नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : वह समय बीत चुका जब दिल्ली पुलिस की गिनती देश की स्मार्ट पुलिस में होती थी। जैश ए मोहम्मद व लश्कर से लेकर इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठनों की जड़े खोदने वाली स्पेशल सेल कब अर्स से फर्श पर आ गई, किसी को पता नहीं चला। मगर आला अधिकारी इसी गफलत में रहे कि उनसे बढ़कर कोई नहीं। जामा मस्जिद, महरौली और फिर दो बार हाईकोर्ट में विस्फोट के बाद भी आंख नहीं खुली। देशद्रोही गतिविधियां छोड़ जेबकतरे पकड़ने की राह पर चल पड़ी स्पेशल सेल को लेकर कहीं न कहीं गृहमंत्रालय चिंतित है। यही वजह है कि पौने दो साल से साइड लाइन चल रहे एक ऐसे अधिकारी को हाईकोर्ट विस्फोट मामले की जांच में लगाया गया है जिसे न सिर्फ आतंकियों पर नकेल कसने में महारथ हासिल है बल्कि देश के वह पहले ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें बहादुरी के लिए अब तक एक दो नहीं बल्कि आठ गैलेंटरी पुरस्कार मिल चुके हैं। 2008 में हुए श्रंखलाबद्ध बम धमाकों के महज छह दिन के अंदर इंडियन मुजाहिद्दीन का चेहरा बटला हाउस एनकाउंटर से बेनकाब करने वाले यह अधिकारी हैं एसीपी संजीव यादव।
स्पेशल सेल की निष्क्रियता का दौर एकाएक नहीं आया। बल्कि इसकी नींव 2007 में ही पड़ गई थी। तत्कालीन पुलिस आयुक्त वाई एस डडवाल के आउट आफ टर्न प्रमोशन बंद करने के रवैये को भी कुछ लोग इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं। उनका मानना है कि इसका असर पुलिस के मनोबल पर पड़ा। दूसरा, अधिकारियों का शहर में मुठभेड से बचने का नजरिया भी कम दोषी नहीं था। एक समय वह भी था जब स्पेशल सेल की टीम न सिर्फ राजधानी व उसके आसपास के इलाकों में आपरेशन चलाती थी बल्कि कश्मीर तक में जाकर उसने आतंकियों को मार गिराया। मगर आला अधिकारियों की इच्छा शक्ति के आगे धीरे धीरे हालात बिगड़ते चले गए। स्पेशल सेल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा बटला हाउस एनकाउंटर से। मामले के राजनीतिकरण ने स्पेशल सेल को हाशिये पर धकेल दिया। अधिकारी डर गए। मातहतों को पचड़े वाले मामलों से बचने के मौखिक निर्देश मिलने शुरू हो गए। नतीजा दिल्ली पुलिस की बेहतरीन यूनिट निठल्लों की फौज बनकर रह गई।
स्पेशल सेल वर्ष 2010 में हुए जामा मस्जिद गोलीकांड में कुछ कमाल नहीं दिखा पाई। कुछ ऐसा ही हश्र महरौली ब्लास्ट तथा 25 मई को हाईकोर्ट के बाहर बम विस्फोट में हुआ। बुधवार को दूसरी बार आतंकियों ने हाईकोर्ट को निशाना बनाया तब भी उसके पास किसी तरह की कोई सूचना या आगे की रणनीति नहीं थी। दिल्ली पुलिस से लेकर हाईकोर्ट ब्लास्ट की जांच एनआईए को सौंपी गई तब भी स्पेशल सेल अधिकारियों के चेहरों पर कोई तनाव या खास असर नजर नहीं दिखा। सूत्रों की मानें तो दिल्ली पुलिस का यह रवैया गृहमंत्रालय से छिपा नहीं था। लिहाजा आनन फानन में स्पेशल सेल में तैनात रह चुके संजीव यादव को दिल्ली हाईकोर्ट विस्फोट मामले की जांच से जोड़ा गया। जिस प्रकार इस वारदात में इंडियन मुजाहिद्दीन पर शक गहरा रहा है उस लिहाज से संजीव यादव की जांच टीम में तैनाती को काफी अहम माना जा रहा है। वह न सिर्फ इंडियन मुजाहिद्दीन की नस-नस से बाखिव हैं बल्कि हूजी, जैश, लश्कर समेत अन्य आतंकी संगठनों के विषय में भी उन्हें महारथ हासिल है। दिल्ली पुलिस में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस कदम से सहमत है लेकिन कमी निकालने वाले भी कम नहीं।
ज्ञात हो कि संजीव यादव दिसंबर 2004 से नवंबर 2009 तक स्पेशल सेल में एसीपी रहे हैं। इस दौरान वह लश्कर आतंकी अबू हुजेफा, हूजी के गुलाम यजदानी, आइएम के आतिफ व साजिद समेत कई आतंकियों व हेमंत सोनू व दीपक जाट जैसे बदमाशों के 53 एनकाउंटर कर चुके हैं। मुन्ना बजरंगी व बृजेश सिंह जैसे गैंगेस्टर भी उन्हीं की टीम ने पकड़े थे।
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