प्रदेश में इन दिनों पुलिस अधिकारियों का टोटा पड़ गया है। प्रदेश में एसपी के 83 पद महीनों से खाली चल रहे हैं, और कुछ तो सालों से खाली हैं। जिनके लिए सरकार को अधिकारी खोजे नहीं मिल रहे हैं। 1996 बैच के कई आईपीएस अधिकारियों की डीपीसी होनी अभी बाकी है जबकि अन्य राज्यों में 96 बैच के अधिकारियों को डीपीसी मिल चुकी है लेकिन यहां दिक्कत यह है कि 96 बैच के पुलिस अधिकारियों को डीआईजी के लिए प्रमोट कर दिया गया तो एसपी के 12 पद और खाली हो जाएंगे, तब यह संख्या 83 से बढ़कर 95 हो जाएगी। अब इन सभी अधिकारियों को इंतजार है देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का। दरअसल ये सारा विवाद 2008 में बनाई गई प्रदेश सरकार की नई नियमावली 8A से पैदा हुआ है। इस नियमावली के तहत प्रमोशन को आरक्षण देने के लिए परिणामी ज्येष्ठता सूची जारी की गई। इस नियमावली ने आरक्षित वर्ग के अधिकारियों को प्रमोशन के मामले में अपने बैच में नंबर-1 की पोजीशन पर पहुंचा दिया। आपको बता दें कि इस नियमावली के आने से पहले अधिकारियों की सीनियारिटी कमीशन के आधार पर तय होती थी, इसमें अगर किसी बैच में प्रमोशन के लिए 5 पद हैं तो पहले 4 जनरल और फिर एक आरक्षित वर्ग के अधिकारी को दिया जाता था लेकिन नियमावली 8A के आने के बाद यह सीनियारिटी परिणामी ज्येष्ठता सूची के आधार पर तय की जाने लगी। इस व्यवस्था ने प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी तरह से पलट दिया। अब प्रमोशन में पहले आरक्षित वर्ग के अधिकारी को वरीयता दी जाएग, इसके बाद जनरल वर्ग को। इस नियमावली का प्रभाव प्रांतीय पुलिस सेवा के वर्ष 82, 83 और 84 बैच तक तो कम नजर आया लेकिन इसके बाद 85 बैच से इस नियमावली की खामियां तेजी से सामने आने लगी। जिसके बाद पीपीएस कैडर का 1990 बैच का अधिकारी 1986 में आ गया और 1994 बैच का अधिकारी 1989 में आ गया। आलम ये हुआ कि कई जिलों में एसपी सिटी, सीओ सिटी से भी जूनियर हो गया।
प्रमोशन में आरक्षण का ये मामला केवल पीपीएस अधिकारियों को ही प्रभावित नहीं कर रहा है। बल्कि उत्तर प्रदेश के सभी विभागों के हजारों अधिकारी व कर्मचारी इस नियमावली से प्रभावित हैं और अपने प्रमोशन की बाट जोह रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सिंचाई विभाग के एक इंजीनियर ने इस नियमावली के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दायर की। जिसके बाद 4 जनवरी 2011 को जस्टिस प्रदीप कांत की फुल बेंच ने इस परिणामी ज्येष्ठता सूची को निरस्त करने का फैसला सुनाया। साथ ही नई नियमावली के तहत प्रमोट हुए अधिकारियों को डिमोट करने का भी फरमान जारी किया। हाईकोर्ट के इस फैसले को आरक्षण पाकर प्रमोट हुए अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रोन्नत अधिकारियों के डिमोशन संबंधी आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए बाकी फैसले पर स्टे कर दिया। तब से यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन है। प्रदेश के हजारों अधिकारियों, कर्मचारी अब अपने प्रमोशन के लिए सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश का इंतजार कर रहे हैं।
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