दुर्घटना को अंजाम दे चालक बस को लेकर फरार हो रहा था, लेकिन ड्यूटी पर तैनात सिपाही ने साहस का परिचय दिया और बस का पीछा किया। इस बहादुर वर्दीधारी ने बस को पकड़ ही लिया था कि बेपरवाह चालक ने गाड़ी सिपाही के ऊपर चढ़ा दी। दिल्ली ट्रेफिक पुलिस के इस हेड कांस्टेबल की उपचार के दौरान मौत हो गई। दुर्घटना और हर्जाना का मामला अदालत में पहुंचा। कोर्ट ने साहसी सिपाही की जांबाजी पर 50 लाख रुपए का मुआवजा उसके परिजनों को दिए जाने के आदेश दिए हैं। तीस हजारी स्थित एमएसीटी जज दिनेश भट्ट की अदालत ने सिपाही के डय़ूटी के प्रति समर्पण की सराहना की है। सिपाही के जज्बे को काबिलेतारीफ मानते हुए अदालत ने कहा है कि यदि वर्दीधारी समय पर उचित कदम नहीं उठाता, तो बेलगाम बस चालक ना जाने कितनी और जिंदगियों को चपेट में ले लेता।
इस हादसे में हेड कांस्टेबल समेत दो लोगों की मौत हो गईथी। जबकि एक सेंट्रो कार चालक को गंभीर चोटें आईं थीं। अदालत ने दुर्घटना में मरने वाले दूसरे व्यक्ति राहुल के परिजनों को 7 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने के निर्देश भी भारती एएक्सए जरनल इंश्योरेंस कंपनी को दिए हैं। जबकि दुर्घटना में घायल पवन को 65 हजार रुपये दिए जाएंगे।
एक साथ तीन वाहनों को मारी थी टक्कर
24 जनवरी 2011 की सुबह पौने 11बजे एक निजी स्कूल की बस ने साइकिल सवार राहुल को कुचल दिया। मुकुदपुर(बुराड़ी) लालबत्ती पर तैनात ट्रेफिक पुलिस के हेड कांस्टेबल वकीलुद्दीन(34) ने बस को रोकने का प्रयास किया। बस की रफ्तार फिर भी नहीं रुकी। तेजी से दौड़ती बस ने एक सेंट्रो कार को पीछे से जबरदस्त टक्कर मारी। जिससे सेंट्रो चालक पवन गंभीर रूप से घायल हो गया। मगर जैसे ही हेड कांस्टेबल मोटरसाइकिल से बस के आगे पहुंचा, बस चालक ने उसे भी कुचल दिया।
अदालती फैसले के अहम पहलु
-34 वर्षीय मृतक ने दिखाई बहादुरी, जान की भी नहीं की परवाह।
-हेड कांस्टेबल का सर्विस रिकार्ड रहा है बेहतरीन।
-मृतक के कंधों पर थी विधवा, तीन नाबालिग बच्चाों और वृद्ध मां के भरण पोषण की जिम्मेदारी।
-मृतक की मासिक आय भी है मुआवजे का महत्वपूर्ण आधार।
-विधवा की पत्नी को नहीं मिली है नौकरी।
13 महीने की तनख्वाह के आधार पर तय हुआ मुआवजा
मृतक वकीलुद्दीन की पत्नी मुंसरीना के अधिवक्ता उपेन्द्र सिंह ने मुआवजा रकम तय करने के लिए अदालत में पुलिस की सर्विस नियमावली पेश की। जिसमें स्पष्ट किया गया था कि एक साल में पुलिसकर्मी को 13 महीने की तनख्वाह दी जाती है। इस बाबत उन्होंने दस्तावेज भी पेश किए। अदालत ने दलील को मानते हुए साल में 12 की बजाय 13 महीने की तनख्वाह को मुआवजे का आधार बनाया है।
मृतक की विधवा को अनपढ़ होने के कारण नहीं मिली नौकरी
पति वकीलुद्दीन की मौत के बाद मुंसरीना के कंधों पर तीन नाबालिग बच्चाों व वृद्ध सास के लालन-पालन की जिम्मेदारी है। मगर मुन्सरीना अनपढ़ है इसलिए विभाग ने उन्हें पति की जगह नौकरी नहीं दी है। बकौल मुंसरीना जनवरी में पति की मौत के बाद घर के आर्थिक हालात बदतर हो गए थे। उन्हें पेंशन भी नहीं मिल रही थी। ऐसे में उन्होंने रिश्तेदारों के माध्यम से पति की जगह नौकरी की मांग महकमे से की। जिसपर उन्हें जवाब मिला कि वे सिर्फ चतुर्थ श्रेणी की नौकरी करने के योग्य हैं। लेकिन पिछले 3/4 साल से चतुर्थ श्रेणी की भर्ती प्रक्रिया बंद है। इसलिए उसे नौकरी पर रखना संभव नहीं है। हालांकि पिछले महीने से उन्हें पेंशन मिलने लगी है।
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