमेर में लोग योजना में रुचि नहीं लेते। राजस्थान पर्यटन व्यवसाय अधिनियम 2010 के आने के बाद अब इसे अनिवार्य कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी मकान में पेइंग गेस्ट रखने से पहले पर्यटन विभाग से पंजीकरण कराना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर 500 रुपए जुर्माना लगाया जाएगा। दूसरी बार बिना पंजीकरण पकड़े जाने पर 1 हजार रुपए जुर्माना किया जाएगा। उल्लंघन जारी रहने पर जुर्माना 2 हजार रुपए करते हुए 7 दिन का कारावास भी दिया जा सकता है।
पुलिस चलाएगी अभियान: आदर्शनगर थानाप्रभारी कुशाल चौरड़िया बताते हैं कि हाल ही शालीमार कॉलोनी के कुल निवासियों ने पेइंग गेस्ट व किराएदार बनकर रह रहे कुछ इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की गतिविधियों की उनसे शिकायत की थी। पुलिस इस मामले की पड़ताल कर रही है। साथ ही अब सर्वे करके ऐसे आवास मालिकों को चिह्न्ति किया जाएगा जो पेइंग गेस्ट रखते हैं, बाहर से आए लोगों की सूची तैयार करने के लिए खुद पुलिस जानकारी लेगी।
जरूरी है सुरक्षा: सुरक्षा को रखा जा रहा है ताक पर। वास्तविकता में सैकड़ों आवासों में हैं पेइंग गेस्ट। 600 रुपए बचाने और योजना की जानकारी के अभाव में पेइंग गेस्ट रखने वाला कोई आवास मालिक नहीं करवाता पंजीकरण। पुलिस व पर्यटन विभाग को करनी होगी सख्ती।
कई युवा पढ़ाई और जॉब के कारण पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे हैं। इनमें यदि कोई युवा अपराध करके भाग जाए तो मकान मालिक के पास उसकी पूरी जानकारी मिल जाएगी, यह निश्चित नहीं है। कारण यह है कि केवल 600 रुपए बचाने के चक्कर में लोग पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे लोगों का पंजीकरण पर्यटन विभाग में नहीं करवा रहे हैं। इतना ही नहीं पुलिस को भी लोग किरायेदारों या पेइंग गेस्ट की सूचना देना मुनासिब नहीं समझते। यह जरा सी मनमानी शहर की आंतरिक सुरक्षा से खिलवाड़ भी है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि शहर में सिर्फ 6 घरों में पेइंग गेस्ट रखे गए हैं। जबकि हकीकत में हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक, दूसरे शहरों व राज्यों से आए सैकड़ों स्टूडेंट्स पेइंग गेस्ट बनकर रह रहे हैं। ये पेइंग गेस्ट जिन घरों में रहते हैं उन घरों के मालिक न तो इनकी जानकारी पुलिस को देते हैं, न ही पेइंग गेस्ट आवास योजना के तहत पर्यटन विभाग में अपना पंजीकरण करवाते हैं।
पर्यटन विभाग और पुलिस इसे व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा मान रहे हैं। अजमेर में 2009-10 में सिर्फ 4 आवास मालिकों ने पंजीकरण करवाया था, वहीं 2010-11 में ये 6 हुए। इनमें 28 कमरे और 56 बैड की क्षमता है लेकिन वास्तविक आंकड़े पता करना बिना पंजीकरण की अनिवार्यता के संभव नहीं है।
क्या है योजना: पर्यटन विभाग ने 20 साल पहले ‘पेइंग गेस्ट आवास योजना’ शुरू की थी। इसका लक्ष्य था, ऐसे आवास मालिकों के आंकड़े जमा करना जो अपने यहां पेइंग गेस्ट रखते हैं ताकि पर्यटन उद्योग का विकास हो और सुरक्षा व्यवस्था बेहतर रहे। आवास मालिकों के पंजीकरण व वार्षिक नवीनीकरण के लिए कलेक्टर अथवा सहायक कलेक्टर, आरटीडीसी इकाई प्रभारी अथवा सदस्य और पर्यटन सहायक निदेशक अथवा पर्यटक स्वागत केंद्र सदस्य सचिव को मिलाकर समिति बनाई जानी थी।
पेइंग गेस्ट आवास योजना में पंजीकरण शुल्क 500 रुपए और वार्षिक नवीनीकरण शुल्क 100 रुपए रखा गया था। इसका फायदा आवास मालिकों को यह होता कि वे ज्यादा सुरक्षित ढंग से पर्यटकों या विद्यार्थियों अथवा किसी अन्य को अपने यहां ठहरा सकेंगे। वे इसके लिए ऑथोराइज्ड होंगे। साथ ही पर्यटकों को राजस्थानी संस्कृति को करीब से समझने का मौका भी मिलेगा।
यहां सबसे ज्यादा हैं पेइंग गेस्ट: आदर्शनगर, शालीमार कॉलोनी, माधवनगर, विज्ञान नगर, सेठी कॉलोनी। साथ ही परबतपुरा, गेल कॉलोनी, माखुपुरा, रीको आवासीय कॉलोनी। यहां इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक व आईटीआई के सैकड़ों विद्यार्थी पेइंग गेस्ट रखे जाते हैं। पुष्कर में कई आवास मालिक भी पर्यटकों को बतौर पेइंग गेस्ट रखते हैं।
नहीं देते हैं जानकारी: आदर्शनगर क्षेत्र में सर्वाधिक आवास मालिकों ने पेइंग गेस्ट रखे हैं मगर इसकी जानकारी वे इनकी जानकारी पुलिस को नहीं देते। गिने-चुने लोग ही किराएदारों की जानकारियां पुलिस को देते हैं। वैरिफिकेशन तो और भी कम लोग करवाते हैं। सीएलजी मीटिंग्स में बीट ऑफिसर क्षेत्रवासियों को आगाह करते हैं कि जब भी कोई पेइंग गेस्ट, किराएदार, नौकर या किसी नए अनजान व्यक्ति को अपने आवास में रखें तो इसकी सूचना पुलिस को दें और उनसे वैरिफिकेशन फॉर्म भरवाएं। लेकिन ऐसा नहीं किया जाता।
अब अनिवार्य होगा: पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक दलीप सिंह कहते हैं कि अजमेर में लोग योजना में रुचि नहीं लेते। राजस्थान पर्यटन व्यवसाय अधिनियम 2010 के आने के बाद अब इसे अनिवार्य कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी मकान में पेइंग गेस्ट रखने से पहले पर्यटन विभाग से पंजीकरण कराना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर 500 रुपए जुर्माना लगाया जाएगा। दूसरी बार बिना पंजीकरण पकड़े जाने पर 1 हजार रुपए जुर्माना किया जाएगा। उल्लंघन जारी रहने पर जुर्माना 2 हजार रुपए करते हुए 7 दिन का कारावास भी दिया जा सकता है।
पुलिस चलाएगी अभियान: आदर्शनगर थानाप्रभारी कुशाल चौरड़िया बताते हैं कि हाल ही शालीमार कॉलोनी के कुल निवासियों ने पेइंग गेस्ट व किराएदार बनकर रह रहे कुछ इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की गतिविधियों की उनसे शिकायत की थी। पुलिस इस मामले की पड़ताल कर रही है। साथ ही अब सर्वे करके ऐसे आवास मालिकों को चिह्न्ति किया जाएगा जो पेइंग गेस्ट रखते हैं, बाहर से आए लोगों की सूची तैयार करने के लिए खुद पुलिस जानकारी लेगी।
जरूरी है सुरक्षा: सुरक्षा को रखा जा रहा है ताक पर। वास्तविकता में सैकड़ों आवासों में हैं पेइंग गेस्ट। 600 रुपए बचाने और योजना की जानकारी के अभाव में पेइंग गेस्ट रखने वाला कोई आवास मालिक नहीं करवाता पंजीकरण। पुलिस व पर्यटन विभाग को करनी होगी सख्ती।
Rajasthan Police : पुलिस की दबिश छात्रावास खाली
अलवर& घोड़ाफेर चौराहे के पास पिछले दिनों हुई मारपीट की घटना के बाद पुलिस के डर से राजपूत हॉस्टल के छात्र हॉस्टल खाली कर इधर-उधर चले गए हैं। इस मामले को लेकर रविवार को प्रताप राजपूत शिक्षा समिति के पदाधिकारियों की बैठक हुई। जिसमें पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर मामले की निष्पक्ष जांच करवाने का निर्णय लिया गया।
समिति के कोषाध्यक्ष सूरजभान सिंह गौड़ ने बताया 28 मई की रात को विजेंद्र जादौन के साथ आपस में मारपीट होने का मामला अरावली विहार थाने में दर्ज कराया गया। इस मामले में पुलिस ने छात्रावास के राहुल सिंह राजपूत को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद भी पुलिस छात्रावास में रात दिन दबिश दे रही है जिससे छात्रावास के सभी छात्र भयभीत होकर हॉस्टल छोड़ गए हैं। इनका कहना है कि राहुल को भी झूठे मामले में फंसाया गया है। उन्होंने बताया कि इन दिनों छात्रों की परीक्षाएं चल रही हैं और इस घटना के बाद छात्र अनावश्यक परेशान हो रहे हैं। बैठक में जगदीश सिंह नरूका, बिजेंद्र सिंह नरूका, मनवीर सिंह परमार, सुमंत सिंह शेखावत सहित कई पदाधिकारी मौजूद थे।
समिति के कोषाध्यक्ष सूरजभान सिंह गौड़ ने बताया 28 मई की रात को विजेंद्र जादौन के साथ आपस में मारपीट होने का मामला अरावली विहार थाने में दर्ज कराया गया। इस मामले में पुलिस ने छात्रावास के राहुल सिंह राजपूत को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद भी पुलिस छात्रावास में रात दिन दबिश दे रही है जिससे छात्रावास के सभी छात्र भयभीत होकर हॉस्टल छोड़ गए हैं। इनका कहना है कि राहुल को भी झूठे मामले में फंसाया गया है। उन्होंने बताया कि इन दिनों छात्रों की परीक्षाएं चल रही हैं और इस घटना के बाद छात्र अनावश्यक परेशान हो रहे हैं। बैठक में जगदीश सिंह नरूका, बिजेंद्र सिंह नरूका, मनवीर सिंह परमार, सुमंत सिंह शेखावत सहित कई पदाधिकारी मौजूद थे।
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