Wednesday, August 7, 2013

HR Police: Faridabad: Police on women safety: हरियाणा पुलिस का नया प्रयोग, फरीदाबाद में महिला कमेटी देंगीं महिला सेफ्टी पर इनपुट.

इंडस्ट्रियल हब में महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने के लिए पुलिस प्लानिंग तैयार करने में जुटी हुई है। इसके तहत पुलिस महिलाओं से पता करेगी लगाएगी कि वे खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं। वहीं, लोकल लेवल पर उन्हें होने वाली समस्याओं के बारे में भी जाना जाएगा। इसके लिए महिला सुरक्षा कमिटी के माध्यम से सर्वे कराए जाएंगे। इस संबंध में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने सोमवार को एक मीटिंग भी की थी। जानकारी के मुताबिक, इस कवायद के पहले चरण में पुलिस ने सोमवार को प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मीटिंग करके उनके सुझाव लिए थे। अधिकारियों ने कंपनियों में महिला सुरक्षा कमिटी का गठन करने, कार्य स्थलों पर यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए अलग सेल बनाने, महिलाओं को प्रशिक्षण देने, महिला पीसीआर की संख्या बढ़ाने के सुझाव दिए हैं। अब इस प्लैनिंग में पुलिस महिलाओं से पता लगाएगी कि वे कहां खुद को सेफ और कहां अनसेफ महसूस करती हैं। पुलिस कमिश्नर ए. एस. चावला ने बताया कि जागरूकता के चलते महिलाओं की शिकायत पर पुलिस ने काफी मनचलों के खिलाफ कार्रवाई की है। अब लोकल लेवल पर महिलाएं खुद को कितना सेफ महसूस करती हैं, जानने की कोशिश की जाएगी। इसके लिए जल्द ही सेफ सिटी फॉर विमिन ऑपरेशन शुरू किया जाएगा। साभार- नभाटा.

Saturday, August 3, 2013

Mumbai Police: Police Health: मुंबई पुलिस के २०० जवानों, अधिकारियों का फ्री मेडिकल चेकअप.

MUMBAI: Asian Heart Institute (AHI) organized a free cardiac health check-up camp for Mumbai police at Bandra-Kurla Complex (BKC) police station last week. Over 200 policemen including police officers and male and female constables from seven police stations in zone 8 got their health check-up done in the medical camp. "We often forget to thank people who do so much for us, as a part of their duty. This is Asian Hearts way of saying thank you," said Dr Ramakanta Panda, VC and cardio-vascular thoracic surgeon, AHI. Doctors checked these policemen and women for blood sugar, ECG, body mass index (BMI) and other such essential tests to evaluate their vital health parameters. Police personnel were then provided with free consultation by doctors and dieticians. The camp intends to cover over 1000 police personnel. "All police officers work at least 14 hours a day and many of them show little concern about their health. We are delighted with this initiative taken by Asian Heart Institute providing us with a free health check-up camp. These kinds of camps help us monitor our health issues and also take positive steps in maintaining sound health," said Chandrakant Bhosle, senior police inspector, BKC police station. courtsy- TOI.

Wednesday, July 31, 2013

एडिट पेज: भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’!An-Open-Letter-On-Bcci-Team-India-Corrupt-Practices-In-Cricket

निमिष कुमार, संपादक, हिन्दी इन डॉट कॉम
देश का आम आदमी गुस्से में हैं। एक तो पहले ही टमाटर, प्याज, हरी सब्जियां हर दूसरे दिन जेब पर डाका डाल रही हैं। खाने का तेल हो या आटा, दूध हो या दही, सबकुछ अब महंगा, और महंगा होता जा रहा है। ऊपर से बिजली महंगी। पानी पर म्युनिसिपल टैक्स महंगा। बच्चों के स्कूल की फीस महंगी। शादी-ब्याह, रिश्तेदारी में आओ-जाओ तो रेल, बस का भाड़ा महंगा। बचा-कुचा दम जो बचता है, वो रोज हमारे नेताजी लोगों के घोटालों, अधिकारियों के करप्शन की खबरें निकाल देती हैं। सरकारी नौकरियां बची नहीं, प्राइवेट नौकरियों का कोई भरोसा नहीं किस दिन शाम को निकलते वक्त निकाल दिए जाएं। ऊपर से टीवी पर रोज कोई ना कोई नई चीज की विज्ञापन। कभी नई कार, तो कभी नए मोबाइल का। बीबी-बच्चों की फरमाईश के बोझ तले दबता एक भारतीय थोड़ा बहुत सुकून, आनंद, मजा पाता है तो क्रिकेट मैच के दौरान। यार-दोस्तों के साथ बैठक जमती है। हर गेंद पर, हर शॉट पर गाली के साथ कमेंट हवा में तैरते हैं। इंडिया हारी तो दिमाग का दही, और जीती तो पाकिस्तान की ऐसी-तैसी। अब उसमें भी बीसीसीआई के चंद जादूगर रोज कोई ना कोई बखेड़ा खड़ा करें, तो इंडिया के आम आदमी को गुस्सा तो आएगा ही। एक तो पहले ही जिंदगी में बवाल कटा हुआ है, और ऊपर से ये बीसीसीआई वाले बात-बिना बात कोई ना कोई बवाल काटे रहते हैं। अब ऐसे में देश का आम क्रिकेटप्रेमी गुस्से में कहेगा ही- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’! देखिए देश के आम क्रिकेटप्रेमी को आपके बीसीसीआई के दंद-फंद से कोई मतलब नहीं। उसे नहीं जानना कि बीसीसीआई का ऑफिसियल स्टेट क्या है? उसे नहीं पता करना कि बीसीसीआई क्यों और कैसे ‘टीम इंडिया’ का माई-बाप बन बैठा? या बीसीसीआई नाम की ये चिड़िया कैसे हमारे पूरे क्रिकेट को कंट्रोल कर रही है? उसे तो बस इससे मतलब है कि उसका पसंदीदा क्रिकेट उसे देखने को मिलता रहे, फिर वो ज़ी स्पोटर्स दिखाए या सोनी, वो निबंस ले या कोई और। देश का आम क्रिकेटप्रेमी तो बस ये ही चाहता है कि मैच में वो जो देखे, वो सच्चा हो। बाद में मालूम ना चले कि- अरे साला, रमेश शर्त इसीलिए जीत गया क्योंकि उसके बुकी ने उसे पहले ही बता दिया था कि उस ओवर में इतने रन बनने वाले हैं? या क्यों एक बॉलर बिना पसीना निकाले टॉवल कभी जेब में तो कभी कमर में खोंस रहा था? फिर किसी न्यूज़ चैनल पर स्टिंग देखने को ना मिले, जिसमें आईपीएल में खेलने आए नए-नवेले हमारे क्रिकेट खिलाड़ी हर बाल, हर शॉट का रेट लगा रहे हो, वो भी बड़ी बेशर्मी से। बिना इस बात को सोचे कि वो क्रिकेट नहीं देश के आम क्रिकेटप्रेमी के भरोसे को सरेआम नीलाम कर रहे हैं। फिर ना मालूम चले कि बीसीसीआई के लाड़ले मुंबई के किसी रेस्त्रां में रेव पॉर्टी में अधनंगी देसी-विदेशी मॉड्ल्स के साथ ड्रग्स लेते, शराब में चूर, पानी में तरबतर अमीरजादों के साथ पकड़े जाएं, या खुद बीसीसीआई श्रीनिवासन के घर का मामला सड़क पर सड़कछाप तरीके से उछलता दिखे, जिसमें उनका बेटा आरोप लगाए कि उसका बीसीसीआई अध्यक्ष बाप उसे और उसके पुरुष दोस्त को पिटवाता है। उसके बीसीसीआई अध्यक्ष बाप को अपने बेटे का पुरुषों के साथ रहना, सेक्स करना या किसी भी तरह का ऐसा-वैसा संबंध रखना मंजूर नहीं है। भले वो मामला बीसीसीआई अध्यक्ष का घरेलू हो, लेकिन हमारे क्रिकेट को कंट्रोल करने वाले माई-बाप के तौर पर बदनामी तो देश के क्रिकेट की भी होती है ना? मैच फिक्सिंग तो रुकती नहीं, लेकिन बच्चों को खेल के बाद मैदान में जाने से रोकने पर बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान से सारे क्रिकेट पदाधिकारी भिड़ जाते हैं, ये सोचकर कि चलो, ‘फिलम स्टार’ से लड़ेंगें, तो टीवी वाले पूछने आएंगें, और बीबी मोहल्ले वालों को इतराकर बताएगी, चुन्नू के पापा टीवी पर दिखे। अब ऐसी बीसीसीआई, जो क्रिकेट तो इज्जत से करवा नहीं पा रही, क्यों नहीं आम क्रिकेटप्रेमी के गुस्से का शिकार हो, और क्यों नहीं देश का आम क्रिकेटप्रेमी बोले- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’! बताया जाता है कि बीसीसीआई नाम की ये संस्था चेन्नई में सोसाइटी पंजीकरण विभाग के अंर्तगत रजिस्ट्रर्ड है। अंग्रेजों के जमाने से ये भारत में क्रिकेट का संचालन करते आ रही है या यूं कहें तो अंग्रेजों ने जैसे क्लर्क पैदा करने के लिए ‘मैकाले की शिक्षा नीति’ बनाई थी, वैसे ही अपने साथ खेलने के लिए गुलाम देशों की टींमें बनवा दी। बीसीसीआई भी अंग्रेजों की उस अय्याशी का एक बेशर्म हरम हो सकता है? अब वो पूरे भारत का क्रिकेट कंट्रोल करती है। किस हक से ये किसी ने पूछा नहीं? इसे लेकर कभी संसद में मौजूद तमाम बवालप्रेमी सासंदों में से किसी ने सवाल खड़े नहीं किए होंगें? या किए भी होंगें तो वो दबा दिए गए, क्योंकि उस पर कोई कार्रवाई हुई हो ऐसा तो होता नहीं दिखता। बीसीसीआई की दादागिरी इतनी की अपनी टीम को हमारे देश की टीम बता देते हैं- टीम इंडिया। वहीं बात हो कि कोई साबुन कंपनी कह दे ये भारत का साबुन है, इसके अलावा कोई दूसरे साबुन से नहाने की हिम्मत ना करें। जब ऐसा नहीं हो सकता तो फिर बीसीसीआई को हमारे क्रिकेट पर एकाधिकार जमाने का, हमारे क्रिकेट को कंट्रोल करने का अधिकार किसने दिया? कौन है वो नेता लोग? क्यों घिग्घी बन जाती है हमारे शेर बनने वाले तमाम नेता लोगों की बीसीसीआई के सामने? क्यों नहीं बीसीसीआई से ‘टीम इंडिया’ चुनने का अधिकार छिन कर सरकार अपनी बनाई किसी बॉडी के पास रखती। देश की हॉकी टीम, कब्बडी टीम तो सरकार चुनती है, फिर क्रिकेट टीम क्यों नहीं? खेल मंत्रालय बीसीसीआई के सामने पंगु क्यों होता दिखता है? क्यों खेल मंत्रालय के मंत्री-अधिकारी बीसीसीआई के सामने घिघियाते दिखते हैं? सूत्रों की मानें तो बीसीसीआई का सालाना हिसाब-किताब कुछ पांच हजार करोड़ से ज्यादा का होता है। बीसीसीआई दुनियाभर के तमाम क्रिकेट बोर्डों में सबसे अमीर है, इतना अमीर की दूसरे बीसीसीआई के सामने भिखारी-से साबित होते हैं। बीसीसीआई की परिसंपत्तियों, बाजार में साख का आंकलन करें, तो बीसीसीआई हजारों करोड़ की मालिक है। चलिए सीधे शब्दों में समझते हैं। पूरी दुनिया में भारत के पास सबसे बड़ा बाजार याने उपभोक्ता वर्ग है, जो पूरे यूरोप या अमेरिका की जनसंख्या से भी ज्यादा बताया जाता है। इसीलिए अमेरिका से लेकर दुनिया का हर विकसित देश अपने देशों की कंपनियों के दबाव में आकर भारत सरकार को हड़काता रहता है कि भारत की आर्थिक सीमाएं खोलों, जिससे उनके देश की कंपनियां आप-हम लोगों की जेबें खाली कर सकें और सारा माल समेटकर अपने देश ले जा सकें। ऐसे देश में क्रिकेट ही एक ऐसा माध्यम है जिस पर सवार होकर ये विदेशी कंपनियां दुनिया के इस सबसे बड़े बाजार में या उपभोक्ता वर्ग को अपना माल टिका सकती हैं। तो अब आप ही सोचिए, बीसीसीआई कौन-सी सोने की खान पर बैठी हुई है? ऐसा नहीं कि ये गणित बीसीसीआई और उस पर अपनी चौधराहट जमाए पवार, डालमिया, श्रीनिवासन, जेटली, लालू, सिंधिया, फारुख अब्दुल्ला जैसों को नहीं मालूम। इन सबकों मालूम है इसीलिए ही तो बीसीसीआई पर सरकार कोई कार्रवाई करने से डर रही है। लगता है कि बीसीसीआई की चांडाल चौकड़ी ने इसीलिए ही तो नहीं नेताओं को अपने-अपने राज्यों की क्रिकेट एसोसियेशनों में बैठा रखा है। मानों कहा हो- हुजूर, आप पॉलिटिक्स से ऊब जाओं, जो क्रिकेट की रंगीनियों के मजे लूटो, बस हमारा आप ख्याल रखो, हम आपका। लेकिन इन लोगों को इस बात का ज़रा भी लिहाज नहीं कि क्रिकेट इस देश के रोजमर्रा की जिंदगी में पिसते आम आदमी का एकमात्र सहारा है, सुकून पाने का। लेकिन क्रिकेट को कंट्रोल करने वाले बेशर्मों को इससे क्या, वो तो बस इस सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को धीरे-धीरे हलाल कर रहे हैं, साथ ही हलाल हो रहा है हमारा क्रिकेट। ऐसे में क्यों नहीं देश का आम क्रिकेटप्रेमी ये कहे- भाड़ में जाए BCCI, हमें दो ‘हमारा क्रिकेट’, कर दो ‘क्रिकेट का राष्ट्रीयकरण’! एक भारतीय। (पिछले एडिट पेज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) http://hindi.in.com/editorchoice.html

Tuesday, July 30, 2013

Delhi Police: Batala House Encounter: शहीद पुलिस इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा का हत्यारा आतंकी शहजाद अब सड़ेगा सारी उम्र जेल में.

बटला हाउस एनकांउटर केस में सजा का ऐलान हो गया है. दिल्‍ली की साकेत कोर्ट ने इंस्‍पेक्‍टर मोहन चंद्र शर्मा की हत्‍या के दोषी शहजाद अहमद को उम्र कैद की सजा सुनाई है. इसी के साथ कोर्ट ने उसके ऊपर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. इससे पहले बटला हाउस एनकाउंटर में साकेत कोर्ट ने गुरुवार को शहजाद को मुजरिम करार दिया था. कोर्ट ने उसे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या का दोषी माना था. यही नहीं उसे हेड कांस्टेबल बलवंत और राजबीर सिंह की हत्या की कोशिश का भी गुनहगार माना गया. अदालत ने शहजाद को आईपीसी की धारा 302, 307, 353, 186, 333, 34 और आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिया था. पूरा मामला 19 सितंबर 2008 यानी दिल्ली धमाकों के 6 दिन बाद का है. स्पेशल सेल ने आतंकवादियों को पकड़ने के लिए बटला हाउस इलाके के फ्लैट एल-18 में दबिश दी थी. इस दौरान हुए एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हुए थे, जबकि कुछ पुलिसवाले जख्मी हुए थे. एनकाउंटर में साजिद और आतिफ नाम के दो आतंकवादियों की मौत हो गई थी, जबकि शहजाद और जुनैद मौके से भाग निकलने में कामयाब रहे. बाद में शहजाद को पुलिस ने आजमगढ़ से गिरफ्तार किया था, जबकि जुनैद अब तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया है. बटला हाउस एनकांटर के बाद ये आरोप भी लगाए जा रहे थे मुठभेड़ फर्जी थी लेकिन साकेत कोर्ट के फैसले के बाद ये साफ हो गया कि एनकाउंटर फर्जी नहीं था. courtsy- aajtak.

एडिट पेज: सड़कों पर आतंक मचाते लफंगे बाइकर्स, मासूमियत ओढ़ते गैर-जिम्मेदार मां-बाप! An-Open-Letter-On-Death-Of-Delhi-Biker-By-Police-Firing

निमिष कुमार, संपादक, हिन्दी इन डॉट कॉम
बताया जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने वीवीआईपी अशोका रोड पर आधी रात को अपनी बाइक्स पर हुड़दंग मचाते बाईकर्स गैंग को रोकने की कोशिश की। आरोप है कि जब बाइकर्स ना रुके तो पुलिस ने गोली चलाई जिसमें एक लड़का मारा गया और दूसरा घायल है। सच्चाई क्या है, ये तो मामले की जांच पूरी होने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन कुछ बातें आप-हम सबने देखी। सबने अपने बेटे के लिए न्यूज़ चैनलों पर आंसू बहाती मां को देखा। जो चीख-चीखकर कह रही थी कि उसका बेटा निर्दोष है। लेकिन कुछ सवाल शायद उस मां से किसी ने नहीं पूछे, क्योंकि ऐसे मौकों पर हमारी भीड़ दिमागी तौर पर विवेकशून्य हो जाती है, और भावनाओं को भड़काकर हुड़दंग मचाने का मौका ढूंढने लगती है। हमें बस मौका चाहिए सरकारी बसों के कांच तोड़ने का, ट्रैफिक रोककर दूसरों को परेशान करने का, सरकारी वाहनों में आग लगाने का, पुलिस पर पथराव का। दरअसल ये पब्लिक आक्रोश हमारी जिंदगी में नाकामी का गुस्सा है, जो हम ऐसे मौकों पर निकालने की कोशिश करते हैं। चलिेए अब मुद्दे की बात पर लौटते हैं। क्या किसी ने उस ‘बेचारी’ बनती मां से पूछा कि देवीजी, आप का बेटा आधी रात को सड़कों पर हुड़दंग कर रहा था और आपको पता नहीं? बेटे को बाइक नहीं आती, इसे कैसे साबित करेंगी आप, क्योंकि बिना लाइसेंस के बाइक दौड़ाना तो ऐसी औलादों के लिए शान होती है? ये कहना कि मेरा बेटा शराब नहीं पीता, एक हास्यापद बयान लगता है क्योंकि इस तरह का कोई १८-२० साल का लड़का अपने मां-बाप से पूछकर शराब पीना शुरु नहीं करता? ऐसी संगत के लड़़के अपने दोस्तों की जमात में खुद को मर्द साबित करने के लिए शराब पीना शुरु करते हैं। ज़रा सोचिए, रातों में बाइकों पर लफंगों की तरफ चिल्लाते, शोर मचाते करियर के नाम पर नाकाम मध्यमवर्गीय परिवारों के ऐसे लड़कें क्या अपने दोस्तों से ये कहेंगें- यार, मम्मी से पूछकर आता हूं कि पैग लूं क्या? यदि ऐसा होगा, तो उन बिगड़ैल दोस्तों के क्या कमेंट्स होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मुझे इस मां के रुदन को देखकर कुछ साल पहले की दिल्ली की कुछ घटनाएं याद आती हैं। न्यूज़ चैनलों के बीच तब खुद को स्थापित करने की दौड़ जारी थी। ऐसे वक्त में खबर आई, एक जवान होती नाबालिग लड़की घर से गायब है। नव-धनॉड्य मां-बाप ने न्यूज़ चैनलों के कैमरे देखते ही जो रोना-धोना शुरु किया, कि सारा देश सकते में आ गया। आरोप था कि लड़की को अगवा किया गया है, और पुलिस निकम्मी है। पुलिस के आला-अधिकारी हरकत में आए और जल्दी ही सारे मामले का खुलासा हो गया। हमेशा किटी पॉर्टीज़, लेडीज़ प्रोग्रामों, ब्यूटी पॉर्लर में व्यस्त रहने वाली उस उम्रदराज नव-धनाड्य महिला की सोलह साल की बेटी छह महिने की गर्भवती थी, और अपने नाबालिग ब्वॉयफ्रेंड के साथ एक दूरदराज के झोलाछाप अस्पताल में चुपचाप गर्भपात कराने गई थी। इस गैरकानूनी हरकत में ज्यादा समय लगना था, इसीलिए उन नाबालिगों ने ये सारा ड्रामा रचा था। जब पांसा पलटा, तो मां किसी कोने में ऐसी दुबकी कि नजर ही नहीं आई। मीडिया ने सवाल पूछे कि क्या उस गैर-जिम्मेदार मां को अपने ही घर में, अपनी ही आंखों के सामने छह महीने की गर्भवती नाबालिग बेटी नहीं दिखी? डॉक्टर हैरान थे, पुलिस हैरान थी, समाज विज्ञानी हैरान थे। मालूम चला कि नए-नए अमीर बने उस परिवार में सब अपनी-अपनी ‘मस्ती’ में लगे थे। दूसरी घटना। एक अकेली मां ने छाती पीटना शुरु की। यहां भी कहानी वही। जवान होती नाबालिग लड़की मरी पाई गई। बताया गया कि लड़की अपनी पढ़ाई प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में कर रही थी और एक प्रॉप्रटी एजेंट के ऑफिस में बतौर रिशेपनिस्ट काम कर रही थी। मां ने मीडिया में आकर बहुत कोहराम मचाया, तो पुलिस ने जांच तेज की। सच जो निकला वो चौकाने वाला था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला कि वो नाबालिग लड़की सहमति से बार-बार सेक्स करवाने की आदी थी। वो भी लंबे समय से। लड़की शराब का सेवन लंबे समय से कर रही थी, और जब वो मृत पाई गई, तब वो गर्भवती थी। जब मां से इस बारे में पूछा गया तो मां चुप हो गई। जांच में सामने आया कि प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में पढ़ाई करने वाली उस लड़की को हजारों रुपये की सैलरी मिलती थी, जितनी उस वक्त एक अच्छा-खासा इंजीनियर या एमबीए नहीं पाता था। उसके पास इतना महंगा मोबाइल सेट मिला, जो उस वक्त सिर्फ और सिर्फ बहुत अमीर लोगों के पास ही देखा जाता था। लड़की की मां ने बताया कि उसकी रिशेपशनिस्ट का काम करने वाली लड़की देर रात ऑफिस से लौटती थी। मालूम नहीं क्यों वो चल नहीं पाती थी, इसीलिए उसका मालिक उसे अपनी ऑलिशान कार से घर भिजवाता था, वो भी ड्राइवर के साथ। पुलिस जांच से उठे कई सवालों का उस मां के पास कोई जवाब नहीं था- आपकी लड़की के पास इतना महंगा मोबाइल फोन कैसे आया, जो उसकी एक साल की तनख्वाह के बराबर है? आपकी लड़की के पास इतने महंगे, ब्रांडेड कपड़ें कैसे आए? आपकी लड़की एक रिशेपशिस्ट थी, फिर उसे आधी रात को मालिक की ऑलिशान कार मय ड्राइवर क्यों छोड़ने आती थी, आपने पूछा? आपकी महज स्कूल में बतौर प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर पढ़ने वाली लड़की को इतनी तनख्वाह क्यों दी जा रही थी? क्या आपको पता था कि आपकी नाबालिग लड़की लंबे समय से शराब का सेवन कर रही थी? क्या आपको पता था कि आपकी नाबालिग लड़की सेक्स की आदतन थी? ऐसे कई सवालों का जवाब उस ‘बेचारी’ मां के पास नहीं था, जो अपनी लड़की के मरने की खबर पर मीडिया कैमरों के सामने छाती पीट रही थी। तीसरी घटना, जो आप सब के जहन में ताजा होगी। आप-हम सब ने हरियाणा के मंत्री गोपाल कांडा और उसकी कर्मचारी गीतिका शर्मा के बारे में सुना है। कम उम्र की महज स्कूल पास, एयरहोस्टेस का कोर्स की हुई गीतिका शर्मा गोपाल कांडा की कंपनी में डायरेक्टर थी। उसे ऑलिशान कारें घर छोड़ने आती थी। उसके मां-बाप गोपाल कांडा के साथ मुंबई घूमने आए थे। गीतिका गोवा में कांडा के कैसिनो, बार को भी संभालती थी। उसकी सुसाइड के बाद पता चला कि वो भी शराब और सेक्स की आदी थी। इतना ही नहीं गोपाल कांडा उसके साथ गुदा मैथुन तक करता था। अब सवाल उठते हैं, क्या गीतिका की मां को ये सब नहीं पता था? क्या उस औरत के मन में ये सवाल कभी नहीं आया कि मेरी जैसे-तैसे स्कूल पास लड़की में ऐसा क्या था कि वो कुछ ही साल में एक कंपनी की डायरेक्टर बना दी जाती है? उसे ऑलिशॉन कारें घर छोड़ने आती हैं? कैसे उसे हर महीनें हजारों तनख्वाह मिलती है, जो एक इंजीनियर- एमबीए के लिए सपना हो? ऐसी तमाम घटनाएं दरअसल हमारे देश के बदलते परिदृश्य का कच्चा चिठ्ठा खोलती है। ऐसे में कई बार सच्चाई होने पर भी शक होने लगता है। जैसे इसी घटना को लो। क्या उस मां-बाप ने कभी अपने बेटे से नहीं पूछा कि वो देर रात अपने दोस्तों के साथ कौन-सा काम करता है? यदि वो उस रात किसी काम से गया था, तो वो काम कौन-सा था? कहीं यहां भी तो मामला 16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में चलती बस में लड़की के साथ हुए घिनौने बलात्कार के समान नहीं है? जिसमें उन तमाम दरिंदों के मां-बाप ने बस पैदा करके अपनी औलादों को दुनिया में पलने और बड़े होकर समाज में दरिंदगी और गंदगी फैलाने के लिए छोड़ दिया था? अब आइए बताते हैं कि दिल्ली का वो बाईकर्स गैंग वाला मामला क्या है। दिल्ली शहर सामाजिक तौर पर कई हिस्सों में बटां हुआ है। एक राष्ट्रपति भवन, संसद के आस-पास का लुटियन्स ज़ोन, जहां सड़कों के दोनों ओर कतार से बड़े-बड़े बंगले बने हुए होते हैं, जिसमें मंत्री, जज, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी रहते हैं। दूसरा, दक्षिणी दिल्ली, जहां शहर के तथाकथित अमीर लोग रहते हैं, इस इलाके में महंगे रेस्त्रां हैं, शोरुम्स हैं, बार है, दुकानें हैं। तीसरा है, यमुना पार का इलाका या दिल्ली का वो इलाका जहां कभी गरीब और अब मध्यमवर्गीय हो चुका दिल्ली का समाज रहता है। ये वो लोग है, जो कभी गरीब थे, लेकिन अब ‘जिंदगी में बस पैसा ही कमाना है जी’ मुहावरे को रटते हुए कुछ कमा चुके हैं। ऐसे माहौल में पले-बढ़े बच्चे कभी दिल्ली के बेहतरीन कॉलेजों में दाखिला नहीं पाते, क्योंकि वो इसके लायक साबित नहीं होते हैं। उनकी जगह देशभर से आए बच्चे सेंट स्टीफन्स, हिदूं, रामजस, श्रीराम, वैंकटेश, मिरांडा जैसे कॉलेजों में पढ़ते हैं। अपने ही शहर में प्राइवेट स्टूडेंट के रुप में दिल्ली के नॉर्थ कैंपस के कॉर्रेोसपोंन्डेंट सेंटर में दाखिला लेकर ये खुद के दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने के ईगो को पूरा कर लेते हैं। स्कूल के दिनों से लड़की, सेक्स, शराब, पैसा की बेइंतहां चाह इस तरह के लड़कों को पढा़ई से ज्यादा कमाई की ओर धकेल देती है, और ये कम उम्र में ‘किसी भी तरह माल कमाने की जुगत’ में लग जाते हैं। नतीजा, कुछ ही समय में ये बेहतर नौकरी और बेहतर करियर की दौड़ से बाहर हो चुके होते हैं। इनका यही फ्रस्टेशन दिल्ली की सड़कों पर आधी रात को निकलता है। अपने तंग गलियों वाले घरों से निकलकर ये लोग उस दिल्ली में जा पहुंचते हैं, जहां ये चाह कर भी नहीं रह सकते। वो होता है राष्ट्रपति भवन, संसद के आस-पास का वीवीआईपी इलाका। यहीं किसी रात होता है इनका हुड़दंग। ये कोई पहली बार नहीं कि पुलिस से इन बाईकर्स की जंग हुई हो। पुलिस बरसों से इनका तमाशा देखती आई है, लेकिन कभी इनको पूरी तरह रोकने की हिम्मत नहीं कर पाई। सच्चाई तो ये है कि सैकड़ों बाईक पर सवार ये लफंगें जब दिल्ली के उस वीवीआईपी इलाके से निकलते हैं, तो एक अराजक भीड़ की तर्ज पर होते हैं। जो कुछ भी कर सकते हैं, दिल्ली गैंगरेप जैसी घटना की पुर्नरावृति भी। एक सवाल। क्या हम दिल्ली गैंगरेप जैसी घटना की पुनरॉवृर्ति की राह देख रहे हैं? क्या हम इंतजार कर रहे हैं कि हमारे यहां भी एक नकारी युवा पीढ़ी अमेरिका की तर्ज पर अपनी बाईक पर हुड़दंग मचाने निकले और अपनी जिंदगी की नाकामी की गुस्सा देश के आम आदमी पर निकाले? पुलिस ने गोली मारकर गलत किया, लेकिन क्या वो लड़के सही कर रहे थे? क्या सड़कों पर समूह बनाकर दहशत फैलाने का अधिकार हम ऐसे लफंगों को दे सकते हैं? क्या लफंगों की मौत पर कोहराम मचाने वाले मां-बाप को अब दोषी नहीं ठहराना चाहिए? क्या हमारी सरकार को ये नहीं करना चाहिए, जिसमें मां-बाप सुरक्षा एजेंसियों को ये इत्तला दें कि उनका बेटा आंतकी, लुटेरा, चोर, भ्रष्ट्र या लफंगा बन चुका है? याद कीजिए ऐसे ही कुछ लोगों के विलाप के चलते हमारी सरकार ने तीन आतंकियों को काबुल ले जाकर छोड़ा था, और पूरी दुनिया के सामने हम एक घुटने टेकने वाले राष्ट्र के रुप में अपमानित हुए थे। आज के बिगड़ते हालातों में अब समय आ चुका है कि सरकार को कड़े कदम उठाने ही होंगे, जो इन बाइक पर सवार लफंगों और उनके मासूम बनकर आंसू बहाते गैर-जिम्मेदार मां-बाप पर कानून की लगाम लगा सके। एक भारतीय। (पिछले एडिट पेज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) http://hindi.in.com/editorchoice.html

Monday, July 29, 2013

Police Policy: HR Police: SC on Police Transfers: पुलिस ट्रांसफर पर पढ़े सुप्रीम कोर्ट का फैसला. SC order on transfer of police constabulary.

1 IN THE SUPREME COURT OF INDIA CIVIL APPELLATE JURISDICTION CIVIL APPEAL NOS. 8690-8701 OF 2010 [arising out of Special Leave Petitions (Civil) Nos. 18686-18697/2007] State of Haryana and others …….. Appellants -versus- Kashmir Singh and another etc. etc. …….. Respondents J U D G M E N T Markandey Katju, J. 1. Leave granted. 2. These appeals have been filed against the common impugned judgment of the Punjab and Haryana High Court dated 15.5.2006 in CWP Nos. 7695, 7607, 7665, 7837, 8636, 8704, 8814, 9117, 6941, 8018 and 8310 of 2006. 3. Heard learned counsel for the parties and perused the record. 4. The respondents herein were serving in various districts in the State of Haryana as Constables, Head Constables, Exemptee Head Constables, Assistant Sub-Inspectors and Sub-Inspectors (hereinafter in short as ASI and SI, respectively). They were ordered to be transferred to other districts and ranges by the Inspector General of Police. The respondents challenged the transfer orders contending that in view of the Punjab Police rules so far as Constables, Head Constables and Exemptee Constables are concerned, they could not be transferred outside the district, and so far as ASI and Sis are concerned, they could not be transferred outside the range. 5. This contention has been upheld by the Division Bench of the High court and hence these appeals. 6. With respect, we are unable to agree with the High Court. 7. Section 1 of the Indian Police Act 1861 defines a general police district’ as follows: “the words ‘genera police district’ shall embrace any presidency, State of place, or any part of any presidency, State or place, in which this Act shall be ordered to take effect”. 8. Section 2 of the Act states as follows : 2 “Constitution of the force. – the entire police establishment under a State government shall, for the purposes of this Act, be deemed to be one police force and shall be formally enrolled, and shall consist of such number of officers and men, and shall be constituted in such manner, as shall from time be ordered by the State Government”. 9. Section 4 of the Act states as follows : “Inspector-General of Police, etc. – the administration of the police throughout a general police-district shall be vested in an officer to be styled the InspectorGeneral of Police, and in such Deputy Inspector-General and Assistant InspectorGeneral as to the (State Government) shall seem fit. The administration of the Police throughout the local jurisdiction of the Magistrate of the district shall, under the general control and direction of such Magistrate, be vested in a District Superintendent and such Assistant District Superintendents as the (State Government) shall consider necessary”. 10. Thus a perusal of the relevant provisions of the Police Act clearly shows that the State Police is one integral unit and does not consist of separate independent units. The overall administrative control of the police in the State is with the InspectorGeneral of Police (now the Director-General of Police). 11. We may now also consider the relevant Rules in the Punjab Police rules 1934 (hereinafter referred to as the ‘Rules’). Rule 1.4 of the rules states as follows : “Rule 1.4 – Administrative Division: - the districts of the province are grouped in Ranges and the administration of all police within each such range is vested in a Deputy Inspector General under the control of the Inspector-General of Police. The training school is under the district control of the Inspector-General subject to such delegation of powers as he may make to one or other of the range Deputy Inspector General. The Criminal Investigation Department is administered by a Deputy Inspector General, who also supervises the Finger Print Bureau”. Rule 1.5 – Limits of jurisdiction and liability to transfer – All police officers appointed or enrolled in either of the two general police districts constitute one police force and are liable to, and legally empowered for, police duty, anywhere within the province. No sub-division of the force territorially or by classes, such as mounted and foot police, affects this principle.

Delhi Police: Batala House Encounter: इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा को गोली मारने वाले शहजाद को मिलेगी सज़ा। court to announce its verdict on accused Shahzaj in batala house encounter inspector murder

नयी दिल्ली : बटला हाउस एनकाउंटर मामले में दोषी करार दिये गये शहजाद को आज सजा सुनायी जायेगी. कोर्ट ने 25 जुलाई को इस मामले में शहजाद को दोषी करार दिया था. शहजाद को स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की हत्या मामले में सजा सुनायी जायेगी. शहजाद को स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या, हवलदार बलवंत व राजबीर सिंह की हत्या की कोशिश करने, सरकारी काम में बाधा डालने और उन पर हमला करने की धाराओं के तहत दोषी करार दिया था. अदालत ने सजा पर बहस और फैसले के लिए सोमवार की तिथि मुकर्रर की थी. 13 सितंबर 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनाट प्लेस, इंडिया गेट व ग्रेटर कैलाश में सीरियल बम धमाके हुए थे. इन बम धमाकों में 26 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हो गए थे. दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया था कि बम ब्लास्ट को आतंकी गुट इंडियन मुजाहिदीन ने अंजाम दिया है. courtsy- agnecies.