भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले 73 साल के सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे का मूल नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है.
अन्ना हज़ारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं.
उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है. अन्ना के छह भाई हैं. अन्ना का बचपन बहुत ग़रीबी में गुज़रा.
परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अन्ना मुंबई आ गए. यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. कठिन हालातों में परिवार को देख कर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया.
सेना में भर्ती
अन्ना
भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की अपील पर अन्ना सेना में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.
वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे.
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे. 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए. इस घटना ने अन्ना की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया.
घटना के 13 साल बाद अन्ना सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए. वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे.
1990 तक हज़ारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी.
आदर्श गांव
इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी. अन्ना ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया.
अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए. गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई.
इसके बाद उनकी लोकप्रियता में तेजी से इज़ाफा हुआ.
1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित अन्ना हज़ारे को अहमदनगर ज़िले के गाँव रालेगाँव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है.
'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन'
अन्ना
भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी
अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब उन्होंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरूआत की.
महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की. ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप.
अन्ना हज़ारे ने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था.
सरकार ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा. घोलाप ने उनके खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा कर दिया.
लेकिन अन्ना इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हुई. हालांकि उस वक़्त के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया.
एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया. लेकिन अन्ना हज़ारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए.
सरकार विरोधी मुहिम
रालेगाँव सिद्धी गांव में अन्ना इसी मंदिर में रहते हैं.
2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए.
हज़ारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा. तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया.
नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.
1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना के अधिकार क़ानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी. आख़िरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस क़ानून के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा.
बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार क़ानून पारित किया.
कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो अन्ना हज़ारे अनशन का ग़लत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करते हैं और कई राजनीतिक विरोधियों ने अन्ना का इस्तेमाल किया है.
कुछ विश्लेषक अन्ना हज़ारे को निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है.
पुलिस की खबरें, सिर्फ पुलिस के लिए ...... An International Police Blog for police personnels and their family, their works, their succes, promotion and transfer, work related issues, their emotions,their social and family activities, their issues and all which related to our police personnels.
Friday, August 19, 2011
Delhi Police : Anna Hazare: सरकार की समझ पर सवाल, अन्ना की जनताकत को समझने की महाभूल
दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अख़बारों ने अन्ना हज़ारे और उनके समर्थकों पर दिल्ली पुलिस की ओर से की गई कार्रवाई की निंदा की है और इसके लिए सरकार की समझ पर सवाल उठाए हैं.
अधिकांश अख़बारों ने अपनी संपादकीय टिप्पणियों में कहा है कि सरकार चाहती तो इससे बचा जा सकता था.
अख़बारों ने सवाल उठाए हैं कि क्या ये संभव है कि अन्ना हज़ारे की बात मानकर संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर उनकी मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पारित करवाया जा सके.
कुछ ने विपक्षी दलों को भी आड़े हाथों लिया है और इस पूरे मामले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाए हैं.
'राजनीतिक मूर्खता'
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है कि एक गांधीवादी नेता को गिरफ़्तार करके सरकार न केवल नागरिक समाज के हाथों खेल गई बल्कि उसने आमलोगों को भड़का दिया जो सरकार में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार से नाराज़ हैं.
अख़बार ने लिखा है, "सरकार ने एक दंतविहीन लोकपाल विधेयक लाकर अपना कोई भला नहीं किया है. यदि सरकार अन्ना हज़ारे की टीम के साथ अपनी बातचीत के आधार पर एक कड़ा विधेयक लाती तो वो इस आंदोलन की हवा निकाल सकती थी."
अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा
हिंदू की संपादकीय टिप्पणी
'हिंदू' ने आंदोलन से निपटने के लिए सरकार के रवैए के ख़िलाफ़ सबसे कड़ी टिप्पणियाँ की हैं.
अख़बार लिखता है, "नैतिक अधिकार से रहित एक भ्रष्ट सरकार के पास एक वैधानिक जनआक्रोश से तर्कसंगत ढंग से निपटने की तैयारी ही नहीं है."
'हिंदू' ने लिखा है कि समय समय पर होता है कि ऐसी परिस्थितियों में सरकार में अफ़रातफ़री मच जाती है और वे ऐसे निर्णय लेती है जिसके बारे में सरकार से बाहर हर व्यक्ति को समझ में आ रहा होता है कि ये 'राजनीतिक मूर्खता'है.
अख़बार ने लिखा है, "अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा."
'हिंदुस्तान टाइम्स'ने इस घटनाक्रम की तुलना विश्व कप से की है और कहा है कि जिस तरह दोनों टीमों के कप्तान अपनी रणनीति बनाते हैं, यहाँ भी बनाई गई थी लेकिन ये समझना कठिन नहीं है कि कौन ज़्यादा दूरदर्शी नीतियाँ बना रहा है.
अख़बार ने कहा है कि जिस काम को सरकार कुशलता के साथ कर सकती थी उसे उसने ख़ुद बिगाड़ लिया है.
उसकी सलाह है कि खेल से बाहर होने से पहले सरकार को किसी अच्छी टीम की तरह 'प्लान-बी' के साथ सामने आना चाहिए.
समझौते की सलाह
अख़बार
अख़बारों ने कहा है कि सरकार को भ्रष्टाचार के निपटने में सख़्ती दिखानी होगी
अंग्रेज़ी के अख़बारों की तरह हिंदी के अख़बारों ने भी सरकार को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझने की सलाह दी है.
'दैनिक हिंदुस्तान' ने कहा है कि सरकार की संवादहीनता की वजह से जनता को ये समझाना कठिन हो गया कि अन्ना की टीम ज़िद पर अड़ी हुई है. अख़बार का कहना है, "लचीलेपन से संवाद का रास्ता बनाए रखा जा सकता था और फिर से देश में जयप्रकाश नारायण या वीपी सिंह के आंदोलन जैसा माहौल बनाने से बचा जा सकता था. अगर सरकार लचीलापन दिखाती तो इस बात का भी यक़ीनन असर होता कि आंदोलनकारी हठधर्मिता दिखा रहे हैं."
अख़बार का कहना है कि बुनियादी मुद्दा लोकपाल या जनलोकपाल नहीं है. बुनियादी मुद्दा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनता की नाराज़गी है.
अपनी संपादकीय टिप्पणी में हिंदुस्तान ने सलाह दी है, "देर अब भी नहीं हुई है. अगर फिर से बातचीत की पहल की जाए और तकनीकी नुक़्तों पर जूझने की बजाय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझौते हुए किसी समझौते पर पहुँचा जाए. समाज और व्यवस्था के बीच टकराव नहीं सहयोग का माहौल देश की तरक्की के लिए ज़रुरी है."
'जनसत्ता' ने लिखा है कि यह साफ़ दिख रहा है कि निषेधाज्ञा और गिरफ़्तारियों के साथ बल पर इन जन आंदोलन से सरकार नहीं निपट सकती.
ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा
नवभारत टाइम्स
'दैनिक जागरण' ने संपादकीय में लिखा है, "केंद्रीय सत्ता न केवल अहंकार से ग्रस्त है बल्कि उसे उस जनता की भावनाओं की भी परवाह नहीं है जिसके कारण शासन की बागडोर उसके हाथों में है."
अख़बार ने हिंदू की ही तरह से सरकार को सलाह दी है, "सच्चाई यह है कि सरकार ने पिछले सात साल में कोरे आश्वासन देने के अवावा कुछ नहीं किया है. इसके लिए उसे न केवल अपनी भूल सुधारनी होगी बल्कि ऐसे क़दम उठाने होंगे जिससे देश का विश्वास फिर क़ायम हो सके."
'नवभारत टाइम्स' अपनी टिप्पणी में सवाल उठाया है, "क्या प्रशासन का दमनकारी रवैया ज़रुरी है? सरकार अगर अन्ना को अनशन कर लेने देती तो शायद तनाव इतना न बढ़ता. लेकिन अब इस क़दम से आंदोलन को और बल मिलेगा और उनको जनसमर्थन बढ़ेगा यह सरकार के बौद्धिक दिवालिएपन का सूचक है."
उसने विपक्षी दलों के रवैए पर भी निशाना साधा है और कहा है कि 'विपक्ष चाहता है कि जब चाहे अन्ना पर बोले और जब चाहे चुप रहे.'
'नवभारत टाइम्स'की संपादकीय में लिखा गया है, "ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा."
'दैनिक भास्कर' ने पहले पन्ने पर विशेष टिप्पणी की है जिसमें कहा गया है कि सरकार को जनता के सामने झुकने की आदत डाल लेनी चाहिए.
अधिकांश अख़बारों ने अपनी संपादकीय टिप्पणियों में कहा है कि सरकार चाहती तो इससे बचा जा सकता था.
अख़बारों ने सवाल उठाए हैं कि क्या ये संभव है कि अन्ना हज़ारे की बात मानकर संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर उनकी मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पारित करवाया जा सके.
कुछ ने विपक्षी दलों को भी आड़े हाथों लिया है और इस पूरे मामले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाए हैं.
'राजनीतिक मूर्खता'
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है कि एक गांधीवादी नेता को गिरफ़्तार करके सरकार न केवल नागरिक समाज के हाथों खेल गई बल्कि उसने आमलोगों को भड़का दिया जो सरकार में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार से नाराज़ हैं.
अख़बार ने लिखा है, "सरकार ने एक दंतविहीन लोकपाल विधेयक लाकर अपना कोई भला नहीं किया है. यदि सरकार अन्ना हज़ारे की टीम के साथ अपनी बातचीत के आधार पर एक कड़ा विधेयक लाती तो वो इस आंदोलन की हवा निकाल सकती थी."
अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा
हिंदू की संपादकीय टिप्पणी
'हिंदू' ने आंदोलन से निपटने के लिए सरकार के रवैए के ख़िलाफ़ सबसे कड़ी टिप्पणियाँ की हैं.
अख़बार लिखता है, "नैतिक अधिकार से रहित एक भ्रष्ट सरकार के पास एक वैधानिक जनआक्रोश से तर्कसंगत ढंग से निपटने की तैयारी ही नहीं है."
'हिंदू' ने लिखा है कि समय समय पर होता है कि ऐसी परिस्थितियों में सरकार में अफ़रातफ़री मच जाती है और वे ऐसे निर्णय लेती है जिसके बारे में सरकार से बाहर हर व्यक्ति को समझ में आ रहा होता है कि ये 'राजनीतिक मूर्खता'है.
अख़बार ने लिखा है, "अगर सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी को नहीं समझती है, वह लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों का सम्मान करते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक नहीं लाती है जो लोगों में दोबारा विश्वास पैदा कर सके तो सरकार को अगले चुनाव में इसका राजनीतिक मूल्य चुकाना पड़ेगा."
'हिंदुस्तान टाइम्स'ने इस घटनाक्रम की तुलना विश्व कप से की है और कहा है कि जिस तरह दोनों टीमों के कप्तान अपनी रणनीति बनाते हैं, यहाँ भी बनाई गई थी लेकिन ये समझना कठिन नहीं है कि कौन ज़्यादा दूरदर्शी नीतियाँ बना रहा है.
अख़बार ने कहा है कि जिस काम को सरकार कुशलता के साथ कर सकती थी उसे उसने ख़ुद बिगाड़ लिया है.
उसकी सलाह है कि खेल से बाहर होने से पहले सरकार को किसी अच्छी टीम की तरह 'प्लान-बी' के साथ सामने आना चाहिए.
समझौते की सलाह
अख़बार
अख़बारों ने कहा है कि सरकार को भ्रष्टाचार के निपटने में सख़्ती दिखानी होगी
अंग्रेज़ी के अख़बारों की तरह हिंदी के अख़बारों ने भी सरकार को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझने की सलाह दी है.
'दैनिक हिंदुस्तान' ने कहा है कि सरकार की संवादहीनता की वजह से जनता को ये समझाना कठिन हो गया कि अन्ना की टीम ज़िद पर अड़ी हुई है. अख़बार का कहना है, "लचीलेपन से संवाद का रास्ता बनाए रखा जा सकता था और फिर से देश में जयप्रकाश नारायण या वीपी सिंह के आंदोलन जैसा माहौल बनाने से बचा जा सकता था. अगर सरकार लचीलापन दिखाती तो इस बात का भी यक़ीनन असर होता कि आंदोलनकारी हठधर्मिता दिखा रहे हैं."
अख़बार का कहना है कि बुनियादी मुद्दा लोकपाल या जनलोकपाल नहीं है. बुनियादी मुद्दा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनता की नाराज़गी है.
अपनी संपादकीय टिप्पणी में हिंदुस्तान ने सलाह दी है, "देर अब भी नहीं हुई है. अगर फिर से बातचीत की पहल की जाए और तकनीकी नुक़्तों पर जूझने की बजाय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनभावना को समझौते हुए किसी समझौते पर पहुँचा जाए. समाज और व्यवस्था के बीच टकराव नहीं सहयोग का माहौल देश की तरक्की के लिए ज़रुरी है."
'जनसत्ता' ने लिखा है कि यह साफ़ दिख रहा है कि निषेधाज्ञा और गिरफ़्तारियों के साथ बल पर इन जन आंदोलन से सरकार नहीं निपट सकती.
ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा
नवभारत टाइम्स
'दैनिक जागरण' ने संपादकीय में लिखा है, "केंद्रीय सत्ता न केवल अहंकार से ग्रस्त है बल्कि उसे उस जनता की भावनाओं की भी परवाह नहीं है जिसके कारण शासन की बागडोर उसके हाथों में है."
अख़बार ने हिंदू की ही तरह से सरकार को सलाह दी है, "सच्चाई यह है कि सरकार ने पिछले सात साल में कोरे आश्वासन देने के अवावा कुछ नहीं किया है. इसके लिए उसे न केवल अपनी भूल सुधारनी होगी बल्कि ऐसे क़दम उठाने होंगे जिससे देश का विश्वास फिर क़ायम हो सके."
'नवभारत टाइम्स' अपनी टिप्पणी में सवाल उठाया है, "क्या प्रशासन का दमनकारी रवैया ज़रुरी है? सरकार अगर अन्ना को अनशन कर लेने देती तो शायद तनाव इतना न बढ़ता. लेकिन अब इस क़दम से आंदोलन को और बल मिलेगा और उनको जनसमर्थन बढ़ेगा यह सरकार के बौद्धिक दिवालिएपन का सूचक है."
उसने विपक्षी दलों के रवैए पर भी निशाना साधा है और कहा है कि 'विपक्ष चाहता है कि जब चाहे अन्ना पर बोले और जब चाहे चुप रहे.'
'नवभारत टाइम्स'की संपादकीय में लिखा गया है, "ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो क्या ये संभव है कि संसदीय व्यवस्था को दरकिनार कर अन्ना की मर्ज़ी का लोकपाल विधेयक पास करा लिया जाए? रास्ता तो इसी प्रजातांत्रिक ढाँचे से निकालना होगा."
'दैनिक भास्कर' ने पहले पन्ने पर विशेष टिप्पणी की है जिसमें कहा गया है कि सरकार को जनता के सामने झुकने की आदत डाल लेनी चाहिए.
Delhi Police : Anna Hazare: अन्ना और सोशल मीडिया
अन्ना हज़ारे के आंदोलन में लोगों को एकजुट करने की दिशा में सोशल मीडिया ख़ासकर फेसबुक और ट्विटर का खासा इस्तेमाल हो रहा है.
अन्ना की रिहाई को लेकर बनी अनिश्चितता में लोग फेसबुक और टि्वटर के ज़रिए ही जानकारियां जुटा रहे हैं.
लोग इन माध्यमों पर न केवल सरकार के प्रति अपने गुस्से का इज़हार कर रहे हैं बल्कि लोकपाल और जनलोकपाल पर भी अच्छी ख़ासी बहस कर रहे हैं.
फेसबुक पर भ्रष्टाचार विरोधी लोगों ने सरकार को ही निशाने पर लिया है और मंत्रियों तक की आलोचना की है. उधर ट्विटर के ज़रिए अमरीका और ब्रिटेन में रह रहे लोग भी अपनी बात पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे हैं.
ट्विटर एक बार फिर प्रदर्शनकारियों और अन्ना समर्थकों का प्रिय हो गया है.
16 और 17 अगस्त को दुनिया भर में जितने ट्विट किए गए हैं उसमें अन्ना का विषय आठवें नंबर पर रहा.
ट्विटों में न केवल अन्ना के समर्थन में एकजुट होने की अपील की गई है बल्कि प्रधानमंत्री को भी निशाने पर लिया गया है.
कई स्थानों पर छात्रों ने ट्विट कर के अपने साथियों से कॉलेजों का बहिष्कार करने की अपील की है तो कहीं कहीं फिल्म स्टारों ने ट्विट कर के लोगों से विरोध जताने की अपील की है.
फेसबुक पर एक पन्ना भी बना है इंडिया एगेनस्ट करप्शन जिसके ज़रिए लोगों को एकजुट किया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि मिस्र के तहरीर चौक पर हुए प्रदर्शनों में फेसबुक ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि मिस्र में टीवी चैनलों पर प्रतिबंध था जबकि भारत में ऐसा नहीं है.
फेसबुक पर भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए अन्ना का समर्थन करें नाम से भी एक पन्ना है जिसे लाखों लोगों ने लाइक किया है.
अन्ना के समर्थकों ने यूट्यूब का भी इस्तेमाल किया है. वीडियो शेयर करने वाली इस वेबसाइट के ज़रिए अन्ना हज़ारे के नाम पर करीब 500 वीडियो देखे जा सकते हैं जो विभिन्न टीवी चैनलों से लिए गए हैं.
अन्ना की रिहाई को लेकर बनी अनिश्चितता में लोग फेसबुक और टि्वटर के ज़रिए ही जानकारियां जुटा रहे हैं.
लोग इन माध्यमों पर न केवल सरकार के प्रति अपने गुस्से का इज़हार कर रहे हैं बल्कि लोकपाल और जनलोकपाल पर भी अच्छी ख़ासी बहस कर रहे हैं.
फेसबुक पर भ्रष्टाचार विरोधी लोगों ने सरकार को ही निशाने पर लिया है और मंत्रियों तक की आलोचना की है. उधर ट्विटर के ज़रिए अमरीका और ब्रिटेन में रह रहे लोग भी अपनी बात पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे हैं.
ट्विटर एक बार फिर प्रदर्शनकारियों और अन्ना समर्थकों का प्रिय हो गया है.
16 और 17 अगस्त को दुनिया भर में जितने ट्विट किए गए हैं उसमें अन्ना का विषय आठवें नंबर पर रहा.
ट्विटों में न केवल अन्ना के समर्थन में एकजुट होने की अपील की गई है बल्कि प्रधानमंत्री को भी निशाने पर लिया गया है.
कई स्थानों पर छात्रों ने ट्विट कर के अपने साथियों से कॉलेजों का बहिष्कार करने की अपील की है तो कहीं कहीं फिल्म स्टारों ने ट्विट कर के लोगों से विरोध जताने की अपील की है.
फेसबुक पर एक पन्ना भी बना है इंडिया एगेनस्ट करप्शन जिसके ज़रिए लोगों को एकजुट किया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि मिस्र के तहरीर चौक पर हुए प्रदर्शनों में फेसबुक ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि मिस्र में टीवी चैनलों पर प्रतिबंध था जबकि भारत में ऐसा नहीं है.
फेसबुक पर भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए अन्ना का समर्थन करें नाम से भी एक पन्ना है जिसे लाखों लोगों ने लाइक किया है.
अन्ना के समर्थकों ने यूट्यूब का भी इस्तेमाल किया है. वीडियो शेयर करने वाली इस वेबसाइट के ज़रिए अन्ना हज़ारे के नाम पर करीब 500 वीडियो देखे जा सकते हैं जो विभिन्न टीवी चैनलों से लिए गए हैं.
Delhi Police : Anna Hazare & Congress: BBC Hindi : वर्तमान तनावपूर्ण, भविष्य अनिश्चित
अन्ना हजारे और कांग्रेस -
वर्तमान तनावपूर्ण, भविष्य अनिश्चित
भारत में अगला आम चुनाव होने में अभी तीन साल बाक़ी हैं लेकिन राजनीतिक पंडित अभी से इसका आकलन करने लगे हैं कि मौजूदा यूपीए सरकार का 2014 के चुनावों में क्या होगा.
राष्ट्रमंडल खेलों में ठीका दिए जाने में हुए घोटालों से लेकर स्पेक्ट्रम आबंटन में हुए घोटाले तक अनेक घोटालों से घिरी मनमोहन सरकार के लिए 2009 में सत्ता में दोबारा आने के बाद से शायद कुछ भी सही नहीं हो रहा है.
और इन सबके बाद अब अन्ना हज़ारे का मसला.
चौहत्तर साल के गांधीवादी समाजसेवक शायद मौजूदा केंद्र सरकार के लिए ज़्यादा बड़ी समस्या बन गए हैं.
मंगलवार को अन्ना हज़ारे को अनशन की इजाज़त नहीं दिए जाने के सरकार की समझ से परे फ़ैसले का उलटा असर हुआ है.
शायद ही कोई ऐसा है जो सरकार की इस दलील पर यक़ीन कर रहा है कि अन्ना हज़ारे को गिरफ़्तार करने का फ़ैसला केवल दिल्ली पुलिस का था.
भारत के स्वतंत्रता दिवस के कुछ ही घंटों बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन करने वाले 74 साल के एक बुज़ुर्ग को पहले अपमानित करना फिर उन्हें तिहाड़ जेल में बंद करना जो भ्रष्ट नेताओं, बलात्कारियों और चरमपंथियों का अंतिम शरण स्थल है, वो फ़ैसला मूर्खतापूर्ण था.
समर हरलांकर, हिंदुस्तान टाइम्स के वरिष्ठ संपादक
गुरूवार को हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में वरिष्ठ संपादक समर हरलांकर ने लिखा, ''भारत के स्वतंत्रता दिवस के कुछ ही घंटों बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन करने वाले 74 साल के एक बुज़ुर्ग को पहले अपमानित करना फिर उन्हें तिहाड़ जेल में बंद करना जो भ्रष्ट नेताओं, बलात्कारियों और चरमपंथियों का अंतिम शरण स्थल है, वो फ़ैसला मूर्खतापूर्ण था.''
'बेख़बर'
ऐसा लगता है कि सरकार को ना तो इस बात का एहसास है कि लोगों की नारज़गी किस हद तक है और ना ही उसे अन्ना की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाज़ा है.
बुधवार को संसद में दिए अपने भाषण में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अन्ना हज़ारे पर हमला बोला था. मनमोहन सिंह ने कहा था, "अन्ना हज़ारे ने अपने मसौदे को संसद पर थोपने के लिए जो रास्ता चुना है वो पूरी तरह ग़लत है और हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं."
सुरेश कलमाड़ी
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटाले के लिए सुरेश कलमाड़ी फ़िलहाल जेल में हैं
राजनीतिक विश्लेषक सुकुमार मुरलीधरन ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा, ''मेरा ख़्याल है कि सरकार तेज़ी से अपनी शक्ति खोती जा रही है. प्रधानमंत्री चीज़ों को संभाल पाने में असफल दिख रहें हैं.''
अगले साल भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावों में सरकार की कड़ी परीक्षा होगी.
उत्तर प्रदेश चुनावों में कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी की साख दाव पर लगी हुई है.
अगर कांगेस साल 2012 में होने वाले विधान सभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहती है तो फिर उसे वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले काफ़ी बल मिलेगा.
मेरा ख़्याल है कि सरकार तेज़ी से अपनी शक्ति खोती जा रही है. प्रधानमंत्री चीज़ों को संभाल पाने में असफल दिख रहें हैं.
सुकुमार मुरलीधरन, राजनीतिक विश्लेषक
मुरलीधरन का मानना है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा मनमोहन सिंह सरकार को तंग करता रहेगा. सरकार की मौजूदा समस्या पर टिप्पणी करते हुए मुरलीधरन ने कहा, ''मनमोहन सिंह की उम्र बढ़ती जा रही है , सोनिया गांधी बीमार हैं और देश से बाहर हैं, सरकार के लिए कई जटिल मुद्दे हैं.''
गठबंधन की दिक़्क़तें
मुरलीधरन के अनुसार कांग्रेस की चुनावी परेशानियां और भी बढ़ रही हैं क्योंकि उसके सहयोगी भी ख़राब स्थिति से गुज़र रहें हैं.
अप्रैल 2011 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी डीएमका का लगभग सफ़ाया हो गया था.
भारत में चुनाव गठबंधन के बल पर जीते या हारे जाते हैं.
ए राजा
स्पेक्ट्रम घोटाला के मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा भी जेल में हैं.
लेकिन फ़िलहाल मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी गठबंधन के मामले में कोई बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है.
भाजपा भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है. भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में उसके मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार निरोधक संस्था लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
लेकिन इसमे कोई शक नहीं कि लोगों की धारणा बनती जा रही है कि मौजूदा केंद्र सरकार भ्रष्टाचार से नहीं लड़ना चाहती है और इसके नतीजे में सरकार की लोकप्रियता लगातार घटती जा रही है.
अन्ना हज़ारे को निशाना बनाने के बाद बहुत सारे भारतीयों को विश्वास होने लगा है कि जो भी देश में फैले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहा है सरकार उसको परेशान कर रही है.
हज़ारे और उनका अभियान मनमोहन सिंह सरकार को तो नहीं गिरा सकता है लेकिन निश्चित तौर पर उन्होंने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
वर्तमान तनावपूर्ण, भविष्य अनिश्चित
भारत में अगला आम चुनाव होने में अभी तीन साल बाक़ी हैं लेकिन राजनीतिक पंडित अभी से इसका आकलन करने लगे हैं कि मौजूदा यूपीए सरकार का 2014 के चुनावों में क्या होगा.
राष्ट्रमंडल खेलों में ठीका दिए जाने में हुए घोटालों से लेकर स्पेक्ट्रम आबंटन में हुए घोटाले तक अनेक घोटालों से घिरी मनमोहन सरकार के लिए 2009 में सत्ता में दोबारा आने के बाद से शायद कुछ भी सही नहीं हो रहा है.
और इन सबके बाद अब अन्ना हज़ारे का मसला.
चौहत्तर साल के गांधीवादी समाजसेवक शायद मौजूदा केंद्र सरकार के लिए ज़्यादा बड़ी समस्या बन गए हैं.
मंगलवार को अन्ना हज़ारे को अनशन की इजाज़त नहीं दिए जाने के सरकार की समझ से परे फ़ैसले का उलटा असर हुआ है.
शायद ही कोई ऐसा है जो सरकार की इस दलील पर यक़ीन कर रहा है कि अन्ना हज़ारे को गिरफ़्तार करने का फ़ैसला केवल दिल्ली पुलिस का था.
भारत के स्वतंत्रता दिवस के कुछ ही घंटों बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन करने वाले 74 साल के एक बुज़ुर्ग को पहले अपमानित करना फिर उन्हें तिहाड़ जेल में बंद करना जो भ्रष्ट नेताओं, बलात्कारियों और चरमपंथियों का अंतिम शरण स्थल है, वो फ़ैसला मूर्खतापूर्ण था.
समर हरलांकर, हिंदुस्तान टाइम्स के वरिष्ठ संपादक
गुरूवार को हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में वरिष्ठ संपादक समर हरलांकर ने लिखा, ''भारत के स्वतंत्रता दिवस के कुछ ही घंटों बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन करने वाले 74 साल के एक बुज़ुर्ग को पहले अपमानित करना फिर उन्हें तिहाड़ जेल में बंद करना जो भ्रष्ट नेताओं, बलात्कारियों और चरमपंथियों का अंतिम शरण स्थल है, वो फ़ैसला मूर्खतापूर्ण था.''
'बेख़बर'
ऐसा लगता है कि सरकार को ना तो इस बात का एहसास है कि लोगों की नारज़गी किस हद तक है और ना ही उसे अन्ना की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाज़ा है.
बुधवार को संसद में दिए अपने भाषण में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अन्ना हज़ारे पर हमला बोला था. मनमोहन सिंह ने कहा था, "अन्ना हज़ारे ने अपने मसौदे को संसद पर थोपने के लिए जो रास्ता चुना है वो पूरी तरह ग़लत है और हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं."
सुरेश कलमाड़ी
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटाले के लिए सुरेश कलमाड़ी फ़िलहाल जेल में हैं
राजनीतिक विश्लेषक सुकुमार मुरलीधरन ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा, ''मेरा ख़्याल है कि सरकार तेज़ी से अपनी शक्ति खोती जा रही है. प्रधानमंत्री चीज़ों को संभाल पाने में असफल दिख रहें हैं.''
अगले साल भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावों में सरकार की कड़ी परीक्षा होगी.
उत्तर प्रदेश चुनावों में कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी की साख दाव पर लगी हुई है.
अगर कांगेस साल 2012 में होने वाले विधान सभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहती है तो फिर उसे वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले काफ़ी बल मिलेगा.
मेरा ख़्याल है कि सरकार तेज़ी से अपनी शक्ति खोती जा रही है. प्रधानमंत्री चीज़ों को संभाल पाने में असफल दिख रहें हैं.
सुकुमार मुरलीधरन, राजनीतिक विश्लेषक
मुरलीधरन का मानना है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा मनमोहन सिंह सरकार को तंग करता रहेगा. सरकार की मौजूदा समस्या पर टिप्पणी करते हुए मुरलीधरन ने कहा, ''मनमोहन सिंह की उम्र बढ़ती जा रही है , सोनिया गांधी बीमार हैं और देश से बाहर हैं, सरकार के लिए कई जटिल मुद्दे हैं.''
गठबंधन की दिक़्क़तें
मुरलीधरन के अनुसार कांग्रेस की चुनावी परेशानियां और भी बढ़ रही हैं क्योंकि उसके सहयोगी भी ख़राब स्थिति से गुज़र रहें हैं.
अप्रैल 2011 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी डीएमका का लगभग सफ़ाया हो गया था.
भारत में चुनाव गठबंधन के बल पर जीते या हारे जाते हैं.
ए राजा
स्पेक्ट्रम घोटाला के मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा भी जेल में हैं.
लेकिन फ़िलहाल मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी गठबंधन के मामले में कोई बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है.
भाजपा भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है. भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में उसके मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार निरोधक संस्था लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
लेकिन इसमे कोई शक नहीं कि लोगों की धारणा बनती जा रही है कि मौजूदा केंद्र सरकार भ्रष्टाचार से नहीं लड़ना चाहती है और इसके नतीजे में सरकार की लोकप्रियता लगातार घटती जा रही है.
अन्ना हज़ारे को निशाना बनाने के बाद बहुत सारे भारतीयों को विश्वास होने लगा है कि जो भी देश में फैले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहा है सरकार उसको परेशान कर रही है.
हज़ारे और उनका अभियान मनमोहन सिंह सरकार को तो नहीं गिरा सकता है लेकिन निश्चित तौर पर उन्होंने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
Delhi Police : Anna Hazare: क्या करें सिब्बल साब...जो होना था वह तो हो ही गया
नई दिल्ली. रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन की अनुमति से सबसे ज्यादा परेशान केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल हैं। उनकी हालत आसमान से गिरे खजूर पर अटके जैसी हो गई है। दरअसल रामलीला मैदान सिब्बल के निर्वाचन क्षेत्र में आता है। सिब्बल चाहते थे कि रामलीला मैदान को अनशन स्थल न बनाया जाए।
इसीलिए सरकार की ओर से शुरुआती स्तर पर जो विकल्प में भी रामलीला मैदान के विकल्प को ऊपर नहीं रखा गया। पर, सरकार के रणनीतिकारों को उसी स्थान का चुनाव करना पड़ा जहां उन्हें रामदेव को हटाने के लिए आधी रात को बलप्रयोग करना पड़ा था।
सिब्बल के नजदीकियों का मानना है कि अगर अनशन शांतिपूर्वक खत्म होता है तो ठीक। अगर किसी तरह की गड़बड़ होती है तो उसका सबसे ज्यादा असर उनके निर्वाचन क्षेत्र पर ही पड़ेगा। पिछले कुछ दिनों से सिब्बल के इलाके में जनलोकपाल की अवधारणा के खिलाफ लोगों को लामबंद करने की कोशिश भी हो रही है।
लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सेमिनार व अन्य कार्यक्रमों में खुद सिब्बल शिरकत कर रहे हैं। दरअसल अन्ना के जनलोकपाल पर आग्रह के खिलाफ सरकार में सबसे ज्यादा मुखर मंत्रियों में सिब्बल रहे हैं। इसके चलते अन्ना टीम के निशाने पर वे सबसे प्रमुख तौर पर रहे हैं।
अन्ना टीम ने जनलोकपाल पर सर्वे के लिए सबसे पहले चांदनी चौक को चुना। जिसमें दावा किया गया कि करीब 85 फीसदी लोग अन्ना के साथ हैं। हालांकि सिब्बल ने इस सर्वे को मजाक में टाल दिया था। सिब्बल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की। माना जा रहा है कि उन्होंने अपनी चिंताओं को प्रधानमंत्री के साथ साझा किया है।
इसीलिए सरकार की ओर से शुरुआती स्तर पर जो विकल्प में भी रामलीला मैदान के विकल्प को ऊपर नहीं रखा गया। पर, सरकार के रणनीतिकारों को उसी स्थान का चुनाव करना पड़ा जहां उन्हें रामदेव को हटाने के लिए आधी रात को बलप्रयोग करना पड़ा था।
सिब्बल के नजदीकियों का मानना है कि अगर अनशन शांतिपूर्वक खत्म होता है तो ठीक। अगर किसी तरह की गड़बड़ होती है तो उसका सबसे ज्यादा असर उनके निर्वाचन क्षेत्र पर ही पड़ेगा। पिछले कुछ दिनों से सिब्बल के इलाके में जनलोकपाल की अवधारणा के खिलाफ लोगों को लामबंद करने की कोशिश भी हो रही है।
लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सेमिनार व अन्य कार्यक्रमों में खुद सिब्बल शिरकत कर रहे हैं। दरअसल अन्ना के जनलोकपाल पर आग्रह के खिलाफ सरकार में सबसे ज्यादा मुखर मंत्रियों में सिब्बल रहे हैं। इसके चलते अन्ना टीम के निशाने पर वे सबसे प्रमुख तौर पर रहे हैं।
अन्ना टीम ने जनलोकपाल पर सर्वे के लिए सबसे पहले चांदनी चौक को चुना। जिसमें दावा किया गया कि करीब 85 फीसदी लोग अन्ना के साथ हैं। हालांकि सिब्बल ने इस सर्वे को मजाक में टाल दिया था। सिब्बल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की। माना जा रहा है कि उन्होंने अपनी चिंताओं को प्रधानमंत्री के साथ साझा किया है।
Delhi Police : Anna Hazare: माफ कीजिए लालू जी...हमारे गांधी, जेपी तो अन्ना ही हैं
नई दिल्ली. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलनों और जयप्रकाश नारायण के ऐतिहासिक आंदोलन को हमें अपनी आंखों से देखने और समझने का मौका तो नहीं मिला लेकिन बुधवार को तिहाड़ जेल और इंडिया गेट पर जो नजारा मैंने अपनी आंखों से देखा वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हर हिन्दुस्तानी के दिल में जो उम्मीद की 'लौ' जलाई है उसके प्रज्ज्वलित होने का आभास कम से कम मुझे तो इंडिया गेट और तिहाड़ जेल का नजारा देखने के बाद तो हो ही गया।
लोकतंत्र के इस उत्सव में बच्चे, बूढ़े, नौजवान, छात्र-छात्राएं सभी जोश से भरे हुए थे। आलम यह था कि कोई यह नहीं देख रहा था कि दूसरा क्या कर रहा है, चार-पांच के समूह में लोग अपनी ही धुन में देशभक्ति के तराने गा रहे थे। जेल के बाहर मंगलवार रात से ही कुछ लोग जमीन पर बैठे थे तो कुछ थककर सो गए थे, लेकिन पास में ही एक जगह पिघली हुई मोमबत्तियों का मोम पड़ा था जो रात की कहानी बयां कर रहा था।
तिहाड़ जेल के बाहर लोगों का हुजूम देखने लायक था, लोगों के हांथों में तिरंगा था और वे लगातार 'भ्रष्टाचार बंद करो' और 'वंदेमात्रम' के नारे लगा रहे थे। एक बैनर पर तो लिखा था.'जो अन्ना नहीं वो गन्ना है।'
लोगों ने कहा कि यह जोश महज दो-चार दिनों का नहीं है और जब तक अन्ना हजारे के साथ हर भारतीय का मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक उनके साथ हम यह लड़ाई लड़ते रहेंगे। इसमें ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक थी जो दफ्तर से अवकाश लेकर या घर का काम-धंधा छोड़कर अन्ना हजारे की इस मुहिम में शामिल होने आए थे।
तिहाड़ जेल के बाहर एक महिला से मुलाकात हुई जो घर से खाना और पानी लाई थी और उसे लोगों में बांट रही थी। इस महिला ने कहा, "लोगों को खाना दे रही हूं कुछ लोग खाने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि जब तक अन्ना हजारे भूखे हैं तब तक हम कैसे खा सकते हैं।"
तिहाड़ के बाहर महात्मा गांधी की वेशभूषा में खड़े 21 वर्षीय संजय शर्मा पर सभी की निगाहें थीं। मैं भी अपने को रोक नहीं पाया। बरबस ही उनके पास चला गया। बातचीत करने के लिए। उन्होंने बताया कि वह फोटोग्राफर हैं। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने तिहाड़ जाने की बात की तो परिवार ने उन्हें 'पागल' कहा लेकिन वह किसी की परवाह नहीं करते हुए यहां चले आए।
शर्मा झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं और उन्हें इस बात का दुख है कि उनके जैसे लोगों के लिए देश में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा, "एमएलए आते हैं और वोट मांगकर चले जाते हैं। पिछले साल मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए मैंने 500 रुपये दिए थे।"
यह तो तिहाड़ जेल के बाहर का नजारा था लेकिन शाम चार बजे के करीब इंडिया गेट का नजारा देखकर तो मैं दंग रह गया। इंडिया गेट पर मौजूद लोग सरकार, खासतौर पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से काफी नाराज दिखाई दे रहे थे। कुछ जगहों पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी नारेबाजी हो रही थी।
गुड़गांव से अपने पूरे परिवार के साथ आईं निशा राजदान ने कहा, "लोग यहां अपना घर-बार छोड़कर इसलिए आए हैं क्योंकि लोग भ्रष्टाचार से पक चुके हैं। पानी सर के ऊपर से बह रहा है। यहां हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। हर विभाग में लोग बिके हुए हैं। बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता। चपरासी से लेकर अफसर तक सभी पैसे खाते हैं। इन लोगों ने इतना परेशान कर रखा है कि अब बर्दाश्त की सीमा खत्म हो चुकी है।"
इंडिया गेट और तिहाड़ जेल पर दिन बिताने के बाद मैं शाम को जब घर पहुंचा तो काफी थका हुआ था। मन में काफी सारी बातें चल रहीं थी। एक डर यह भी कि क्या अन्ना हजारे का आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचेगा। तभी अचानक टीवी पर लालू जी प्रकट हो गए। एक समाचार चैनल पर संसद की कार्यवाही की कुछ झलक दिखाई जा रही थी।
लालू जी ने कहा, "मैं अन्ना हजारे की बहुत इज्जत करता हूं। अच्छे आदमी हैं। बापू और जयप्रकाश नारायण की राह पर चल रहे हैं लेकिन मैं आज संसद में कहना चाहता हूं कि देश में बापू, जेपी और आचार्य नरेंद्र देव का स्थान कोई नहीं ले सकता। हां, आप उनकी नकल जरूर कर सकते हैं।"
लालू जी की इस बात में कोई संदेह नहीं कि देश में जो स्थान 'बापू'और 'जेपी' को मिला वह शायद अन्ना हजारे को नहीं मिल सकता लेकिन क्या उन्हें इस बात का एहसास है कि उन्हें अन्ना हजारे की गांधी और जेपी की तुलना को लेकर ऐसी बात कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
क्या लालू जी यह बता सकते हैं कि देश में तमाम राजनीतिक हस्तियों के होने के बावजूद अन्ना हजारे को ही लोग 'देश का दूसरा गांधी' क्यों बता रहे हैं। क्या वह आज किसी एक ऐसे नेता का नाम बता सकते हैं, जिसके कहने पर पूरा देश इस तरह सड़कों पर उतर आए। शायद इसका जवाब लालू जी के पास भी नहीं होगा। आज के नेताओं को आत्मचिंतन और आत्ममंथन करने की आवश्यकता है नहीं तो मेरी तरह शायद देश का हर युवा यही कहेगा.. माफ कीजिए लालू जी हमारे गांधी और जेपी तो अन्ना हजारे ही हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हर हिन्दुस्तानी के दिल में जो उम्मीद की 'लौ' जलाई है उसके प्रज्ज्वलित होने का आभास कम से कम मुझे तो इंडिया गेट और तिहाड़ जेल का नजारा देखने के बाद तो हो ही गया।
लोकतंत्र के इस उत्सव में बच्चे, बूढ़े, नौजवान, छात्र-छात्राएं सभी जोश से भरे हुए थे। आलम यह था कि कोई यह नहीं देख रहा था कि दूसरा क्या कर रहा है, चार-पांच के समूह में लोग अपनी ही धुन में देशभक्ति के तराने गा रहे थे। जेल के बाहर मंगलवार रात से ही कुछ लोग जमीन पर बैठे थे तो कुछ थककर सो गए थे, लेकिन पास में ही एक जगह पिघली हुई मोमबत्तियों का मोम पड़ा था जो रात की कहानी बयां कर रहा था।
तिहाड़ जेल के बाहर लोगों का हुजूम देखने लायक था, लोगों के हांथों में तिरंगा था और वे लगातार 'भ्रष्टाचार बंद करो' और 'वंदेमात्रम' के नारे लगा रहे थे। एक बैनर पर तो लिखा था.'जो अन्ना नहीं वो गन्ना है।'
लोगों ने कहा कि यह जोश महज दो-चार दिनों का नहीं है और जब तक अन्ना हजारे के साथ हर भारतीय का मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक उनके साथ हम यह लड़ाई लड़ते रहेंगे। इसमें ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक थी जो दफ्तर से अवकाश लेकर या घर का काम-धंधा छोड़कर अन्ना हजारे की इस मुहिम में शामिल होने आए थे।
तिहाड़ जेल के बाहर एक महिला से मुलाकात हुई जो घर से खाना और पानी लाई थी और उसे लोगों में बांट रही थी। इस महिला ने कहा, "लोगों को खाना दे रही हूं कुछ लोग खाने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि जब तक अन्ना हजारे भूखे हैं तब तक हम कैसे खा सकते हैं।"
तिहाड़ के बाहर महात्मा गांधी की वेशभूषा में खड़े 21 वर्षीय संजय शर्मा पर सभी की निगाहें थीं। मैं भी अपने को रोक नहीं पाया। बरबस ही उनके पास चला गया। बातचीत करने के लिए। उन्होंने बताया कि वह फोटोग्राफर हैं। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने तिहाड़ जाने की बात की तो परिवार ने उन्हें 'पागल' कहा लेकिन वह किसी की परवाह नहीं करते हुए यहां चले आए।
शर्मा झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं और उन्हें इस बात का दुख है कि उनके जैसे लोगों के लिए देश में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा, "एमएलए आते हैं और वोट मांगकर चले जाते हैं। पिछले साल मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए मैंने 500 रुपये दिए थे।"
यह तो तिहाड़ जेल के बाहर का नजारा था लेकिन शाम चार बजे के करीब इंडिया गेट का नजारा देखकर तो मैं दंग रह गया। इंडिया गेट पर मौजूद लोग सरकार, खासतौर पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से काफी नाराज दिखाई दे रहे थे। कुछ जगहों पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी नारेबाजी हो रही थी।
गुड़गांव से अपने पूरे परिवार के साथ आईं निशा राजदान ने कहा, "लोग यहां अपना घर-बार छोड़कर इसलिए आए हैं क्योंकि लोग भ्रष्टाचार से पक चुके हैं। पानी सर के ऊपर से बह रहा है। यहां हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। हर विभाग में लोग बिके हुए हैं। बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता। चपरासी से लेकर अफसर तक सभी पैसे खाते हैं। इन लोगों ने इतना परेशान कर रखा है कि अब बर्दाश्त की सीमा खत्म हो चुकी है।"
इंडिया गेट और तिहाड़ जेल पर दिन बिताने के बाद मैं शाम को जब घर पहुंचा तो काफी थका हुआ था। मन में काफी सारी बातें चल रहीं थी। एक डर यह भी कि क्या अन्ना हजारे का आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचेगा। तभी अचानक टीवी पर लालू जी प्रकट हो गए। एक समाचार चैनल पर संसद की कार्यवाही की कुछ झलक दिखाई जा रही थी।
लालू जी ने कहा, "मैं अन्ना हजारे की बहुत इज्जत करता हूं। अच्छे आदमी हैं। बापू और जयप्रकाश नारायण की राह पर चल रहे हैं लेकिन मैं आज संसद में कहना चाहता हूं कि देश में बापू, जेपी और आचार्य नरेंद्र देव का स्थान कोई नहीं ले सकता। हां, आप उनकी नकल जरूर कर सकते हैं।"
लालू जी की इस बात में कोई संदेह नहीं कि देश में जो स्थान 'बापू'और 'जेपी' को मिला वह शायद अन्ना हजारे को नहीं मिल सकता लेकिन क्या उन्हें इस बात का एहसास है कि उन्हें अन्ना हजारे की गांधी और जेपी की तुलना को लेकर ऐसी बात कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
क्या लालू जी यह बता सकते हैं कि देश में तमाम राजनीतिक हस्तियों के होने के बावजूद अन्ना हजारे को ही लोग 'देश का दूसरा गांधी' क्यों बता रहे हैं। क्या वह आज किसी एक ऐसे नेता का नाम बता सकते हैं, जिसके कहने पर पूरा देश इस तरह सड़कों पर उतर आए। शायद इसका जवाब लालू जी के पास भी नहीं होगा। आज के नेताओं को आत्मचिंतन और आत्ममंथन करने की आवश्यकता है नहीं तो मेरी तरह शायद देश का हर युवा यही कहेगा.. माफ कीजिए लालू जी हमारे गांधी और जेपी तो अन्ना हजारे ही हैं।
Mumbai Police : Anna Hazare: अन्ना के समर्थन में उतरे मुंबई के डिब्बेवाले,आज खाने कि सप्लाई नहीं करेगें
मुंबई। पूरा देश इस समय अन्ना हजारे के साथ खड़ा दिखायी दे रहा है। मुंबई के डब्बा वाले भी अपने अन्ना भाई के लिए आज दिन भर पर की हड़ताल की घोषणा कर दी है जिसके चलते आज मुंबई में करीब दो लाख से ज्यादा लोग खाना नहीं खा पायेगें। पिछले 120 सालों में ये पहली बार होगा कि डिब्बा वाले हड़ताल पर होंगे। लेकिन मुंबई वासियों का कहना है क उन्हें खुशी है कि वो आज अन्ना के लिए भूखे रहेगें। उन्होंने कहा कि अगर उनके भूखे रहने से देश औऱ देशवासियों का फायदा होता है तो ये उनके सौभाग्य की बात है।
इस बात की जानकारी मुंबई जीवन डिब्बावाला एसोसिएशन के अध्यक्ष ने दी है। पिछले करीब 120 सालों से लगातार डिब्बा वाले मुंबई वासियों को भोजन पहुंचाते हैं। इससे पहले उन्होंने बाबा रामदेव का भी समर्थन भी किया था लेकिन भ्रष्टाचार के चलते हड़ताल पहली बार कर रहे है। डिब्बे वालों का कहना है कि ये सब कुछ उनके ग्राहकों ने ही उनसे कहा है इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं। डिब्बेवाला आज आजाद मैदान में इक्ट्ठा होंगे। उनका कहना है कि हमारे लोग अन्ना के लिए एक दिन भूखे रह सकते हैं।
आपको बता दें कि अन्ना को कल यानी गुरूवार को तीन बजे ही तिहाड़ से बाहर आ जाना था लेकिन रामलीला मैदान तैयार नहीं था। जिसके बाद से अन्ना को कल की रात भी तिहाड़ में बितानी पड़ी। कल शाम को अन्ना ने तिहाड़ से जारी वीडियो संदेश में कहा कि वो पूरी तरह से ठीक है। उन्हें लोगों के जोश और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। अन्ना ने कहा कि उन्हें खुशी है कि देश अब बदलाव चाहता है। अपनी तबियत के बारे में अन्ना ने बोला कि लोगों के जोश को देखकर इतनी ऊर्जा मिल रही है जिसके चलते उनकी तबियत खराब ही नहीं हो सकती है। अन्ना ने कहा कि अगर ये ही हाल रहा तो सरकार को जनलोकपाल बिल हर हालत में लागू करवाना ही होगा।
इस बात की जानकारी मुंबई जीवन डिब्बावाला एसोसिएशन के अध्यक्ष ने दी है। पिछले करीब 120 सालों से लगातार डिब्बा वाले मुंबई वासियों को भोजन पहुंचाते हैं। इससे पहले उन्होंने बाबा रामदेव का भी समर्थन भी किया था लेकिन भ्रष्टाचार के चलते हड़ताल पहली बार कर रहे है। डिब्बे वालों का कहना है कि ये सब कुछ उनके ग्राहकों ने ही उनसे कहा है इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं। डिब्बेवाला आज आजाद मैदान में इक्ट्ठा होंगे। उनका कहना है कि हमारे लोग अन्ना के लिए एक दिन भूखे रह सकते हैं।
आपको बता दें कि अन्ना को कल यानी गुरूवार को तीन बजे ही तिहाड़ से बाहर आ जाना था लेकिन रामलीला मैदान तैयार नहीं था। जिसके बाद से अन्ना को कल की रात भी तिहाड़ में बितानी पड़ी। कल शाम को अन्ना ने तिहाड़ से जारी वीडियो संदेश में कहा कि वो पूरी तरह से ठीक है। उन्हें लोगों के जोश और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। अन्ना ने कहा कि उन्हें खुशी है कि देश अब बदलाव चाहता है। अपनी तबियत के बारे में अन्ना ने बोला कि लोगों के जोश को देखकर इतनी ऊर्जा मिल रही है जिसके चलते उनकी तबियत खराब ही नहीं हो सकती है। अन्ना ने कहा कि अगर ये ही हाल रहा तो सरकार को जनलोकपाल बिल हर हालत में लागू करवाना ही होगा।
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