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Tuesday, July 30, 2013
एडिट पेज: सड़कों पर आतंक मचाते लफंगे बाइकर्स, मासूमियत ओढ़ते गैर-जिम्मेदार मां-बाप! An-Open-Letter-On-Death-Of-Delhi-Biker-By-Police-Firing
निमिष कुमार,
संपादक,
हिन्दी इन डॉट कॉम
बताया जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने वीवीआईपी अशोका रोड पर आधी रात को अपनी बाइक्स पर हुड़दंग मचाते बाईकर्स गैंग को रोकने की कोशिश की। आरोप है कि जब बाइकर्स ना रुके तो पुलिस ने गोली चलाई जिसमें एक लड़का मारा गया और दूसरा घायल है। सच्चाई क्या है, ये तो मामले की जांच पूरी होने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन कुछ बातें आप-हम सबने देखी। सबने अपने बेटे के लिए न्यूज़ चैनलों पर आंसू बहाती मां को देखा। जो चीख-चीखकर कह रही थी कि उसका बेटा निर्दोष है। लेकिन कुछ सवाल शायद उस मां से किसी ने नहीं पूछे, क्योंकि ऐसे मौकों पर हमारी भीड़ दिमागी तौर पर विवेकशून्य हो जाती है, और भावनाओं को भड़काकर हुड़दंग मचाने का मौका ढूंढने लगती है। हमें बस मौका चाहिए सरकारी बसों के कांच तोड़ने का, ट्रैफिक रोककर दूसरों को परेशान करने का, सरकारी वाहनों में आग लगाने का, पुलिस पर पथराव का। दरअसल ये पब्लिक आक्रोश हमारी जिंदगी में नाकामी का गुस्सा है, जो हम ऐसे मौकों पर निकालने की कोशिश करते हैं। चलिेए अब मुद्दे की बात पर लौटते हैं। क्या किसी ने उस ‘बेचारी’ बनती मां से पूछा कि देवीजी, आप का बेटा आधी रात को सड़कों पर हुड़दंग कर रहा था और आपको पता नहीं? बेटे को बाइक नहीं आती, इसे कैसे साबित करेंगी आप, क्योंकि बिना लाइसेंस के बाइक दौड़ाना तो ऐसी औलादों के लिए शान होती है? ये कहना कि मेरा बेटा शराब नहीं पीता, एक हास्यापद बयान लगता है क्योंकि इस तरह का कोई १८-२० साल का लड़का अपने मां-बाप से पूछकर शराब पीना शुरु नहीं करता? ऐसी संगत के लड़़के अपने दोस्तों की जमात में खुद को मर्द साबित करने के लिए शराब पीना शुरु करते हैं। ज़रा सोचिए, रातों में बाइकों पर लफंगों की तरफ चिल्लाते, शोर मचाते करियर के नाम पर नाकाम मध्यमवर्गीय परिवारों के ऐसे लड़कें क्या अपने दोस्तों से ये कहेंगें- यार, मम्मी से पूछकर आता हूं कि पैग लूं क्या? यदि ऐसा होगा, तो उन बिगड़ैल दोस्तों के क्या कमेंट्स होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
मुझे इस मां के रुदन को देखकर कुछ साल पहले की दिल्ली की कुछ घटनाएं याद आती हैं। न्यूज़ चैनलों के बीच तब खुद को स्थापित करने की दौड़ जारी थी। ऐसे वक्त में खबर आई, एक जवान होती नाबालिग लड़की घर से गायब है। नव-धनॉड्य मां-बाप ने न्यूज़ चैनलों के कैमरे देखते ही जो रोना-धोना शुरु किया, कि सारा देश सकते में आ गया। आरोप था कि लड़की को अगवा किया गया है, और पुलिस निकम्मी है। पुलिस के आला-अधिकारी हरकत में आए और जल्दी ही सारे मामले का खुलासा हो गया। हमेशा किटी पॉर्टीज़, लेडीज़ प्रोग्रामों, ब्यूटी पॉर्लर में व्यस्त रहने वाली उस उम्रदराज नव-धनाड्य महिला की सोलह साल की बेटी छह महिने की गर्भवती थी, और अपने नाबालिग ब्वॉयफ्रेंड के साथ एक दूरदराज के झोलाछाप अस्पताल में चुपचाप गर्भपात कराने गई थी। इस गैरकानूनी हरकत में ज्यादा समय लगना था, इसीलिए उन नाबालिगों ने ये सारा ड्रामा रचा था। जब पांसा पलटा, तो मां किसी कोने में ऐसी दुबकी कि नजर ही नहीं आई। मीडिया ने सवाल पूछे कि क्या उस गैर-जिम्मेदार मां को अपने ही घर में, अपनी ही आंखों के सामने छह महीने की गर्भवती नाबालिग बेटी नहीं दिखी? डॉक्टर हैरान थे, पुलिस हैरान थी, समाज विज्ञानी हैरान थे। मालूम चला कि नए-नए अमीर बने उस परिवार में सब अपनी-अपनी ‘मस्ती’ में लगे थे।
दूसरी घटना। एक अकेली मां ने छाती पीटना शुरु की। यहां भी कहानी वही। जवान होती नाबालिग लड़की मरी पाई गई। बताया गया कि लड़की अपनी पढ़ाई प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में कर रही थी और एक प्रॉप्रटी एजेंट के ऑफिस में बतौर रिशेपनिस्ट काम कर रही थी। मां ने मीडिया में आकर बहुत कोहराम मचाया, तो पुलिस ने जांच तेज की। सच जो निकला वो चौकाने वाला था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला कि वो नाबालिग लड़की सहमति से बार-बार सेक्स करवाने की आदी थी। वो भी लंबे समय से। लड़की शराब का सेवन लंबे समय से कर रही थी, और जब वो मृत पाई गई, तब वो गर्भवती थी। जब मां से इस बारे में पूछा गया तो मां चुप हो गई। जांच में सामने आया कि प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में पढ़ाई करने वाली उस लड़की को हजारों रुपये की सैलरी मिलती थी, जितनी उस वक्त एक अच्छा-खासा इंजीनियर या एमबीए नहीं पाता था। उसके पास इतना महंगा मोबाइल सेट मिला, जो उस वक्त सिर्फ और सिर्फ बहुत अमीर लोगों के पास ही देखा जाता था। लड़की की मां ने बताया कि उसकी रिशेपशनिस्ट का काम करने वाली लड़की देर रात ऑफिस से लौटती थी। मालूम नहीं क्यों वो चल नहीं पाती थी, इसीलिए उसका मालिक उसे अपनी ऑलिशान कार से घर भिजवाता था, वो भी ड्राइवर के साथ। पुलिस जांच से उठे कई सवालों का उस मां के पास कोई जवाब नहीं था- आपकी लड़की के पास इतना महंगा मोबाइल फोन कैसे आया, जो उसकी एक साल की तनख्वाह के बराबर है? आपकी लड़की के पास इतने महंगे, ब्रांडेड कपड़ें कैसे आए? आपकी लड़की एक रिशेपशिस्ट थी, फिर उसे आधी रात को मालिक की ऑलिशान कार मय ड्राइवर क्यों छोड़ने आती थी, आपने पूछा? आपकी महज स्कूल में बतौर प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर पढ़ने वाली लड़की को इतनी तनख्वाह क्यों दी जा रही थी? क्या आपको पता था कि आपकी नाबालिग लड़की लंबे समय से शराब का सेवन कर रही थी? क्या आपको पता था कि आपकी नाबालिग लड़की सेक्स की आदतन थी? ऐसे कई सवालों का जवाब उस ‘बेचारी’ मां के पास नहीं था, जो अपनी लड़की के मरने की खबर पर मीडिया कैमरों के सामने छाती पीट रही थी।
तीसरी घटना, जो आप सब के जहन में ताजा होगी। आप-हम सब ने हरियाणा के मंत्री गोपाल कांडा और उसकी कर्मचारी गीतिका शर्मा के बारे में सुना है। कम उम्र की महज स्कूल पास, एयरहोस्टेस का कोर्स की हुई गीतिका शर्मा गोपाल कांडा की कंपनी में डायरेक्टर थी। उसे ऑलिशान कारें घर छोड़ने आती थी। उसके मां-बाप गोपाल कांडा के साथ मुंबई घूमने आए थे। गीतिका गोवा में कांडा के कैसिनो, बार को भी संभालती थी। उसकी सुसाइड के बाद पता चला कि वो भी शराब और सेक्स की आदी थी। इतना ही नहीं गोपाल कांडा उसके साथ गुदा मैथुन तक करता था। अब सवाल उठते हैं, क्या गीतिका की मां को ये सब नहीं पता था? क्या उस औरत के मन में ये सवाल कभी नहीं आया कि मेरी जैसे-तैसे स्कूल पास लड़की में ऐसा क्या था कि वो कुछ ही साल में एक कंपनी की डायरेक्टर बना दी जाती है? उसे ऑलिशॉन कारें घर छोड़ने आती हैं? कैसे उसे हर महीनें हजारों तनख्वाह मिलती है, जो एक इंजीनियर- एमबीए के लिए सपना हो? ऐसी तमाम घटनाएं दरअसल हमारे देश के बदलते परिदृश्य का कच्चा चिठ्ठा खोलती है। ऐसे में कई बार सच्चाई होने पर भी शक होने लगता है। जैसे इसी घटना को लो। क्या उस मां-बाप ने कभी अपने बेटे से नहीं पूछा कि वो देर रात अपने दोस्तों के साथ कौन-सा काम करता है? यदि वो उस रात किसी काम से गया था, तो वो काम कौन-सा था? कहीं यहां भी तो मामला 16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में चलती बस में लड़की के साथ हुए घिनौने बलात्कार के समान नहीं है? जिसमें उन तमाम दरिंदों के मां-बाप ने बस पैदा करके अपनी औलादों को दुनिया में पलने और बड़े होकर समाज में दरिंदगी और गंदगी फैलाने के लिए छोड़ दिया था?
अब आइए बताते हैं कि दिल्ली का वो बाईकर्स गैंग वाला मामला क्या है। दिल्ली शहर सामाजिक तौर पर कई हिस्सों में बटां हुआ है। एक राष्ट्रपति भवन, संसद के आस-पास का लुटियन्स ज़ोन, जहां सड़कों के दोनों ओर कतार से बड़े-बड़े बंगले बने हुए होते हैं, जिसमें मंत्री, जज, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी रहते हैं। दूसरा, दक्षिणी दिल्ली, जहां शहर के तथाकथित अमीर लोग रहते हैं, इस इलाके में महंगे रेस्त्रां हैं, शोरुम्स हैं, बार है, दुकानें हैं। तीसरा है, यमुना पार का इलाका या दिल्ली का वो इलाका जहां कभी गरीब और अब मध्यमवर्गीय हो चुका दिल्ली का समाज रहता है। ये वो लोग है, जो कभी गरीब थे, लेकिन अब ‘जिंदगी में बस पैसा ही कमाना है जी’ मुहावरे को रटते हुए कुछ कमा चुके हैं। ऐसे माहौल में पले-बढ़े बच्चे कभी दिल्ली के बेहतरीन कॉलेजों में दाखिला नहीं पाते, क्योंकि वो इसके लायक साबित नहीं होते हैं। उनकी जगह देशभर से आए बच्चे सेंट स्टीफन्स, हिदूं, रामजस, श्रीराम, वैंकटेश, मिरांडा जैसे कॉलेजों में पढ़ते हैं। अपने ही शहर में प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में दिल्ली के नॉर्थ कैंपस के कॉर्रेोसपोंन्डेंट सेंटर में दाखिला लेकर ये खुद के दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने के ईगो को पूरा कर लेते हैं। स्कूल के दिनों से लड़की, सेक्स, शराब, पैसा की बेइंतहां चाह इस तरह के लड़कों को पढा़ई से ज्यादा कमाई की ओर धकेल देती है, और ये कम उम्र में ‘किसी भी तरह माल कमाने की जुगत’ में लग जाते हैं। नतीजा, कुछ ही समय में ये बेहतर नौकरी और बेहतर करियर की दौड़ से बाहर हो चुके होते हैं। इनका यही फ्रस्टेशन दिल्ली की सड़कों पर आधी रात को निकलता है। अपने तंग गलियों वाले घरों से निकलकर ये लोग उस दिल्ली में जा पहुंचते हैं, जहां ये चाह कर भी नहीं रह सकते। वो होता है राष्ट्रपति भवन, संसद के आस-पास का वीवीआईपी इलाका। यहीं किसी रात होता है इनका हुड़दंग। ये कोई पहली बार नहीं कि पुलिस से इन बाईकर्स की जंग हुई हो। पुलिस बरसों से इनका तमाशा देखती आई है, लेकिन कभी इनको पूरी तरह रोकने की हिम्मत नहीं कर पाई। सच्चाई तो ये है कि सैकड़ों बाईक पर सवार ये लफंगें जब दिल्ली के उस वीवीआईपी इलाके से निकलते हैं, तो एक अराजक भीड़ की तर्ज पर होते हैं। जो कुछ भी कर सकते हैं, दिल्ली गैंगरेप जैसी घटना की पुर्नरावृति भी।
एक सवाल। क्या हम दिल्ली गैंगरेप जैसी घटना की पुनरॉवृर्ति की राह देख रहे हैं? क्या हम इंतजार कर रहे हैं कि हमारे यहां भी एक नकारी युवा पीढ़ी अमेरिका की तर्ज पर अपनी बाईक पर हुड़दंग मचाने निकले और अपनी जिंदगी की नाकामी की गुस्सा देश के आम आदमी पर निकाले? पुलिस ने गोली मारकर गलत किया, लेकिन क्या वो लड़के सही कर रहे थे? क्या सड़कों पर समूह बनाकर दहशत फैलाने का अधिकार हम ऐसे लफंगों को दे सकते हैं? क्या लफंगों की मौत पर कोहराम मचाने वाले मां-बाप को अब दोषी नहीं ठहराना चाहिए? क्या हमारी सरकार को ये नहीं करना चाहिए, जिसमें मां-बाप सुरक्षा एजेंसियों को ये इत्तला दें कि उनका बेटा आंतकी, लुटेरा, चोर, भ्रष्ट्र या लफंगा बन चुका है? याद कीजिए ऐसे ही कुछ लोगों के विलाप के चलते हमारी सरकार ने तीन आतंकियों को काबुल ले जाकर छोड़ा था, और पूरी दुनिया के सामने हम एक घुटने टेकने वाले राष्ट्र के रुप में अपमानित हुए थे। आज के बिगड़ते हालातों में अब समय आ चुका है कि सरकार को कड़े कदम उठाने ही होंगे, जो इन बाइक पर सवार लफंगों और उनके मासूम बनकर आंसू बहाते गैर-जिम्मेदार मां-बाप पर कानून की लगाम लगा सके।
एक भारतीय।
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