Saturday, April 23, 2011

Rajasthan Police: महिला पुलिस कास्टेबल ने आत्महत्या की

अलवर। अलवर जिले के कोटकासिम थाना इलाके के दईका गाव में शुक्रवार को एक महिला पुलिस कास्टेबल ने अज्ञात कारणों से फासी लगाकर आत्महत्या कर ली।

अतिरिक्त पुलिस अघीक्षक शिव राम मीणा के अनुसार पुलिस कास्टेबल सुनीता यादव [22] ने फासी लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या के कारणों का फिलहाल पता नहीं लग सका है। मृतका मौजूदा समय में पुलिस लाइन में तैनात थी और 17 मई को उसका विवाह होने वाला था।

पुलिस ने पोस्टमार्टम करवाने के बाद अन्तिम संस्कार के लिए शव परिजनों को सुपुर्द कर दिया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जाच शुरू कर दी है।

Uttarakhand Police: उत्तराखंड पुलिस के 7 अफसरों के खिलाफ गैरजमानती वारंट

नई दिल्ली.तीस हजारी की विशेष अदालत ने गाजियाबाद के एक एमबीए छात्र रणबीर को लुटेरा बताकर उसे कथित मुठभेड़ में मार गिराने के मामले में आरोपी उत्तराखंड पुलिस के सात अधिकारियों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिए हैं। अदालत की ओर से इस मामले में 11 अन्य आरोपियों को भी नोटिस जारी किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा मृतक छात्र रणवीर के माता-पिता के अनुरोध के बाद यह मामला देहरादून से दिल्ली की विशेष अदालत में स्थानांतरित किया गया है।

विशेष न्यायाधीश वीके माहेश्वरी ने देहरादून के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एंटी करप्शन) सीबीआई, अदालत के वरिष्ठ लोक अभियोजक के अनुरोध को स्वीकार करते हुए मामले में मुख्य आरोपी एवं उत्तराखंड पुलिस के इंस्पेक्टर संतोष कुमार जायसवाल, सब इंस्पेक्टर नितिन चौहान, गोपाल भट्ट, राजेश बिष्ट, चंद्रमोहन सिंह रावत, नीरज यादव और कांस्टेबल अजीत सिंह के विरुद्ध नए गैरजमानती वारंट जारी किए हैं।

इससे पहले देहरादून की उक्त अदालत ने भी इन पुलिसवालों के खिलाफ एनबीडब्ल्यू जारी किए थे, जो कि इन तक पहुंचे नहीं थे। इसके साथ ही विशेष अदालत ने मामले में 11 अन्य आरोपी सतबीर सिंह, सुनील सैनी, चंद्रपाल, सौरभ नौटियाल, नागेंद्र राठी, विकास चंद्र बलूनी, संजय रावत, मोहन सिंह राणा, इंद्रभान सिंह, जयपाल सिंह गोसेन और मनेाज कुमार के खिलाफ भी नोटिस जारी किया है।

अदालत ने मामले के सभी 18 आरोपियों को अगली सुनवाई में हाजिर होने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बीते 17 मार्च को रणवीर के माता-पिता के अनुरोध पर इस मामले को सुनवाई के लिए देहरादून की विशेष अदालत से दिल्ली के विशेष न्यायालय में स्थानांतरित करने के आदेश दिए थे। इसके साथ ही, उच्चतम न्यायालय ने सातों आरोपी पुलिसवालों की जमानत भी खारिज कर दी थी।

दरअसल, दो जुलाई 2009 को उत्तराखंड के डालनवाल थाने की पुलिस ने एक कथित मुठभेड़ के दौरान गाजियाबाद निवासी 22 वर्षीय रणबीर को लुटेरा करार देते हुए उसे मार दिया था। रणबीर नौकरी की तलाश में देहरादून गया था। उस पर पुलिस ने नजदीक से 29 गोलियां चलाईं थीं। आरोपियों के उत्तराखंड पुलिस से होने की वजह से मामले की जांच को सीबीआई को सौंपा गया था, जिसके बाद सातों पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

कोर्ट को खस्ता हालत में मिले अहम दस्तावेज

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रणबीर फर्जी एनकाउंटर मामले को दिल्ली की विशेष अदालत में स्थानांतरित किए जाने के बाद रिकार्ड में मौजूद सभी दस्तावेजों को देहरादून से दिल्ली की विशेष अदालत को सौंप दिया गया है, लेकिन ये दस्तावेज अदालत में बेहद खस्ता हालत में पहुंचे हैं। इनमें 356 पेज तो पूरी तरह खाली पाए गए हैं।

विशेष न्यायाधीश वीके माहेश्वरी ने दस्तावेजों की इस दुर्गति को देखते हुए सीबीआई के पुलिस अधीक्षक (स्पेशल क्राइम ब्रांच) लखनऊ को उचित कार्रवाई और पैरवी के लिए पत्र भेजा है। देहरादून के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज-स्पेशल जज (तृतीय) एंटी करप्शन, सीबीआई की अदालत से इस मामले के सभी रिकार्डस को तीस हजारी के स्पेशल जज वीके माहेश्वरी की अदालत में सौंपा गया है।

देहरादून के स्पेशल जज के अहलमद वारिस अली की तरफ से इन्हें दिया गया है। रिकार्ड सौंपे जाने के बाद विशेष अदालत के अहलमद नरिंद्र कुमार द्वारा विशेष न्यायाधीश वीके माहेश्वरी को सूचित किया गया कि रिकार्ड में मौजूद एक कॉम्पेक्ट डिस्क (सीडी) टूटी हालत में सौंपी गई है, जिसका स्पष्टीकरण तो लिखित में अहलमद वारिस अली द्वारा दे दिया गया, लेकिन रिकार्ड में मौजूद अन्य कई दस्तावेज बहुत खराब अवस्था में है।

इनमें से करीब 356 पेज खाली हैं। इसके अलावा दस्तावेजों में से तीन पेज गायब भी हैं और 12 फटे हुए हैं। वहीं, दो दस्तावेजों की सिर्फ फोटोकॉपी अदालत को सौंपी गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए विशेष न्यायाधीश वीके माहेश्वरी द्वारा सीबीआई की लखनऊ ब्रांच की स्पेशल क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर प्रवीण दुबे को इस बाबत सूचना दे दी गई है।

इसके साथ ही देहरादून के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के अलावा अभी तक मामले की सुनवाई कर रहे विशेष जज प्रदीप पंत को भी न्यायालय की तरफ से पत्र भेजा गया है, जिसमें संबंधित अहलमद को दस्तावेजों की कमी को पूरा करने के लिए कहा गया है।

Delhi Police: फेसबुक ने कटवाया तीन पुलिस कर्मियों का चालान

नई दिल्ली.यातायात पुलिस के लिए अब फेसबुक राहत की जगह मुसीबत बनती नजर आ रही है। ऐसे ही एक मामले में एक व्यक्ति ने तीन पुलिसवालों को एक ही बाइक पर बिना हेलमेट सवारी करते हुए अपने कैमरे में कैद कर लिया और फुटेज को यातायात पुलिस के फेसबुक पर अपलोड कर दिया।

इसकी जानकारी मिलने के बाद भी यातायात पुलिस ने बहाना बनाकर दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया, लेकिन जब मामला आला अधिकारियों के संज्ञान में आया तो तीनों पुलिसवालों की पहचान कर न सिर्फ उनके चालान काटे गए, बल्कि उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है।

जानकारी के अनुसार 15 अप्रैल को शाम करीब साढ़े आठ बजे तीन पुलिसकर्मी बुलेट पर सवार होकर पूर्वी दिल्ली स्थित वसुंधरा एनक्लेव-त्रिलोकपुरी रोड पर धर्मशाला कैंसर अस्पताल के पास से गुजर रहे थे। इसी दौरान अनिल सूद नाम के एक शख्स ने इन पुलिसकर्मियों की इस कारगुजारी को अपने कैमरे में कैद कर यातायात पुलिस के फेसबुक एकाउंट पर डाल दिया।

फोटो अपलोड होने के बाद कार्रवाई करने की जगह जवाब दिया कि ‘फोटो में बाइक का नंबर साफ नहीं दिखाई दे रहा है, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती है।’ यातायात पुलिस के इस जवाब से नाराज फेसबुक से जुड़े हजारों लोगों ने पुलिस पर अपने कर्मियों को बचाने का आरोप लगाया।

महकमे की फजीहत होते देख यातायात पुलिस के संयुक्त आयुक्त सतेंद्र गर्ग को आखिरकार आगे आना पड़ा। गर्ग ने फेसबुक के माध्यम से जवाब दिया कि यातायात नियम तोड़ने वाले तीनों पुलिसकर्मी उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आते हैं, इसलिए वह दिल्ली पुलिस आयुक्त से इस संबंध में बात कर रहे हैं और जल्द ही दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।

इसके बाद, 22 अप्रैल को तीनों दोषी पुलिस वालों के नामों का खुलासा करते हुए गर्ग ने आमजनों को बताया कि तस्वीर में बाइक चलाने वाला शख्स कांस्टेबल अनिल कुमार है और पीछे बैठे पुलिस कर्मी कांस्टेबल अजीत और कृष्ण है।

ये तीनों मौर्या एनक्लेव थाने में तैनात हैं। इसके बाद कल्याणपुरी सर्किल के यातायात इंस्पेक्टर ने यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले पुलिस कर्मियों का चालान काटा। गर्ग ने यह भी बताया कि सार्वजनिक स्थल पर कानून तोड़ने के कारण तीनों पर विभागीय कार्रवाई भी की जा रही है।

Chandigarh Police: Traffic Police: चालान काटने पर महिला ने काटा

चंडीगढ़। ट्रेफिक पुलिस के चालान काटने पर एक महिला ने उसे काट लिया। ट्रैफिक पुलिस ओम प्रकाश के लिए गाड़ी चलाते वक्त फोन पर बात करती महिला का चालान काटना एक महंगा सौदा साबित हुआ।
37 वर्षीय शिल्पी चौधरी चंडीगढ़ के 37 सैक्टर की निवासी हैं। शिल्पी गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल पर बात कर रही थीं। सिगन्ल पर ट्रैफिक पुलिस ने उसे रोकने की कोश्çाश की तो शिल्पी ने गाड़ी रोक ली लेकिन कागजात दिखाने से इंकार कर दिया।
ओमप्रकाश ने कहा "चालान काटने के बाद जब मैंने गाड़ी की चाबी निकालने की कोशिश को तो महिला ने आना-कानी की और फिर मुझे काट लिया।"
घटना के तुरंत बाद पास के सिगAल से अन्य ट्रैफिक पुलिस को बुलाया गया और गाड़ी की चाबी रख ली गई। ओम प्रकाश को पास के सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां जांच के बाद यह साबित हो गया कि उसके हाथ में काटने के निशान मौजूद हैं। शिल्पी को पुलिस कर्मचारी को चोट पहुंचाने और उसे डयूटी करने से रोकने के आरेाप में गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में शिल्पी को जमानत पर छोड़ दिया गया।

jharkhand police: पुलिस की नियुक्ति शीघ्र : सीएम

रांची । मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि पुलिस के रिक्त पदों पर शीघ्र नियुक्ति की जाएगी। इसकी प्रक्रिया तत्काल शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। पुलिसकर्मियों को प्रोन्नति हेतु भी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। नक्सली हिंसा में शहीद हुए पुलिसकर्मियों के आश्रितों को तत्काल मुआवजा और अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाएगी। इसके लिए अधिकारियों को त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर मिलने आए झारखंड पुलिस मेंस एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल को यह आश्वासन दिया। प्रतिनिधिमंडल में एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष अखिलेश्वर पांडेय, महामंत्री जितेंद्र पांडेय और अन्य शामिल थे।

एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री से कहा कि पुलिसकर्मियों के सैकड़ों पद रिक्त हैं। वर्षो से कनीय पुलिसकर्मियों को प्रोन्नति नहीं मिल रही है। मुआवजा और अनुकंपा पर नौकरी के लिए शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिजनों का सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाते-लगाते चप्पल घिस जाती है। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, पुलिसकर्मियों को देय सुविधाएं भी समय नहीं नहीं मिल रही हैं। नक्सलियों से मुकाबले के दौरान उन्हें उचित सुविधा नहीं मिल पाती है।

France Police : पुलिस के पीने पर रोक

फ्रांस की दंगा पुलिस अब काम के दौरान खाने के साथ शराब का मज़ा नहीं ले सकेगी.

आंतरिक मंत्रालय के एक नए आदेश के मुताबिक़ दंगा पुलिस को अब अपने भोजन के साथ एक या दो गिलास बीयर या शराब पीने की इजाज़त नहीं होगी, जैसी कि पहले होती थी.

खाने के साथ अल्कोहल का सेवन करने पर रोक लगाने की इस योजना को लेकर दंगा पुलिस में बहुत नाराज़गी है.

वर्ष 2010 में दंगा पुलिस की ऐसी तस्वीरें सामने आई थीं जिसमें वे एक प्रदर्शन को नियंत्रित करने के दौरान बीयर पीते नज़र आ रहे हैं. इन तस्वीरों को देखकर अधिकारी बेहद नाराज़ हुए थे.

आंतरिक मंत्रालय की इस योजना के बारे में पुलिस के एक संघ का कहना है कि अगर सार्वजनिक रूप से खाना न खाया जा रहा हो तो शराब पीने की अनुमति देने में कोई हर्ज़ नहीं.

सरकार के इस फ़ैसले पर दंगा पुलिस की नाराज़गी को स्पष्ट करते हुए फ्रेंच पुलिस यूनियन के प्रमुख दिदिएर मैंजीओन ने आंतरिक मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी है जिसमें ड्यूटी के दौरान दंगा पुलिस के शराब पीने के अधिकार को सही ठहराया गया है.

साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि दंगा पुलिस को सीमित मात्रा में शराब पीने की अनुमति दी जानी चाहिए.
राष्ट्रीय परंपरा

खाने के दौरान अगर कोई कर्मचारी एक गिलास शराब पी लेता है तो इससे उसके काम पर क्या असर पड़ता है? मुझे नहीं लगता कि पुलिस प्रमुख खाने के साथ पानी पीते होंगे

दंगा पुलिस संघ के अधिकारी


क़ानून के मुताबिक ड्यूटी के दौरान फ्रांस में अल्कोहल के सेवन पर प्रतिबंध है. हालांकि वाइन, बीयर और सेब-नाशपाती का रस पिया जा सकता है.

अब तक इस क़ानून का यही अर्थ लगाया गया था कि फ्रांस के किसी भी कामकाजी के दिन में थोड़ी मात्रा में बीयर और शराब लेने में कोई हर्ज़ नहीं है.

खबरों के मुताबिक अल्कोहल को लेकर इस नरम रवैये की वजह से ऐसा माना जाता था कि दंगा पुलिस जब सार्वजनिक स्थलों पर ड्यूटी करती है तो उन्हें दिए गए पैक लंच में बीयर भी शामिल होती होगी.

लेकिन 2010 के आखिर में छात्रों के एक प्रदर्शन के दौरान दंगा पुलिस की बीयर गटकती तस्वीरें जब सामने आईं तो उसकी काफ़ी निंदा हुई. यहां तक कि पुलिस संघों ने भी इसकी जमकर आलोचना की.

अपनी चिट्ठी में दिदिएर मैंजीओन ने सलाह दी है कि दंगा पुलिस अधिकारियों को पहले की तरह ही बीयर और शराब पीने की अनुमति दी जानी चाहिए बशर्ते वे सार्वजनिक रूप से भोजन न कर रहे हों.

दंगा पुलिस के एक अन्य संघ से जुड़े पॉल ले गुएनेक का कहना है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को पहले अपने व्यवहार को देख लेना चाहिए.

उन्होंने कहा,''खाने के दौरान अगर कोई कर्मचारी एक गिलास शराब पी लेता है तो इससे उसके काम पर क्या असर पड़ता है? मुझे नहीं लगता कि पुलिस प्रमुख खाने के साथ पानी पीते होंगे.''

Gujrat Police : Modi : गुजरात दंगों के लिए मोदी जिम्मेदार: पुलिस अधिकारी

नई दिल्ली।। गुजरात के सीनियर पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में ऐफिडेविट दाखिल करके 2002 के दंगों के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे जिम्मेदार बताया है। उन्होंने दंगों की जांच कर रही एसआईटी की नीयत पर भी सवाल उठाए और अपने परिवार के लिए सुरक्षा की मांग की।
गुजरात दंगों के दौरान आईपीएस अधिकारी संजीव इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में थे। उन्होंने कहा कि वह 27 फरवरी 2002 की रात मुख्यमंत्री के घर पर हुई उस मीटिंग में मौजूद थे, जिसमें पुलिस अधिकारियों से दंगों को लेकर उदासीन रहने को कहा गया था। संजीव के मुताबिक, ' नरेंद्र मोदी ने कहा कि बंद का आह्वान पहले ही किया जा चुका है और पार्टी ने इसको सपोर्ट करने का फैसला किया है। गोधरा में कार सेवकों को जलाए जाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। मुस्लिमों को सबक सिखाया जाना चाहिए जिससे वे फिर ऐसी हरकत न करें। '
भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल ऐफिडेविट में कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात दंगों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा है कि यह ऐफिडेविट सुप्रीम कोर्ट में इसलिए दाखिल किया है क्योंकि उन्हें इस मामले की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) पर जरा भी भरोसा नहीं है।
सीनियर पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्होंने सारी जानकारी एसआईटी को भी दी थी लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने आरोप लगाया है कि एसआईटी ने जांच करने के बजाय गुजरात सरकार को बचाने का काम किया है।
संजीव के मुताबिक, मीटिंग में मोदी ने कहा था कि हिंदुओं की भावना भड़क गई है और उनके गुस्से को बाहर निकलने दो। ऐफिडेविट में कहा गया है कि दंगे को दौरान सीनियर पुलिस अधिकारियों ने नरेंद्र मोदी के निर्देशों का आंख मूंद कर पालन किया और इसीलिए राज्य में कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हुई।