Friday, August 19, 2011

Delhi Police : Anna Hazare: माफ कीजिए लालू जी...हमारे गांधी, जेपी तो अन्ना ही हैं

नई दिल्ली. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलनों और जयप्रकाश नारायण के ऐतिहासिक आंदोलन को हमें अपनी आंखों से देखने और समझने का मौका तो नहीं मिला लेकिन बुधवार को तिहाड़ जेल और इंडिया गेट पर जो नजारा मैंने अपनी आंखों से देखा वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हर हिन्दुस्तानी के दिल में जो उम्मीद की 'लौ' जलाई है उसके प्रज्ज्वलित होने का आभास कम से कम मुझे तो इंडिया गेट और तिहाड़ जेल का नजारा देखने के बाद तो हो ही गया।

लोकतंत्र के इस उत्सव में बच्चे, बूढ़े, नौजवान, छात्र-छात्राएं सभी जोश से भरे हुए थे। आलम यह था कि कोई यह नहीं देख रहा था कि दूसरा क्या कर रहा है, चार-पांच के समूह में लोग अपनी ही धुन में देशभक्ति के तराने गा रहे थे। जेल के बाहर मंगलवार रात से ही कुछ लोग जमीन पर बैठे थे तो कुछ थककर सो गए थे, लेकिन पास में ही एक जगह पिघली हुई मोमबत्तियों का मोम पड़ा था जो रात की कहानी बयां कर रहा था।

तिहाड़ जेल के बाहर लोगों का हुजूम देखने लायक था, लोगों के हांथों में तिरंगा था और वे लगातार 'भ्रष्टाचार बंद करो' और 'वंदेमात्रम' के नारे लगा रहे थे। एक बैनर पर तो लिखा था.'जो अन्ना नहीं वो गन्ना है।'

लोगों ने कहा कि यह जोश महज दो-चार दिनों का नहीं है और जब तक अन्ना हजारे के साथ हर भारतीय का मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक उनके साथ हम यह लड़ाई लड़ते रहेंगे। इसमें ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक थी जो दफ्तर से अवकाश लेकर या घर का काम-धंधा छोड़कर अन्ना हजारे की इस मुहिम में शामिल होने आए थे।

तिहाड़ जेल के बाहर एक महिला से मुलाकात हुई जो घर से खाना और पानी लाई थी और उसे लोगों में बांट रही थी। इस महिला ने कहा, "लोगों को खाना दे रही हूं कुछ लोग खाने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि जब तक अन्ना हजारे भूखे हैं तब तक हम कैसे खा सकते हैं।"

तिहाड़ के बाहर महात्मा गांधी की वेशभूषा में खड़े 21 वर्षीय संजय शर्मा पर सभी की निगाहें थीं। मैं भी अपने को रोक नहीं पाया। बरबस ही उनके पास चला गया। बातचीत करने के लिए। उन्होंने बताया कि वह फोटोग्राफर हैं। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने तिहाड़ जाने की बात की तो परिवार ने उन्हें 'पागल' कहा लेकिन वह किसी की परवाह नहीं करते हुए यहां चले आए।

शर्मा झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं और उन्हें इस बात का दुख है कि उनके जैसे लोगों के लिए देश में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा, "एमएलए आते हैं और वोट मांगकर चले जाते हैं। पिछले साल मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए मैंने 500 रुपये दिए थे।"

यह तो तिहाड़ जेल के बाहर का नजारा था लेकिन शाम चार बजे के करीब इंडिया गेट का नजारा देखकर तो मैं दंग रह गया। इंडिया गेट पर मौजूद लोग सरकार, खासतौर पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से काफी नाराज दिखाई दे रहे थे। कुछ जगहों पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी नारेबाजी हो रही थी।

गुड़गांव से अपने पूरे परिवार के साथ आईं निशा राजदान ने कहा, "लोग यहां अपना घर-बार छोड़कर इसलिए आए हैं क्योंकि लोग भ्रष्टाचार से पक चुके हैं। पानी सर के ऊपर से बह रहा है। यहां हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। हर विभाग में लोग बिके हुए हैं। बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता। चपरासी से लेकर अफसर तक सभी पैसे खाते हैं। इन लोगों ने इतना परेशान कर रखा है कि अब बर्दाश्त की सीमा खत्म हो चुकी है।"

इंडिया गेट और तिहाड़ जेल पर दिन बिताने के बाद मैं शाम को जब घर पहुंचा तो काफी थका हुआ था। मन में काफी सारी बातें चल रहीं थी। एक डर यह भी कि क्या अन्ना हजारे का आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचेगा। तभी अचानक टीवी पर लालू जी प्रकट हो गए। एक समाचार चैनल पर संसद की कार्यवाही की कुछ झलक दिखाई जा रही थी।

लालू जी ने कहा, "मैं अन्ना हजारे की बहुत इज्जत करता हूं। अच्छे आदमी हैं। बापू और जयप्रकाश नारायण की राह पर चल रहे हैं लेकिन मैं आज संसद में कहना चाहता हूं कि देश में बापू, जेपी और आचार्य नरेंद्र देव का स्थान कोई नहीं ले सकता। हां, आप उनकी नकल जरूर कर सकते हैं।"

लालू जी की इस बात में कोई संदेह नहीं कि देश में जो स्थान 'बापू'और 'जेपी' को मिला वह शायद अन्ना हजारे को नहीं मिल सकता लेकिन क्या उन्हें इस बात का एहसास है कि उन्हें अन्ना हजारे की गांधी और जेपी की तुलना को लेकर ऐसी बात कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

क्या लालू जी यह बता सकते हैं कि देश में तमाम राजनीतिक हस्तियों के होने के बावजूद अन्ना हजारे को ही लोग 'देश का दूसरा गांधी' क्यों बता रहे हैं। क्या वह आज किसी एक ऐसे नेता का नाम बता सकते हैं, जिसके कहने पर पूरा देश इस तरह सड़कों पर उतर आए। शायद इसका जवाब लालू जी के पास भी नहीं होगा। आज के नेताओं को आत्मचिंतन और आत्ममंथन करने की आवश्यकता है नहीं तो मेरी तरह शायद देश का हर युवा यही कहेगा.. माफ कीजिए लालू जी हमारे गांधी और जेपी तो अन्ना हजारे ही हैं।

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