Friday, August 19, 2011

Cartoon: Anna Hazare: PM Statement:


Delhi Police : Anna Hazare: डॉक्‍टर हुए फेल, राजघाट पर पुलिस से भी तेज दौड़ कर अन्‍ना ने दिखाई फिटनेस

नई दिल्ली. सेहत पर उठ रहे सवालों को खारिज करने के लिए शुक्रवार को अन्‍ना हजारे ने 'परीक्षा' दी। अनशन के लिए रामलीला मैदान पहुंचने से पहले राजघाट गए अन्‍ना ने दौड़ कर यह साबित करने की कोशिश की कि वह पूरी तरह फिट हैं। उनके साथ चल रहे पुलिसकर्मी भी दौड़ने लगे, लेकिन अन्‍ना ने पुलिसकर्मियों को पीछे छोड़ दिया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन कर रहे गांधीवादी अन्ना हजारे के अनशन में डॉक्टरों की सलाह से बदलाव आ गया है। पहले यह आमरण अनशन था जो अब डॉक्टरों की अन्ना हजारे की सेहत के बारे मे चेतावनी के बाद बेमियादी अनशन कर दिया गया है। शुक्रवार को डॉक्‍टरों ने बताया कि तीन दिन के अनशन के बाद उनका वजन तीन किलो कम हो गया है। डॉक्टरों ने बताया है कि अन्‍ना का ब्लड प्रेशर भी घटकर 88/160 हो गया है। बुधवार को टीम अन्ना को मुंबई के डॉक्टरों से अन्ना की सेहत के बारे में चेतावनी मिली थी। इसे ध्‍यान में रख कर अन्‍ना के अनशन को आमरण से बदल कर बेमियादी कर दिया गया है।


अप्रैल में जंतर-मंतर पर हुए अनशन से अन्ना की सेहत पर असर पड़ा था और उन्हें मुंबई के सांचेती इंस्टीट्यूट ऑफ आर्थोपेडिक्स में भर्ती होना पड़ा था। उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बुधवार को टीम अन्ना को फोन किया और कहा कि अन्ना को यह संदेश दिया जाए कि वह अपनी सेहत का ख्याल रखें। डॉक्टरों ने कहा कि जब वह अप्रैल में अस्‍पताल में भर्ती हुए थे तो उनकी हालत खराब थी। यह अनशन की वजह से ही था। लगातार अनशन करने की वजह से उनकी सेहत खराब होती रही है। अब उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत है।

कल भी किरण बेदी ने साफ किया था कि अन्ना का यह आंदोलन आमरण अनशन नहीं है बल्कि बेमियादी अनशन है। किरण ने कहा था कि यह धरना और आंदोलन तब तक चलता रहेगा जब तक सरकार इस देश को मजबूत जन लोकपाल नहीं देती।

Delhi Police : Anna Hazare & Congress: BBC Hindi :'अन्ना के दस के मुक़ाबले कांग्रेस के पास सौ हैं': कांग्रेस

केंद्रीय मंत्री और लोकपाल विधेयक के गठन के लिए बनी समिति के सदस्य रहे सलमान ख़ुर्शीद का कहना है कि अन्ना हज़ारे के समर्थन में जितने लोग बाहर निकले हैं वो पूरा देश नहीं है और उनके दस की तुलना में कांग्रेस के पास सौ हैं.

वे अन्ना हज़ारे के आंदोलन को अहिंसक भी नहीं मानते और कहते हैं कि देश के संविधान को कुचलना एक गंभीर क़िस्म की हिंसा है.

बीबीसी संवाददाता प्रतीक्षा घिल्डियाल से हुई बातचीत में उन्होंने अन्ना हज़ारे और उनके समर्थकों को चुनौती दी है कि अगर उन्हें लगता है कि इस संसद में उनको समर्थन नहीं मिल रहा है तो अगले चुनाव में वो अपने लोगों को जितवा कर संसद में ले आएँ.
'रास्ता निकालेंगे'


कोई ये समझे कि जो लोग निकल आए हैं यही पूरा भारत है तो मैं ये मानने के लिए तैयार नहीं हूँ. हज़ारों लाखों लोग हैं हमारे साथ हैं. हमने कोई आह्वान नहीं किया कि कांग्रेस के नौजवानों भी नहीं कहा कि निकलें बाहर और इनको बताएँ कि इनके दस के मुक़ाबले हमारे पास सौ हैं. लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे, क्यों करेंगे?

सलमान ख़ुर्शीद

इस सवाल पर कि हज़ारों लोगों के सड़क पर उतरने से क्या सरकार की छवि को धक्का नहीं पहुँचा है और वे चिंतित नहीं है, उन्होंने कहा, "है क्यों नहीं है. लेकिन ये हमारी चिंता है, हमें जीवित रहना है, हमें राजनीति करनी है. इस देश की सेवा करनी है.हम रास्ते निकालेंगे."

लेकिन इतने पर वे चुप नहीं हुए. उन्होंने आगे कहा, "कोई ये समझे कि जो लोग निकल आए हैं यही पूरा भारत है तो मैं ये मानने के लिए तैयार नहीं हूँ. हज़ारों लाखों लोग हमारे साथ हैं. हमने कोई आह्वान नहीं किया कि कांग्रेस के नौजवानों से कि वे बाहर निकलें और इनको बताएँ कि इनके दस के मुक़ाबले हमारे पास सौ हैं. लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे, क्यों करेंगे?"

क़ानून मंत्री सलमान ख़ुर्शीद का कहना था, "जो बात वो कह रहे हैं वो सही कह रहे हैं, हम उसे नकार नहीं रहे हैं हम सिर्फ़ ये कह रहे हैं कि इस बात को ढालकर ऐसा बना दो जिसे पूरी संसद स्वीकार कर ले और यदि आपको लगता है कि इस संसद में आपको लोग सहयोग नहीं करेंगे तो अगले चुनाव में आप अपने लोगों को जिताकर ले आइए."

आगे की रणनीति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "बिल को संसद के सामने लाए हैं वो संसदीय समिति के सामने है वो फिर से संसद में आएगा. सभी को फ़ैसला करना होगा, उन्हें भी जो हमारा विरोध कर रहे हैं, कि वो हमारा बिल चाहते हैं या अन्ना हज़ारे का. हमें अपने बिल पर विश्वास है."
'अहिंसक आंदोलन नहीं'

पूरे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में हिंसा और अहिंसा का अपना महत्व है, हिंसा कई क़िस्म की होती है. कोई गोली न चलाए, किसी को क्षति न पहुँचाए लेकिन संविधान को कुचल दे वो हिंसा नहीं है क्या. वो एक गंभीर क़िस्म की हिंसा है


सलमान ख़ुर्शीद

अन्ना हज़ारे की तुलना महात्मा गांधी से किए जाने पर भी सलमान ख़ुर्शीद को आपत्ति है.

उनका कहना है, "महात्मा गांधी अपने संविधान के तहत अपनी चुनी हुई सरकार का विरोध नहीं करते थे.वो बाहर से आए एक तानाशाह का विरोध करते थे."

अन्ना के आंदोलन के अहिंसक होने के सवाल पर उन्होंने कहा, "पूरे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में हिंसा और अहिंसा का अपना महत्व है, हिंसा कई क़िस्म की होती है. कोई गोली न चलाए, किसी को क्षति न पहुँचाए लेकिन संविधान को कुचल दे वो हिंसा नहीं है क्या. वो एक गंभीर क़िस्म की हिंसा है."

उनका कहना है कि ये कह देना कि हम अहिंसक हैं पर्याप्त नहीं है. सरकार का विरोध उस सीमा तक करें जिसका अधिकार हमारे संविधान ने हमें दिया है. धारा 144 भारत के क़ानून के तहत लगता है किसी तानाशाही के फ़रमान के तहत नहीं लगता है. अगर वह ग़लत लगता है तो अदालत उसे ठीक करती है."

उनका कहना है कि अगर कोई भ्रष्ट है तो उस पर कार्रवाई होगी लेकिन इससे सब लोग तो भ्रष्ट नहीं हो गए.

Delhi Police : Anna Hazare & Congress: BBC Hindi : अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचारी: कांग्रेस

अन्ना हज़ारे के 16 अगस्त से प्रस्तावित अनिश्चितकालीन अनशन से पहले रविवार को सरकार के कांग्रेसी मंत्रियों और पार्टी ने अन्ना के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है और उन पर आरोप भी लगाए.

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि सरकार के लोकपाल के मसौदे को जलाने का कोई तुक नहीं बनता है.

अन्ना के इस बयान पर कि कांग्रेस पार्टी को मिले दान का ब्यौरा दिया जाए, दिग्विजय सिंह का कहना था, '' अन्ना साहब हज़ारे को ये पता होना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी हर साल चुनाव आयोग के सामने हलफनामा दायर करती है और उसमें हर ब्योरा होता है.''

दिग्विजय सिंह का कहना था, '' किरन बेदी के संगठन को लेहमैन ब्रदर्स से दान मिलता है उसकी भी जांच होनी चाहिए.''

इससे पहले केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी, कपिल सिब्बल और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अन्ना को निशाना बनाया.

अंबिका सोनी और कपिल सिब्बल का कहना था कि वो टीम अन्ना के सवालों और आरोपों का जवाब दे रहे हैं. जब पत्रकारों ने ये पूछा कि क्या सरकार में बौखलाहट है और सरकार डरी हुई है तो दोनों मंत्रियों ने इससे इंकार किया.

सबसे तीखे अंदाज़ में कांग्रेस प्रवक्ता मनीश तिवारी ने अन्ना पर हमला किया और अन्ना हज़ारे को “भ्रष्टाचारी” बताया. उन्होंने वर्ष 2005 में जस्टिस पीबी सावंत कमीशन रिपोर्ट का हवाला दिया जिसने अन्ना हज़ारे के ट्रस्ट की जाँच में अनियमितता पाई गई थी.

मनीश तिवारी ने कहा, “भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनशन की बात करते हो. ऊपर से नीचे तक तुम भ्रष्टाचार में खुद लिप्त हो.”
जस्टिस सावंत रिपोर्ट

उधर जस्टिस सावंत ने बीबीसी से कहा, “रिपोर्ट में मैने लिखा था कि अन्ना की आज़ाद हिंद ट्रस्ट, जिसके वो अध्यक्ष थे, उसमें से करीब 2.2 लाख उन्होंने (अन्ना ने) खुद के सम्मान समारोह के लिए खर्च किए थे. ये तो ग़ैर-कानूनी है. ये भ्रष्टाचार ही होता है.”

सावंत कहते हैं कि चूँकि अन्ना ट्रस्ट के प्रमुख थे, वो ही खर्चे के लिए ज़िम्मेदार थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में किसी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफ़ारिश नहीं की थी.

रिपोर्ट में मैने लिखा था कि अन्ना की आज़ाद हिंद ट्रस्ट, जिसके वो अध्यक्ष थे, उसमें से करीब 2.2 लाख उन्होंने (अन्ना ने) खुद के सम्मान समारोह के लिए खर्च की थी. ये तो ग़ैर-कानूनी है. ये भ्रष्टाचार ही होता है

जस्टिस पीबी सावंत

दरअसल, अन्ना ने महाराष्ट्र सरकार के चार मंत्रियों के खिलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. उसके बाद एक मंत्री ने अन्ना के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे जिसकी जाँच के लिए कमेटी का गठन किया गया था.

उधर अन्ना हज़ारे ने मनीश तिवारी के आरोप के जवाब में कहा कि कमेटी का गठन उनके आग्रह की वजह से ही किया गया था ताकि उनके खिलाफ़ आरोपों की जाँच हो. उन्होंने सभी आरोपों को झूठा करार दिया.

अन्ना ने कहा, "पीबी सावंत ने कहीं नहीं लिखा कि अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचारी है. अभी भी मेरी कोशिश है कि जाँच हो. जब तक मेरे ऊपर लगे आरोपों की जाँच नहीं होती, तब तक मैं अनशन वापस नहीं लूँगा."

आरोपों से बेहद नाराज़ अन्ना हज़ारे ने कहा कि उनके पास एक झोला रहता है और वो लोगों से पैसे मांगकर खर्च चलाते हैं.

आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को चुनौती दी कि वो पार्टी को मिलने वाले चंदे की सूची वेबसाईट पर डाले, लेकिन मनीश तिवारी का कहना था कि पार्टी हर साल आयकर रिटर्न फ़ाईल करती है और सारी जानकारी सार्वजनिक तौर से उपलब्ध है.
पत्र पर आपत्ति

उधर अन्ना हज़ारे के शनिवार को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र की भाषा पर कपिल सिब्बल और अंबिका सोनी ने आपत्ति जताई.

सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा, “ये किस तरह की भाषा है? पिछले 64 सालों में किसी ने भी किसी प्रधानमंत्री पर इस तरह से व्यक्तिगत तौर पर अशोभनीय ढंग से हमला नहीं किया. ये महात्मा गाँधी की सोच का प्रतीक नहीं है.”

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि अन्ना को प्रदर्शन का हक़ तो है, “लेकिन आप कहाँ प्रदर्शन करेंगे, ये कोई संवैधानिक हक़ नहीं है. अगर आप कहें कि उच्चतम न्यायालय के सामने 5,000-10,000 लोग खड़े कर दूँगा, तो कोई मानेगा.”
प्रदर्शन ग़ैर-कानूनी

उधर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अनिश्चितकालीन प्रदर्शन को ग़ैर-कानूनी करार दिया.

उन्होंने कहा, “हमारे कानून में किसी को भी जान देने का हक़ नहीं है, इसलिए हमेशा से ही ये प्रणाली रही है कि प्रदर्शन निश्चित अवधि का होना चाहिए, ये अनिश्चित नहीं हो सकता.”

उधर अंबिका सोनी ने कहा कि अन्ना की ये सोच कि लोकपाल बिल पारित होने से देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा, तो ये सोच गलत है.

सोनी ने कहा, “क्या एक लोकपाल बिल भ्रष्टाचार खत्म कर देगा? लोगों को गुमराह किया जा रहा है कि लोकपाल बिल आया, भ्रष्टाचार खत्म हुआ.”

उन्होंने पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी पर चुटकी लेते हुए उनके दौर में दिल्ली में वकीलों के प्रदर्शन पर पुलिस बल के प्रयोग का वाकया याद दिलाया. अरविंद केजरीवाल के बारे में उन्होंने कहा, एक तरफ़ अरविंद खुद को आरटीआई कार्यकर्ता कहते हैं, जबकि यूपीए की सरकार ही आरटीआई कानून लेकर आई थी.

Delhi Police : Anna Hazare: कौन हैं अन्ना हज़ारे?

भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले 73 साल के सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे का मूल नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है.

अन्ना हज़ारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं.

उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है. अन्ना के छह भाई हैं. अन्ना का बचपन बहुत ग़रीबी में गुज़रा.

परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अन्ना मुंबई आ गए. यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. कठिन हालातों में परिवार को देख कर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया.
सेना में भर्ती
अन्ना

भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की अपील पर अन्ना सेना में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.

वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे. 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए. इस घटना ने अन्ना की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया.

घटना के 13 साल बाद अन्ना सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए. वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे.

1990 तक हज़ारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी.
आदर्श गांव

इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी. अन्ना ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया.

अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए. गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई.

इसके बाद उनकी लोकप्रियता में तेजी से इज़ाफा हुआ.

1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित अन्ना हज़ारे को अहमदनगर ज़िले के गाँव रालेगाँव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है.
'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन'
अन्ना

भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी

अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब उन्होंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरूआत की.

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की. ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप.

अन्ना हज़ारे ने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था.

सरकार ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा. घोलाप ने उनके खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा कर दिया.

लेकिन अन्ना इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हुई. हालांकि उस वक़्त के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया.

एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया. लेकिन अन्ना हज़ारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए.
सरकार विरोधी मुहिम

रालेगाँव सिद्धी गांव में अन्ना इसी मंदिर में रहते हैं.

2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए.

हज़ारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा. तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया.

नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.

1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना के अधिकार क़ानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी. आख़िरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस क़ानून के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा.

बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार क़ानून पारित किया.

कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो अन्ना हज़ारे अनशन का ग़लत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करते हैं और कई राजनीतिक विरोधियों ने अन्ना का इस्तेमाल किया है.

कुछ विश्लेषक अन्ना हज़ारे को निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है.

Delhi Police : Anna Hazare: सरकार की समझ पर सवाल, अन्ना की जनताकत को समझने की महाभूल

दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अख़बारों ने अन्ना हज़ारे और उनके समर्थकों पर दिल्ली पुलिस की ओर से की गई कार्रवाई की निंदा की है और इसके लिए सरकार की समझ पर सवाल उठाए हैं.

अधिकांश अख़बारों ने अपनी संपादकीय टिप्पणियों में कहा है कि सरकार चाहती तो इससे बचा जा सकता था.

अख़बारों ने सवाल उठाए हैं कि क्या ये संभव है कि अन्ना हज़ारे की बात मानकर संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर उनकी मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पारित करवाया जा सके.

कुछ ने विपक्षी दलों को भी आड़े हाथों लिया है और इस पूरे मामले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाए हैं.
'राजनीतिक मूर्खता'

'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है कि एक गांधीवादी नेता को गिरफ़्तार करके सरकार न केवल नागरिक समाज के हाथों खेल गई बल्कि उसने आमलोगों को भड़का दिया जो सरकार में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार से नाराज़ हैं.

अख़बार ने लिखा है, "सरकार ने एक दंतविहीन लोकपाल विधेयक लाकर अपना कोई भला नहीं किया है. यदि सरकार अन्ना हज़ारे की टीम के साथ अपनी बातचीत के आधार पर एक कड़ा विधेयक लाती तो वो इस आंदोलन की हवा निकाल सकती थी."

अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा

हिंदू की संपादकीय टिप्पणी

'हिंदू' ने आंदोलन से निपटने के लिए सरकार के रवैए के ख़िलाफ़ सबसे कड़ी टिप्पणियाँ की हैं.

अख़बार लिखता है, "नैतिक अधिकार से रहित एक भ्रष्ट सरकार के पास एक वैधानिक जनआक्रोश से तर्कसंगत ढंग से निपटने की तैयारी ही नहीं है."

'हिंदू' ने लिखा है कि समय समय पर होता है कि ऐसी परिस्थितियों में सरकार में अफ़रातफ़री मच जाती है और वे ऐसे निर्णय लेती है जिसके बारे में सरकार से बाहर हर व्यक्ति को समझ में आ रहा होता है कि ये 'राजनीतिक मूर्खता'है.

अख़बार ने लिखा है, "अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा."

'हिंदुस्तान टाइम्स'ने इस घटनाक्रम की तुलना विश्व कप से की है और कहा है कि जिस तरह दोनों टीमों के कप्तान अपनी रणनीति बनाते हैं, यहाँ भी बनाई गई थी लेकिन ये समझना कठिन नहीं है कि कौन ज़्यादा दूरदर्शी नीतियाँ बना रहा है.

अख़बार ने कहा है कि जिस काम को सरकार कुशलता के साथ कर सकती थी उसे उसने ख़ुद बिगाड़ लिया है.

उसकी सलाह है कि खेल से बाहर होने से पहले सरकार को किसी अच्छी टीम की तरह 'प्लान-बी' के साथ सामने आना चाहिए.
समझौते की सलाह
अख़बार

अख़बारों ने कहा है कि सरकार को भ्रष्टाचार के निपटने में सख़्ती दिखानी होगी

अंग्रेज़ी के अख़बारों की तरह हिंदी के अख़बारों ने भी सरकार को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझने की सलाह दी है.

'दैनिक हिंदुस्तान' ने कहा है कि सरकार की संवादहीनता की वजह से जनता को ये समझाना कठिन हो गया कि अन्ना की टीम ज़िद पर अड़ी हुई है. अख़बार का कहना है, "लचीलेपन से संवाद का रास्ता बनाए रखा जा सकता था और फिर से देश में जयप्रकाश नारायण या वीपी सिंह के आंदोलन जैसा माहौल बनाने से बचा जा सकता था. अगर सरकार लचीलापन दिखाती तो इस बात का भी यक़ीनन असर होता कि आंदोलनकारी हठधर्मिता दिखा रहे हैं."

अख़बार का कहना है कि बुनियादी मुद्दा लोकपाल या जनलोकपाल नहीं है. बुनियादी मुद्दा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनता की नाराज़गी है.

अपनी संपादकीय टिप्पणी में हिंदुस्तान ने सलाह दी है, "देर अब भी नहीं हुई है. अगर फिर से बातचीत की पहल की जाए और तकनीकी नुक़्तों पर जूझने की बजाय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझौते हुए किसी समझौते पर पहुँचा जाए. समाज और व्यवस्था के बीच टकराव नहीं सहयोग का माहौल देश की तरक्की के लिए ज़रुरी है."

'जनसत्ता' ने लिखा है कि यह साफ़ दिख रहा है कि निषेधाज्ञा और गिरफ़्तारियों के साथ बल पर इन जन आंदोलन से सरकार नहीं निपट सकती.

ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा

नवभारत टाइम्स

'दैनिक जागरण' ने संपादकीय में लिखा है, "केंद्रीय सत्ता न केवल अहंकार से ग्रस्त है बल्कि उसे उस जनता की भावनाओं की भी परवाह नहीं है जिसके कारण शासन की बागडोर उसके हाथों में है."

अख़बार ने हिंदू की ही तरह से सरकार को सलाह दी है, "सच्चाई यह है कि सरकार ने पिछले सात साल में कोरे आश्वासन देने के अवावा कुछ नहीं किया है. इसके लिए उसे न केवल अपनी भूल सुधारनी होगी बल्कि ऐसे क़दम उठाने होंगे जिससे देश का विश्वास फिर क़ायम हो सके."

'नवभारत टाइम्स' अपनी टिप्पणी में सवाल उठाया है, "क्या प्रशासन का दमनकारी रवैया ज़रुरी है? सरकार अगर अन्ना को अनशन कर लेने देती तो शायद तनाव इतना न बढ़ता. लेकिन अब इस क़दम से आंदोलन को और बल मिलेगा और उनको जनसमर्थन बढ़ेगा यह सरकार के बौद्धिक दिवालिएपन का सूचक है."

उसने विपक्षी दलों के रवैए पर भी निशाना साधा है और कहा है कि 'विपक्ष चाहता है कि जब चाहे अन्ना पर बोले और जब चाहे चुप रहे.'

'नवभारत टाइम्स'की संपादकीय में लिखा गया है, "ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा."

'दैनिक भास्कर' ने पहले पन्ने पर विशेष टिप्पणी की है जिसमें कहा गया है कि सरकार को जनता के सामने झुकने की आदत डाल लेनी चाहिए.

Delhi Police : Anna Hazare: अन्ना और सोशल मीडिया

अन्ना हज़ारे के आंदोलन में लोगों को एकजुट करने की दिशा में सोशल मीडिया ख़ासकर फेसबुक और ट्विटर का खासा इस्तेमाल हो रहा है.

अन्ना की रिहाई को लेकर बनी अनिश्चितता में लोग फेसबुक और टि्वटर के ज़रिए ही जानकारियां जुटा रहे हैं.

लोग इन माध्यमों पर न केवल सरकार के प्रति अपने गुस्से का इज़हार कर रहे हैं बल्कि लोकपाल और जनलोकपाल पर भी अच्छी ख़ासी बहस कर रहे हैं.


फेसबुक पर भ्रष्टाचार विरोधी लोगों ने सरकार को ही निशाने पर लिया है और मंत्रियों तक की आलोचना की है. उधर ट्विटर के ज़रिए अमरीका और ब्रिटेन में रह रहे लोग भी अपनी बात पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे हैं.

ट्विटर एक बार फिर प्रदर्शनकारियों और अन्ना समर्थकों का प्रिय हो गया है.

16 और 17 अगस्त को दुनिया भर में जितने ट्विट किए गए हैं उसमें अन्ना का विषय आठवें नंबर पर रहा.

ट्विटों में न केवल अन्ना के समर्थन में एकजुट होने की अपील की गई है बल्कि प्रधानमंत्री को भी निशाने पर लिया गया है.

कई स्थानों पर छात्रों ने ट्विट कर के अपने साथियों से कॉलेजों का बहिष्कार करने की अपील की है तो कहीं कहीं फिल्म स्टारों ने ट्विट कर के लोगों से विरोध जताने की अपील की है.

फेसबुक पर एक पन्ना भी बना है इंडिया एगेनस्ट करप्शन जिसके ज़रिए लोगों को एकजुट किया जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि मिस्र के तहरीर चौक पर हुए प्रदर्शनों में फेसबुक ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि मिस्र में टीवी चैनलों पर प्रतिबंध था जबकि भारत में ऐसा नहीं है.

फेसबुक पर भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए अन्ना का समर्थन करें नाम से भी एक पन्ना है जिसे लाखों लोगों ने लाइक किया है.

अन्ना के समर्थकों ने यूट्यूब का भी इस्तेमाल किया है. वीडियो शेयर करने वाली इस वेबसाइट के ज़रिए अन्ना हज़ारे के नाम पर करीब 500 वीडियो देखे जा सकते हैं जो विभिन्न टीवी चैनलों से लिए गए हैं.