जयपुर. सीबीआई मामलों की अदालत ने शुक्रवार को दारिया एनकाउंटर केस के आरोपी निलंबित एडीजी ए.के. जैन व एएसपी अरशद अली को भगोड़ा घोषित कर दिया। साथ ही दोनों के खिलाफ स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया। गौरतलब है कि दोनों के खिलाफ अदालत ने 17 मई 11 को गिरफ्तारी वारंट जारी कर उन्हें अदालत में तलब किया था, लेकिन दोनों के खिलाफ वारंट की तामील नहीं हो पाई और न ही वे अदालत में पेश हुए।
दारिया मामला: अदालत ने प्रथम दृष्टया फर्जी माना एनकाउंटर: दारिया एनकाउंटर केस में सीबीआई मामलों की अदालत ने शुक्रवार को निलंबित एडीजी अरविन्द कुमार जैन, आईजी ए पोन्नूचामी व एएसपी अरशद अली सहित 16 के खिलाफ प्रसंज्ञान लेते हुए सभी को फर्जी एनकाउंटर का प्रथम दृष्टया दोषी माना है।
इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 120 बी सपठित धारा 302, 364, 346, 201 व 218 के तहत प्रसंज्ञान लिया है। इनमें निसार खान, नरेश शर्मा, राजेश चौधरी, जुल्फिकार, सत्यनारायण गोदारा, बद्रीप्रसाद, सुरेंद्र सिंह, जगराम, सरदार सिंह, मुंशीलाल, अरविन्द भारद्वाज व सुभाष गोदारा व विजय कुमार शामिल हैं। आगामी सुनवाई के लिए जिला व सेशन न्यायालय जयपुर जिला को भेज दिया, जहां 11 जुलाई से सुनवाई होगी।
अपराध ऑफिशियल ड्यूटी में शामिल नहीं: प्रसंज्ञान में कहा कि आरोपियों ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत अभियोजन स्वीकृति नहीं लिए जाने का उल्लेख किया है। लेकिन आरोप पत्र से स्पष्ट है कि आरोपियों की ऑफिशियल ड्यूटी नहीं थी कि वे किसी नागरिक को अपने पद व शक्ति का दुरुपयोग करते हुए आपराधिक षडयंत्र से प्रेरित होकर फर्जी एनकाउंटर में उसकी हत्या कर दें उनका यह कृत्य ऑफिशियल ड्यूटी में नहीं आता।
नाकाबंदी नहीं थी, एसओजी ने फर्जी एनकाउंटर किया: कोर्ट ने कहा कि आरोपियों ने पहले विजय सिंह से रुपए बरामद कर उसे फंसाया और विजय सिंह ने दारिया को शरण दे रखी थी। दिनांक 22 अक्टूबर को विजय सिंह ही दारिया को सांगानेर एयरपोर्ट लाया और उसे एसओजी के सुपुर्द किया। एसओजी ने उसे राघवदास की ढाणी में निरुद्ध रखा और 23 को उसकी हत्या कर दी। जबकि मामले के महत्वपूर्ण गवाह बस ड्राईवर अंबाराम व कंडक्टर रमेश गुप्ता ने अपने बयानों में स्पष्ट किया है कि उस दिन घटना स्थल पर कोई नाकाबंदी नहीं थी और न ही उनके सामने कोई वारदात हुई। इससे स्पष्ट है कि एसओजी ने फर्जी एनकाउंटर किया।
झूठी रिपोर्ट बनाई: एसओजी के अधिकारियों ने झूठी रिपोर्ट बनाकर दारा सिंह के टेलीफोन इंटरसेप्ट किए और गलत सूचना के आधार पर उसे ईनामी घोषित करवाया जिसकी पत्रावली को अरविन्द कुमार जैन ने अपना ट्रांसफर होने के बावजूद भी रोके रखा। यह कृत्य राजनैतिक दवाब में दारासिंह को मारने का था और राजनैतिक प्रभाव का उल्लेख आरोप पत्र में भी है जिसके लिए सीबीआई ने राजेन्द्र राठौड़ के खिलाफ अनुसंधान लंबित रखा है।
मुंशीलाल भी अवैध कृत्य से सहमत था: मुंशीलाल ड्यूटी इंचार्ज था और उस पर 23 अक्टूबर 06 को रोजनामचा में सुबह ढाई बजे एसओजी की टीम को हथियार देने की झूठी एंट्री करने का आरोप है। अनुसंधान में स्पष्ट है कि हथियारों को एसओजी की टीम को देने की एंट्री के दौरान एसओजी की टीम कार्यालय में नहीं थी। ऐसे में स्पष्ट है कि मुंशीलाल भी आरोपियों के अवैध कृत्य से सहमत था। गौरतलब है कि दारिया की पत्नी सुशीला देवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका पेश कर आरोप लगाया था कि उसके पति को एसओजी ने झूठे एनकाउंटर में मारा है और इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए। सीबीआई ने मामले में अनुसंधान कर जैन सहित 16 के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र पेश किया।
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