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Wednesday, July 31, 2013
एडिट पेज: भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’!An-Open-Letter-On-Bcci-Team-India-Corrupt-Practices-In-Cricket
निमिष कुमार,
संपादक,
हिन्दी इन डॉट कॉम
देश का आम आदमी गुस्से में हैं। एक तो पहले ही टमाटर, प्याज, हरी सब्जियां हर दूसरे दिन जेब पर डाका डाल रही हैं। खाने का तेल हो या आटा, दूध हो या दही, सबकुछ अब महंगा, और महंगा होता जा रहा है। ऊपर से बिजली महंगी। पानी पर म्युनिसिपल टैक्स महंगा। बच्चों के स्कूल की फीस महंगी। शादी-ब्याह, रिश्तेदारी में आओ-जाओ तो रेल, बस का भाड़ा महंगा। बचा-कुचा दम जो बचता है, वो रोज हमारे नेताजी लोगों के घोटालों, अधिकारियों के करप्शन की खबरें निकाल देती हैं। सरकारी नौकरियां बची नहीं, प्राइवेट नौकरियों का कोई भरोसा नहीं किस दिन शाम को निकलते वक्त निकाल दिए जाएं। ऊपर से टीवी पर रोज कोई ना कोई नई चीज की विज्ञापन। कभी नई कार, तो कभी नए मोबाइल का। बीबी-बच्चों की फरमाईश के बोझ तले दबता एक भारतीय थोड़ा बहुत सुकून, आनंद, मजा पाता है तो क्रिकेट मैच के दौरान। यार-दोस्तों के साथ बैठक जमती है। हर गेंद पर, हर शॉट पर गाली के साथ कमेंट हवा में तैरते हैं। इंडिया हारी तो दिमाग का दही, और जीती तो पाकिस्तान की ऐसी-तैसी। अब उसमें भी बीसीसीआई के चंद जादूगर रोज कोई ना कोई बखेड़ा खड़ा करें, तो इंडिया के आम आदमी को गुस्सा तो आएगा ही। एक तो पहले ही जिंदगी में बवाल कटा हुआ है, और ऊपर से ये बीसीसीआई वाले बात-बिना बात कोई ना कोई बवाल काटे रहते हैं। अब ऐसे में देश का आम क्रिकेटप्रेमी गुस्से में कहेगा ही- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’!
देखिए देश के आम क्रिकेटप्रेमी को आपके बीसीसीआई के दंद-फंद से कोई मतलब नहीं। उसे नहीं जानना कि बीसीसीआई का ऑफिसियल स्टेट क्या है? उसे नहीं पता करना कि बीसीसीआई क्यों और कैसे ‘टीम इंडिया’ का माई-बाप बन बैठा? या बीसीसीआई नाम की ये चिड़िया कैसे हमारे पूरे क्रिकेट को कंट्रोल कर रही है? उसे तो बस इससे मतलब है कि उसका पसंदीदा क्रिकेट उसे देखने को मिलता रहे, फिर वो ज़ी स्पोटर्स दिखाए या सोनी, वो निबंस ले या कोई और। देश का आम क्रिकेटप्रेमी तो बस ये ही चाहता है कि मैच में वो जो देखे, वो सच्चा हो। बाद में मालूम ना चले कि- अरे साला, रमेश शर्त इसीलिए जीत गया क्योंकि उसके बुकी ने उसे पहले ही बता दिया था कि उस ओवर में इतने रन बनने वाले हैं? या क्यों एक बॉलर बिना पसीना निकाले टॉवल कभी जेब में तो कभी कमर में खोंस रहा था? फिर किसी न्यूज़ चैनल पर स्टिंग देखने को ना मिले, जिसमें आईपीएल में खेलने आए नए-नवेले हमारे क्रिकेट खिलाड़ी हर बाल, हर शॉट का रेट लगा रहे हो, वो भी बड़ी बेशर्मी से। बिना इस बात को सोचे कि वो क्रिकेट नहीं देश के आम क्रिकेटप्रेमी के भरोसे को सरेआम नीलाम कर रहे हैं। फिर ना मालूम चले कि बीसीसीआई के लाड़ले मुंबई के किसी रेस्त्रां में रेव पॉर्टी में अधनंगी देसी-विदेशी मॉड्ल्स के साथ ड्रग्स लेते, शराब में चूर, पानी में तरबतर अमीरजादों के साथ पकड़े जाएं, या खुद बीसीसीआई श्रीनिवासन के घर का मामला सड़क पर सड़कछाप तरीके से उछलता दिखे, जिसमें उनका बेटा आरोप लगाए कि उसका बीसीसीआई अध्यक्ष बाप उसे और उसके पुरुष दोस्त को पिटवाता है। उसके बीसीसीआई अध्यक्ष बाप को अपने बेटे का पुरुषों के साथ रहना, सेक्स करना या किसी भी तरह का ऐसा-वैसा संबंध रखना मंजूर नहीं है। भले वो मामला बीसीसीआई अध्यक्ष का घरेलू हो, लेकिन हमारे क्रिकेट को कंट्रोल करने वाले माई-बाप के तौर पर बदनामी तो देश के क्रिकेट की भी होती है ना? मैच फिक्सिंग तो रुकती नहीं, लेकिन बच्चों को खेल के बाद मैदान में जाने से रोकने पर बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान से सारे क्रिकेट पदाधिकारी भिड़ जाते हैं, ये सोचकर कि चलो, ‘फिलम स्टार’ से लड़ेंगें, तो टीवी वाले पूछने आएंगें, और बीबी मोहल्ले वालों को इतराकर बताएगी, चुन्नू के पापा टीवी पर दिखे। अब ऐसी बीसीसीआई, जो क्रिकेट तो इज्जत से करवा नहीं पा रही, क्यों नहीं आम क्रिकेटप्रेमी के गुस्से का शिकार हो, और क्यों नहीं देश का आम क्रिकेटप्रेमी बोले- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’!
बताया जाता है कि बीसीसीआई नाम की ये संस्था चेन्नई में सोसाइटी पंजीकरण विभाग के अंर्तगत रजिस्ट्रर्ड है। अंग्रेजों के जमाने से ये भारत में क्रिकेट का संचालन करते आ रही है या यूं कहें तो अंग्रेजों ने जैसे क्लर्क पैदा करने के लिए ‘मैकाले की शिक्षा नीति’ बनाई थी, वैसे ही अपने साथ खेलने के लिए गुलाम देशों की टींमें बनवा दी। बीसीसीआई भी अंग्रेजों की उस अय्याशी का एक बेशर्म हरम हो सकता है? अब वो पूरे भारत का क्रिकेट कंट्रोल करती है। किस हक से ये किसी ने पूछा नहीं? इसे लेकर कभी संसद में मौजूद तमाम बवालप्रेमी सासंदों में से किसी ने सवाल खड़े नहीं किए होंगें? या किए भी होंगें तो वो दबा दिए गए, क्योंकि उस पर कोई कार्रवाई हुई हो ऐसा तो होता नहीं दिखता। बीसीसीआई की दादागिरी इतनी की अपनी टीम को हमारे देश की टीम बता देते हैं- टीम इंडिया। वहीं बात हो कि कोई साबुन कंपनी कह दे ये भारत का साबुन है, इसके अलावा कोई दूसरे साबुन से नहाने की हिम्मत ना करें। जब ऐसा नहीं हो सकता तो फिर बीसीसीआई को हमारे क्रिकेट पर एकाधिकार जमाने का, हमारे क्रिकेट को कंट्रोल करने का अधिकार किसने दिया? कौन है वो नेता लोग? क्यों घिग्घी बन जाती है हमारे शेर बनने वाले तमाम नेता लोगों की बीसीसीआई के सामने? क्यों नहीं बीसीसीआई से ‘टीम इंडिया’ चुनने का अधिकार छिन कर सरकार अपनी बनाई किसी बॉडी के पास रखती। देश की हॉकी टीम, कब्बडी टीम तो सरकार चुनती है, फिर क्रिकेट टीम क्यों नहीं? खेल मंत्रालय बीसीसीआई के सामने पंगु क्यों होता दिखता है? क्यों खेल मंत्रालय के मंत्री-अधिकारी बीसीसीआई के सामने घिघियाते दिखते हैं?
सूत्रों की मानें तो बीसीसीआई का सालाना हिसाब-किताब कुछ पांच हजार करोड़ से ज्यादा का होता है। बीसीसीआई दुनियाभर के तमाम क्रिकेट बोर्डों में सबसे अमीर है, इतना अमीर की दूसरे बीसीसीआई के सामने भिखारी-से साबित होते हैं। बीसीसीआई की परिसंपत्तियों, बाजार में साख का आंकलन करें, तो बीसीसीआई हजारों करोड़ की मालिक है। चलिए सीधे शब्दों में समझते हैं। पूरी दुनिया में भारत के पास सबसे बड़ा बाजार याने उपभोक्ता वर्ग है, जो पूरे यूरोप या अमेरिका की जनसंख्या से भी ज्यादा बताया जाता है। इसीलिए अमेरिका से लेकर दुनिया का हर विकसित देश अपने देशों की कंपनियों के दबाव में आकर भारत सरकार को हड़काता रहता है कि भारत की आर्थिक सीमाएं खोलों, जिससे उनके देश की कंपनियां आप-हम लोगों की जेबें खाली कर सकें और सारा माल समेटकर अपने देश ले जा सकें। ऐसे देश में क्रिकेट ही एक ऐसा माध्यम है जिस पर सवार होकर ये विदेशी कंपनियां दुनिया के इस सबसे बड़े बाजार में या उपभोक्ता वर्ग को अपना माल टिका सकती हैं। तो अब आप ही सोचिए, बीसीसीआई कौन-सी सोने की खान पर बैठी हुई है?
ऐसा नहीं कि ये गणित बीसीसीआई और उस पर अपनी चौधराहट जमाए पवार, डालमिया, श्रीनिवासन, जेटली, लालू, सिंधिया, फारुख अब्दुल्ला जैसों को नहीं मालूम। इन सबकों मालूम है इसीलिए ही तो बीसीसीआई पर सरकार कोई कार्रवाई करने से डर रही है। लगता है कि बीसीसीआई की चांडाल चौकड़ी ने इसीलिए ही तो नहीं नेताओं को अपने-अपने राज्यों की क्रिकेट एसोसियेशनों में बैठा रखा है। मानों कहा हो- हुजूर, आप पॉलिटिक्स से ऊब जाओं, जो क्रिकेट की रंगीनियों के मजे लूटो, बस हमारा आप ख्याल रखो, हम आपका। लेकिन इन लोगों को इस बात का ज़रा भी लिहाज नहीं कि क्रिकेट इस देश के रोजमर्रा की जिंदगी में पिसते आम आदमी का एकमात्र सहारा है, सुकून पाने का। लेकिन क्रिकेट को कंट्रोल करने वाले बेशर्मों को इससे क्या, वो तो बस इस सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को धीरे-धीरे हलाल कर रहे हैं, साथ ही हलाल हो रहा है हमारा क्रिकेट। ऐसे में क्यों नहीं देश का आम क्रिकेटप्रेमी ये कहे- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’!
एक भारतीय।
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