नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश पुलिस के खाते में एक और उपलब्धि। फर्जी मुठभेड़ के मामले में उप्र पुलिस देश में अव्वल है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के अनुसार उप्र में इस तरह की मुठभेड़ में बीते तीन साल में 120 लोग मारे जा चुके हैं। सिर्फ इसी वर्ष अब तक छह लोग मारे गए। मारे गए लोगों के परिजनों ने आयोग से न्याय की गुहार लगाई है। मणिपुर इस क्रम में दूसरे और पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर हैं।
पिछले तीन वर्षो में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मिली शिकायतें पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रही हैं। वर्ष 2010-11 में आयोग को मिली शिकायतों में आरोप लगाया गया था कि उप्र पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में करीब चालीस लोगों को मार डाला। इसी तरह वर्ष 2008-09 और 2009-10 में यह संख्या 71 रही।
इसके बाद पूर्वोत्तर में मणिपुर ऐसा राज्य है, जहां फर्जी मुठभेड़ के सर्वाधिक मामले हैं। यहां तीन साल में 60 लोग मारे जा चुके हैं। जबकि इसी अवधि में पश्चिम बंगाल में 23, तमिलनाडु व मध्यप्रदेश में 15-15, उड़ीसा में 12, जम्मू-कश्मीर व छत्तीसगढ़ में 11-11 और दिल्ली में सबसे कम 3 मामले मिले।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार देश में वर्ष 2008-09 में जून तक आयोग के पास इस तरह के 369 मामले आए। इनमें से 90 मामलों में पुलिस की भूमिका संदेहास्पद साबित हो रही है। ऐसे में आयोग ने फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों के लिए साढ़े चार करोड़ रुपये की वित्तीय राहत देने की संस्तुति की है।
No comments:
Post a Comment