रायपुर। छत्तीसगढ़ में विशेष पुलिस अधिकारी [एसपीओ] से हथियार वापस लेने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद राज्य शासन ने अब नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में युवाओं को पुलिस में नौकरी देने के लिए शैक्षणिक और शारीरिक योग्यता में छूट देने का फैसला किया है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने शुक्रवार को यहा संवाददाताओं को बताया कि नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग के सभी जिलों में आरक्षक की भर्ती में जिले के स्थानीय निवासी युवक युवतियों को शैक्षणिक और शारीरिक योग्यता में छूट के लिए मंत्रिपरिषद ने सहमति दे दी है।
सिंह ने बताया कि राज्य में आरक्षक पद के लिए अनारक्षित, अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति वर्ग के अभ्यार्थियों के लिए शैक्षणिक योग्यता 10 वीं पास तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के लिए आठवीं पास है, लेकिन बस्तर क्षेत्र में शैक्षणिक योग्यता पाचवीं पास रखा गया है।
उन्होंने बताया कि इसी तरह शारीरिक योग्यता में भी छूट देने का फैसला किया गया है। राज्य में आरक्षक पद के लिए सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के अभ्यार्थियों की उंचाई 168 सेमी तथा अनुसूचित जनजाति के अभ्यार्थियों की उंचाई 153 सेमी होनी चहिए। बस्तर क्षेत्र में इसमें क्रमश: छूट देते हुए 163 सेमी तथा 150 सेमी कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि यह छूट केवल एसपीओ के लिए ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र के निवासी युवक-युवतियों के लिए लागू होगा।
एक सवाल के जवाब में रमन सिंह ने बताया कि इस छूट के बाद बस्तर क्षेत्र के लगभग 80 फीसदी विशेष पुलिस अधिकारियों को आरक्षक बनने का मौका मिल सकेगा। वहीं अन्य 20 फीसदी ऐसे एसपीओ जिनकी शैक्षणिक योग्यता इससे भी कम है उनके शैक्षणिक योग्यता में इजाफा करने का प्रयास किया जाएगा।
उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार को आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त करने और उन्हें माओवादियों के खिलाफ हथियारों से लैस करने से रोक दिया है। न्यायालय ने इस कदम को ''असंवैधानिक'' करार दिया है।
आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी [एसपीओ] नियुक्त करने और उन्हें हथियारों से लैस करने से छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र को मना करते हुए अदालत ने कहा है कि आदिवासी युवकों को एसपीओ नियुक्त करना ''असंवैधानिक'' है।
अदालत ने कहा है कि माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासियों की शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण सहित पात्रता मानदंड संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। वहीं उन्होंने कोया कमाडो और सलवा जुडूम का गठन को भी संविधान का उल्लंघन बताया है।
इधर, उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ सरकार विशेष पुलिस अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं क्योंकि सरकार का मानना है कि यदि एसपीओ से हथियार वापस ले लिए जाए तो वे नक्सलियों के निशाने पर आ जाएंगे। इसके बाद राज्य शासन ने विशेष पुलिस अधिकारियों को आरक्षक के पदों पर भर्ती करने के लिए शैक्षणिक और शारीरिक योग्यता में छूट देने का फैसला किया है।
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में सलवा जुडूम आदोलन की शुरूवात के बाद बस्तर क्षेत्र में आम लोगों ने नक्सलियों का विरोध करना शुरू कर दिया था। इस विरोध से नाराज नक्सलियों ने सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं की हत्या शुरू कर दी तब राज्य सरकार ने राज्य के बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले में 23 सलवा जुडूम राहत शिविर की स्थापना की थी। इन शिविरों में लगभग 50 हजार नक्सल पीड़ितों के लिए रहने की व्यवस्था की गई थी। राज्य सरकार के मुताबिक सलावा जुडूम स्वत:स्फूर्त आदोलन है और सरकार केवल आदोलन को सुरक्षा प्रदान कर रही थी।
बाद में राज्य सरकार ने क्षेत्र में विशेष पुलिस अधिकारियों की भी भर्ती शुरू कर दी। इन एसपीओ में सलवा जुडूम कार्यकर्ता और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली भी शामिल हो गए थे जो नक्सलियों के साथ लड़ाई में पुलिस की मदद करते हैं।
राज्य में वर्तमान में एसपीओ के 7500 पद स्वीकृत हैं तथा लगभग 4800 एसपीओ तैनात हैं। वहीं दंतेवाड़ा क्षेत्र में पुलिस अधिकारियों ने यहा के कोया जनजातियों के लड़के जो एसपीओ हैं तथा कुछ पुलिस के सिपाही हैं को शामिल कर कोया कमाडो बना दिया है। क्षेत्र में माना जाता है कि एसपीओ और कोया कमाडो के स्थानीय होने तथा क्षेत्र की अच्छी जानकारी होने के कारण यह राज्य में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हैं।
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