BARMER POLICE
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Barmer, Rajasthan, India
Address: Superintendent Of Police, Barmer District, Barmer-344001, Rajasthan, India. Telephone numbers to contact: SP Barmer-office:02982-220005, residence:02982-220006, mobile:9414948849,9772888849. e-mail:sp-barm-rj@nic.in District control room:02982-221822
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पुलिस की खबरें, सिर्फ पुलिस के लिए ...... An International Police Blog for police personnels and their family, their works, their succes, promotion and transfer, work related issues, their emotions,their social and family activities, their issues and all which related to our police personnels.
Tuesday, June 21, 2011
Rajasthan Police : Policemen Entertainment: पुलिस जवानों ने देखी फिल्म
बाडमेर में पुलिस जवानों और अधिकारियों ने हालिया रिलीज बालीवुड फिल्म ‘शैतान’ देखी.
जिले के पुलिस कप्तान संतोष चालके के निर्देश पर पुलिस जवानों और अधिकारियों ने यह फिल्म देखी.
पुलिस प्रशासन ने फिल्म शैतान दिखाने के लिए पूरा सिनेमा हाल बुक करवाया था.
जिला पुलिस अधीक्षक संतोष चालके ने पहले खुद यह फिल्म देशी और फिल्म की कहानी से प्रभावित होकर बाडमेर पुलिस के जवानों को भी फिल्म देखने भेज दिया.
चालक के मुताबिक फिल्म में भारी दबाव और तनाव के बीच पुलिस की कार्यशैली के बारे में बहुत कुछ कहती है और मेरा मानना है कि फिल्म को देखने से पुलिस कर्मियों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा.
जिले के पुलिस कप्तान संतोष चालके के निर्देश पर पुलिस जवानों और अधिकारियों ने यह फिल्म देखी.
पुलिस प्रशासन ने फिल्म शैतान दिखाने के लिए पूरा सिनेमा हाल बुक करवाया था.
जिला पुलिस अधीक्षक संतोष चालके ने पहले खुद यह फिल्म देशी और फिल्म की कहानी से प्रभावित होकर बाडमेर पुलिस के जवानों को भी फिल्म देखने भेज दिया.
चालक के मुताबिक फिल्म में भारी दबाव और तनाव के बीच पुलिस की कार्यशैली के बारे में बहुत कुछ कहती है और मेरा मानना है कि फिल्म को देखने से पुलिस कर्मियों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा.
Police : पुलिस को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त करें
जब विकृत या गलत या उल्टी प्रोत्साहन व्यवस्था भ्रष्टाचार को दंडित करने की बजाए ईनाम देती है, तब भ्रष्टाचार बढ़ने लगता है। हमें इस विकृत प्रोत्साहन का अंत करने के लिए संस्थागत परिवर्तनों की जरूरत है।
मुझे आशा है कि साल 2010 को एक ऐसे साल के रूप में याद किया जाएगा, जब नाराज मतदाता नेताओं को बाध्य कर देंगे कि वे राजनीति को एक फायदेमंद और कर मुक्त पेशे के रूप में देखना बंद करें। मीडिया में इन दिनों कई घोटाले जैसे अवैध खनन, आदर्श सहकारी समिति, राष्ट्रमंडल खेल और 2जी लाइसेंस जैसे मामले छाए हुए हैं।
लेकिन क्या इससे कोई बदलाव आ पाएगा? भारत में 1974 में जयप्रकाश नारायण और 1988-89 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भ्रष्टाचार के विरोध में बड़ी मुहिम चलाई थी। भ्रष्टाचार ने सरकारें गिरा दी, लेकिन किसी प्रमुख हस्ती को किसी बात के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सका। इससे भ्रम, "सब चलता है" की भावना और अंततः भ्रष्टाचार को फिर से बढ़ावा मिला।
आलोचकों का कहना है कि सुरेश कलमाड़ी और ए राजा के साथ कुछ खास नहीं होगा। जब-तक बड़े संस्थागत परिवर्तन नहीं किए जाएंगे, तब-तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले विकृत प्रोत्साहन जारी रहेंगे।
शुरुआत के लिए हमें तीन प्रमुख संस्थागत सुधारों की जरूरत है। सबसे पहले, हमें एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जो अपराधियों को राजनीति छोड़ने के लिए प्रेरित कर सके। दूसरा, हमें न्यायिक प्रोत्साहन की जरूरत है, जिससे न्याय में तेजी आ सके। तीसरा, हमें चुनाव आयोग की तर्ज पर एक स्वतंत्र पुलिस आयोग की आवश्यकता है, जो नेताओं के खिलाफ उनके प्रभाव की परवाह किये बिना जांच कर सके और उन पर मुकदमा चला सके, जिससे भ्रष्टाचार लाभदायक नहीं बल्कि अत्यधिक जोखिम भरा काम बन जाए।
सबसे पहले हमें उस अराजक स्थिति को खत्म करना चाहिए, जिसमें अपराधी राजनीति में शामिल हो जाते हैं और कई बार वे केबिनेट मंत्री भी बन जाते हैं। इससे उनका प्रभाव बढ़ जाता है और यह भी तय हो जाता है कि उन पर कोई मामला नहीं चलाया जाएगा। साल 2004 के आम चुनाव में 543 विजेताओं में से 128 पर अपराधिक आरोप थे। इनमें 84 हत्या के आरोपी थे, 17 डकैती के और 28 चोरी और जबरन वसूली के आरोपी थे। एक सांसद पर 17 हत्या करने का आरोप था। कोई भी पार्टी बेदाग नहीं थी। हर पार्टी में अपराधियों की संख्या काफी थी, क्योंकि इन सज्जनों नें उन्हें धन उपलब्ध कराया, बाहुबल और संरक्षण नेटवर्क उपलब्ध कराया, जिसे हर पार्टी ने उपयोगी समझा।
केवल संस्थागत परिवर्तन से ही राजनीति का अपराधीकरण रुक सकता है। आपराधिक मामलों का भण्डाफोड़ काफी नहीं है। हमें एक नए कानून की आवश्यकता है, जो ये अनिवार्य करे कि निर्वाचित सांसदों और विधायकों के खिलाफ सभी मामलों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और जब तक ये मामले खत्म ना हो जाएं इन मामलों पर रोजाना सुनवाई होगी। ये नीति अपराधियों के लिए चुनावी जीत को एक अभिशाप बना देगी। ये उनको राजनीतिक रक्षा कवच देने की बजाय उन पर चल रही अदालती कार्रवाई में तेजी लाएगी। अगर इस तरह का एक कानून बन जाए, तो हम बहुत जल्द अपराधी विधायकों को और मंत्रियों को प्राथमिकता सुनवाई सूची से बाहर निकलने के लिए पद से इस्तीफा देते हुए पाएंगे। ये सुधार वास्तव में मौजूदा विकृत प्रोत्साहन को बदल सकता है। दूसरा, हमें न्याय की गति में तेजी लाने की जरूरत है। कई न्यायाधीश ढोंग रचते हुए यह दावा करते हैं कि "न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है" फिर भी वे न्याय की लंबी और बोझिल प्रक्रिया अपनाते हैं और तीव्रता की जगह प्राथमिकता को महत्व देने की बात करते हैं।
कई देशो नें अपने न्याय में तेजी लाने के लिए कानून बनाए हैं, जो न्यायधीशों को शीघ्र न्याय देने के लिए बाध्य करे। अध्ययनों से ये पता चलता है कि ऐसी सारी कोशिशें विफल रही हैं। वैसे संस्थागत परिवर्तन सफल हुए हैं, जिनमें उन न्यायाधीशों को बढ़ावा दिया गया है, जो अधिकतम संख्या में मामलों का निपटारा करते हैं। एक बार ये प्रोत्साहन तय कर दिए जाएं, तो न्यायाधीश खुद शीघ्र प्रकिया और शॉर्टकर्ट अपनाने लगते हैं, जो दूसरों के लिए उदाहरण बनते हैं और जिसे बाकी न्यायाधीश भी अपनाते हैं। बेशक अकेले तेज गति से ही न्याय सुनिशचित नहीं होता है। पर ये आज की सबसे बड़ी जरूरत है, जिसकी कमी महसूस होती है।
तीसरा, हमें पुलिस को नेताओं के नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए, जिससे वास्तव में एक स्वतंत्र पुलिस आयोग सामने आए, जो नेताओ के सामने चुनाव आयोग की तरह मजबूती से खड़े रह सके। कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए हमें राष्ट्रीय पुलिस आयुक्त के अंतर्गत राज्यों के लिए भी पुलिस आयुक्त नियुक्त करने होंगे।
फरीद जकारिया ने कहा है कि लोकतंत्र की पहचान केवल चुनाव कराना या बहुमत की इच्छा का प्रतिनिघित्व (जिसका मतलब बहुमत द्वारा धार्मिक हिंसा भी हो सकता है) करना नहीं है, बल्कि स्वतंत्र संस्थानों का निर्माण करना भी है, जो नेताओं और बहुमत या भीड़ को न्याय में बाधा उपस्थित करने से रोक सके।
एन सी सक्सेना, जो 1962 के राष्ट्रीय पुलिस आयोग के अध्यक्ष थे, ने एक बार लिखा था कि पुलिस ने अब अपराध की जांच करना और अपराधियों को सजा दिलाने जैसे कार्यों को अपना प्रमुख कार्य मानना छोड़ दिया है। इसका कारण यह था कि हर राज्य में गृह मंत्रियों की प्राथमिकता अलग थी। गृह मंत्रियों की सर्वोच्च प्राथमिकता अपने राजनीतिक विरोधियों का दमन करने के लिए पुलिस का उपयोग करने की होती थी। दूसरी प्राथमिकता होती थी कि वे पुलिस और अभियोजन पक्ष का प्रयोग कर अपनी पार्टी और गठबंधन के सदस्यों पर चल रहे मुकदमों को कमजोर या खारिज करवाएं। तीसरी प्राथमिकता होती थी वीआईपी सुरक्षा। आखिरी प्राथमिकता थी अपराध का पता लगाना। इससे कोई राजनैतिक लाभ नहीं मिलता था, इसलिए इस पर सबसे कम ध्यान दिया जाता था।
इस मामले में भी केवल संस्थागत परिवर्तन से ही बेहतर परिणाम मिल सकता है। जापान में एक स्वतंत्र पुलिस आयुक्त है। फिर भारत में भी एक स्वतंत्र पुलिस आयुक्त क्यूं न हो? कानून और व्यवस्था आवश्यक रूप से राजनीतिक मामला है और यह गृह मंत्रियों के ही अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए। लेकिन अपराध का पता लगाना राजनीतिक मामला नहीं हो सकता, इसलिए इसे पूरी तरह से एक स्वतंत्र पुलिस आयोग के जिम्मे डाल देना चाहिए।
हमें एक ऐसे भारत की जरूरत है जहां हर राजनेता को यह डर हो कि भ्रष्टाचार कर वे अंततः जेल में ही पहुंचेंगे। यही एक तरीका है, जिससे लोगों को गलत काम करने की अपेक्षा स्वतः नेक काम करने की प्रेरणा मिलेगी।
- स्वामीनाथन अय्यर
मुझे आशा है कि साल 2010 को एक ऐसे साल के रूप में याद किया जाएगा, जब नाराज मतदाता नेताओं को बाध्य कर देंगे कि वे राजनीति को एक फायदेमंद और कर मुक्त पेशे के रूप में देखना बंद करें। मीडिया में इन दिनों कई घोटाले जैसे अवैध खनन, आदर्श सहकारी समिति, राष्ट्रमंडल खेल और 2जी लाइसेंस जैसे मामले छाए हुए हैं।
लेकिन क्या इससे कोई बदलाव आ पाएगा? भारत में 1974 में जयप्रकाश नारायण और 1988-89 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भ्रष्टाचार के विरोध में बड़ी मुहिम चलाई थी। भ्रष्टाचार ने सरकारें गिरा दी, लेकिन किसी प्रमुख हस्ती को किसी बात के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सका। इससे भ्रम, "सब चलता है" की भावना और अंततः भ्रष्टाचार को फिर से बढ़ावा मिला।
आलोचकों का कहना है कि सुरेश कलमाड़ी और ए राजा के साथ कुछ खास नहीं होगा। जब-तक बड़े संस्थागत परिवर्तन नहीं किए जाएंगे, तब-तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले विकृत प्रोत्साहन जारी रहेंगे।
शुरुआत के लिए हमें तीन प्रमुख संस्थागत सुधारों की जरूरत है। सबसे पहले, हमें एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जो अपराधियों को राजनीति छोड़ने के लिए प्रेरित कर सके। दूसरा, हमें न्यायिक प्रोत्साहन की जरूरत है, जिससे न्याय में तेजी आ सके। तीसरा, हमें चुनाव आयोग की तर्ज पर एक स्वतंत्र पुलिस आयोग की आवश्यकता है, जो नेताओं के खिलाफ उनके प्रभाव की परवाह किये बिना जांच कर सके और उन पर मुकदमा चला सके, जिससे भ्रष्टाचार लाभदायक नहीं बल्कि अत्यधिक जोखिम भरा काम बन जाए।
सबसे पहले हमें उस अराजक स्थिति को खत्म करना चाहिए, जिसमें अपराधी राजनीति में शामिल हो जाते हैं और कई बार वे केबिनेट मंत्री भी बन जाते हैं। इससे उनका प्रभाव बढ़ जाता है और यह भी तय हो जाता है कि उन पर कोई मामला नहीं चलाया जाएगा। साल 2004 के आम चुनाव में 543 विजेताओं में से 128 पर अपराधिक आरोप थे। इनमें 84 हत्या के आरोपी थे, 17 डकैती के और 28 चोरी और जबरन वसूली के आरोपी थे। एक सांसद पर 17 हत्या करने का आरोप था। कोई भी पार्टी बेदाग नहीं थी। हर पार्टी में अपराधियों की संख्या काफी थी, क्योंकि इन सज्जनों नें उन्हें धन उपलब्ध कराया, बाहुबल और संरक्षण नेटवर्क उपलब्ध कराया, जिसे हर पार्टी ने उपयोगी समझा।
केवल संस्थागत परिवर्तन से ही राजनीति का अपराधीकरण रुक सकता है। आपराधिक मामलों का भण्डाफोड़ काफी नहीं है। हमें एक नए कानून की आवश्यकता है, जो ये अनिवार्य करे कि निर्वाचित सांसदों और विधायकों के खिलाफ सभी मामलों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और जब तक ये मामले खत्म ना हो जाएं इन मामलों पर रोजाना सुनवाई होगी। ये नीति अपराधियों के लिए चुनावी जीत को एक अभिशाप बना देगी। ये उनको राजनीतिक रक्षा कवच देने की बजाय उन पर चल रही अदालती कार्रवाई में तेजी लाएगी। अगर इस तरह का एक कानून बन जाए, तो हम बहुत जल्द अपराधी विधायकों को और मंत्रियों को प्राथमिकता सुनवाई सूची से बाहर निकलने के लिए पद से इस्तीफा देते हुए पाएंगे। ये सुधार वास्तव में मौजूदा विकृत प्रोत्साहन को बदल सकता है। दूसरा, हमें न्याय की गति में तेजी लाने की जरूरत है। कई न्यायाधीश ढोंग रचते हुए यह दावा करते हैं कि "न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है" फिर भी वे न्याय की लंबी और बोझिल प्रक्रिया अपनाते हैं और तीव्रता की जगह प्राथमिकता को महत्व देने की बात करते हैं।
कई देशो नें अपने न्याय में तेजी लाने के लिए कानून बनाए हैं, जो न्यायधीशों को शीघ्र न्याय देने के लिए बाध्य करे। अध्ययनों से ये पता चलता है कि ऐसी सारी कोशिशें विफल रही हैं। वैसे संस्थागत परिवर्तन सफल हुए हैं, जिनमें उन न्यायाधीशों को बढ़ावा दिया गया है, जो अधिकतम संख्या में मामलों का निपटारा करते हैं। एक बार ये प्रोत्साहन तय कर दिए जाएं, तो न्यायाधीश खुद शीघ्र प्रकिया और शॉर्टकर्ट अपनाने लगते हैं, जो दूसरों के लिए उदाहरण बनते हैं और जिसे बाकी न्यायाधीश भी अपनाते हैं। बेशक अकेले तेज गति से ही न्याय सुनिशचित नहीं होता है। पर ये आज की सबसे बड़ी जरूरत है, जिसकी कमी महसूस होती है।
तीसरा, हमें पुलिस को नेताओं के नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए, जिससे वास्तव में एक स्वतंत्र पुलिस आयोग सामने आए, जो नेताओ के सामने चुनाव आयोग की तरह मजबूती से खड़े रह सके। कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए हमें राष्ट्रीय पुलिस आयुक्त के अंतर्गत राज्यों के लिए भी पुलिस आयुक्त नियुक्त करने होंगे।
फरीद जकारिया ने कहा है कि लोकतंत्र की पहचान केवल चुनाव कराना या बहुमत की इच्छा का प्रतिनिघित्व (जिसका मतलब बहुमत द्वारा धार्मिक हिंसा भी हो सकता है) करना नहीं है, बल्कि स्वतंत्र संस्थानों का निर्माण करना भी है, जो नेताओं और बहुमत या भीड़ को न्याय में बाधा उपस्थित करने से रोक सके।
एन सी सक्सेना, जो 1962 के राष्ट्रीय पुलिस आयोग के अध्यक्ष थे, ने एक बार लिखा था कि पुलिस ने अब अपराध की जांच करना और अपराधियों को सजा दिलाने जैसे कार्यों को अपना प्रमुख कार्य मानना छोड़ दिया है। इसका कारण यह था कि हर राज्य में गृह मंत्रियों की प्राथमिकता अलग थी। गृह मंत्रियों की सर्वोच्च प्राथमिकता अपने राजनीतिक विरोधियों का दमन करने के लिए पुलिस का उपयोग करने की होती थी। दूसरी प्राथमिकता होती थी कि वे पुलिस और अभियोजन पक्ष का प्रयोग कर अपनी पार्टी और गठबंधन के सदस्यों पर चल रहे मुकदमों को कमजोर या खारिज करवाएं। तीसरी प्राथमिकता होती थी वीआईपी सुरक्षा। आखिरी प्राथमिकता थी अपराध का पता लगाना। इससे कोई राजनैतिक लाभ नहीं मिलता था, इसलिए इस पर सबसे कम ध्यान दिया जाता था।
इस मामले में भी केवल संस्थागत परिवर्तन से ही बेहतर परिणाम मिल सकता है। जापान में एक स्वतंत्र पुलिस आयुक्त है। फिर भारत में भी एक स्वतंत्र पुलिस आयुक्त क्यूं न हो? कानून और व्यवस्था आवश्यक रूप से राजनीतिक मामला है और यह गृह मंत्रियों के ही अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए। लेकिन अपराध का पता लगाना राजनीतिक मामला नहीं हो सकता, इसलिए इसे पूरी तरह से एक स्वतंत्र पुलिस आयोग के जिम्मे डाल देना चाहिए।
हमें एक ऐसे भारत की जरूरत है जहां हर राजनेता को यह डर हो कि भ्रष्टाचार कर वे अंततः जेल में ही पहुंचेंगे। यही एक तरीका है, जिससे लोगों को गलत काम करने की अपेक्षा स्वतः नेक काम करने की प्रेरणा मिलेगी।
- स्वामीनाथन अय्यर
WB Politics: पश्चिम बंगाल में कॉन्स्टेबल के परिवार के 3 लोगों की हत्या
कोलकाता।। पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में रविवार को एक कॉन्स्टेबल ने एक परिवार के 3 सदस्यों को गोलियों से भून दिया। पुलिस को संदेह है कि प्रेम प्रसंग के कारण यह घटना हुई है।
एसीपी (बैरकपुर) ध्रुबोज्योति डे ने बताया कि कॉन्स्टेबल पीयूष क्रांति घोष शनिवार रात से लापता था। रविवार को वह आया और बैरकपुर के लाटबागान में 3 लोगों को गोली मार दी।
डे ने फोन पर बताया, ''मारे गए लोगों में पति-पत्नी तथा पति की बहन थी।''
उन्होंने कहा, ''गोलियां चलाने के बाद घोष फरार हो गया। हम उसकी उसकी तलाश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उसका सुराग नहीं लगा है।''
गोली मारने की वजह पूछने पर उन्होंने कहा, ''प्रेम प्रसंग होने से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन हम निश्चित तौर पर इस घटना की वजह जांच पूरी होने के बाद ही बता सकते हैं।''
एसीपी (बैरकपुर) ध्रुबोज्योति डे ने बताया कि कॉन्स्टेबल पीयूष क्रांति घोष शनिवार रात से लापता था। रविवार को वह आया और बैरकपुर के लाटबागान में 3 लोगों को गोली मार दी।
डे ने फोन पर बताया, ''मारे गए लोगों में पति-पत्नी तथा पति की बहन थी।''
उन्होंने कहा, ''गोलियां चलाने के बाद घोष फरार हो गया। हम उसकी उसकी तलाश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उसका सुराग नहीं लगा है।''
गोली मारने की वजह पूछने पर उन्होंने कहा, ''प्रेम प्रसंग होने से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन हम निश्चित तौर पर इस घटना की वजह जांच पूरी होने के बाद ही बता सकते हैं।''
Gujrat Police: CBI: मोदी के गुजरात में सीबीआई टीम को खाना नहीं मिला
अहमदाबाद ।। खबर है कि तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर केस की जांच करने गांधीनगर गई सीबीआई टीम को सर्किट हाउस में खाना नहीं दिया गया। टीम को खुद खाने का इंतजाम करना पड़ा जिससे काफी परेशानी हुई। सीबीआई ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर इस बारे में शिकायत की है।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआई की टीम तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर केस की जांच के सिलसिले में गांधीनगर पहुंची थी। वहां सर्किट हाउस में 20 बुक कराए गए थे। मगर, सीबीआई टीम को वहां खाना नहीं दिया गया। सर्किट हाउस के अधिकारियों से बात करने से भी कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार टीम को खुद अपने खाने का इंतजाम करना पड़ा जिसकी वजह से काफी परेशानी हुई।
एक सीनियर सीबीआई अधिकारी ने गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) बलवंत सिंह को पत्र लिख कर इस बारे में शिकायत की। पत्र में कहा गया है कि तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले की जांच के सिलसिले में एक टीम गांधीनगर गई हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कह रखा है कि सभी राज्य सरकारें इस मामले में सीबीआई को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएं।
पत्र के मुताबिक सर्किट हाउस अधिकारियों से जब खाना उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया तो उन्होंने इनकार कर दिया। उनका कहना था कि किचेन में मरम्मत का काम चल रहा है।
इस बारे में संपर्क करने पर सर्किट हाउस मैनेजर बिपिन शुक्ला ने कहा कि बहुत दिनों से किचेन की मरम्मत का काम चल रहा है। जब भी कोई सरकारी कार्यक्रम होता है या कोई मंत्री आने वाले होते हैं तो हम एक अस्थायी किचेन बना लेते हैं। नहीं तो, दूसरा कोई इंतजाम नहीं है। इसीलिए हम सीबीआई टीम को खाना नहीं दे सके।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआई की टीम तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर केस की जांच के सिलसिले में गांधीनगर पहुंची थी। वहां सर्किट हाउस में 20 बुक कराए गए थे। मगर, सीबीआई टीम को वहां खाना नहीं दिया गया। सर्किट हाउस के अधिकारियों से बात करने से भी कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार टीम को खुद अपने खाने का इंतजाम करना पड़ा जिसकी वजह से काफी परेशानी हुई।
एक सीनियर सीबीआई अधिकारी ने गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) बलवंत सिंह को पत्र लिख कर इस बारे में शिकायत की। पत्र में कहा गया है कि तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले की जांच के सिलसिले में एक टीम गांधीनगर गई हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कह रखा है कि सभी राज्य सरकारें इस मामले में सीबीआई को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएं।
पत्र के मुताबिक सर्किट हाउस अधिकारियों से जब खाना उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया तो उन्होंने इनकार कर दिया। उनका कहना था कि किचेन में मरम्मत का काम चल रहा है।
इस बारे में संपर्क करने पर सर्किट हाउस मैनेजर बिपिन शुक्ला ने कहा कि बहुत दिनों से किचेन की मरम्मत का काम चल रहा है। जब भी कोई सरकारी कार्यक्रम होता है या कोई मंत्री आने वाले होते हैं तो हम एक अस्थायी किचेन बना लेते हैं। नहीं तो, दूसरा कोई इंतजाम नहीं है। इसीलिए हम सीबीआई टीम को खाना नहीं दे सके।
maharastra politics:सड़क हादसे में 2 पुलिसकर्मियों की मौत
पुणे।। महाराष्ट्र के इस जिले में मुम्बई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर रविवार को एक वाहन के घाटी में गिर जाने से उसमें सवार 2 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई तथा 2 अन्य घायल हो गए।
लोनावला नगर पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया, ''चार पुलिसकर्मी एक वैन में सवार होकर ठाणे से रवाना हुए थे। वैन लोनावला के निकट घाटी में गिर गई। इनमें से 2 की मौत हो गई तथा 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।''
मारे गए 2 पुलिसकर्मियों की पहचान कांस्टेबल शरद चव्हाण तथा दशरथ मोरे के रूप में की गई है। दोनों 45 वर्ष के थे।
लोनावला नगर पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया, ''चार पुलिसकर्मी एक वैन में सवार होकर ठाणे से रवाना हुए थे। वैन लोनावला के निकट घाटी में गिर गई। इनमें से 2 की मौत हो गई तथा 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।''
मारे गए 2 पुलिसकर्मियों की पहचान कांस्टेबल शरद चव्हाण तथा दशरथ मोरे के रूप में की गई है। दोनों 45 वर्ष के थे।
UP Police : यूपी में फार्स्ट ट्रैक कोर्ट में होगी रेप के मामलों की सुनवाई?
उत्तर प्रदेश में रेप की घटनाओं को मुख्यमंत्री मायावती ने गंभीरता से लिया है। मंगलवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि प्रदेश में बलात्कारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए प्रदेश में फार्स्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे। साथ मायावती ने कहा कि विपक्षी पार्टियां ऐसी घटनाओं के लेकर घिनौनी राजनीति नहीं करें।
उत्तर प्रदेश में रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर विपक्षी दलों के लगातार हमले के बाद मंगलवार को खुद इस मामले पर प्रेस के सामने आईं। उन्होंने कहा कि वह रेपिस्टों को सख्त से सख्त सजा देने के पक्ष में हैं। माया ने कहा कि रेपिस्टों के खिलाफ गैर जमानती केस दर्ज होगा। साथ पूरे प्रदेश में फार्स्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे, जिससे कि ऐसे मामलों में फैसला जल्द से जल्द आ सके।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायवती ने विपक्षी पार्टियों पर भी जवाबी हमला बोला। उन्होंने कहा रेप जैसी घटना पर विपक्षी पार्टियां घिनौनी राजनीति कर रही हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश में रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर विपक्षी दलों के लगातार हमले के बाद मंगलवार को खुद इस मामले पर प्रेस के सामने आईं। उन्होंने कहा कि वह रेपिस्टों को सख्त से सख्त सजा देने के पक्ष में हैं। माया ने कहा कि रेपिस्टों के खिलाफ गैर जमानती केस दर्ज होगा। साथ पूरे प्रदेश में फार्स्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे, जिससे कि ऐसे मामलों में फैसला जल्द से जल्द आ सके।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायवती ने विपक्षी पार्टियों पर भी जवाबी हमला बोला। उन्होंने कहा रेप जैसी घटना पर विपक्षी पार्टियां घिनौनी राजनीति कर रही हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए।
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