जबलपुर. एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सिहोरा थाने के प्रभारी अशोक तिवारी के रवैये पर जमकर हैरानी जताई है। जस्टिस केके लाहोटी और जस्टिस सुषमा श्रीवास्तव की युगलपीठ ने टीआई के रवैये को अहंकारी प्रवृत्ति का निरूपित करते हुए इस आदेश की एक प्रति उनकी पर्सनल फाइल में रखने के निर्देश पुलिस महानिदेशक को दिये हैं।
सिहोरा निवासी उमा देवी गुप्ता ने याचिका में कहा है कि उन्होंने अपनी बेटी के विवाह के लिये दस फीसदी ब्याज पर 60 हजार रुपये रामदास साहू और जीपी चतुर्वेदी से लिये थे। रकम अदा करने के बाद भी उसे परेशान किया जा रहा था।
याचिका में आरोप है कि 27 जून 2010 को कुछ लोग आए और वे अपने साथ आवेदक के बेटे सोनू उर्फ संदीप कुमार गुप्ता को अपने साथ ले गए। उसके बाद से सोनू का कोई सुराग न लगने पर यह याचिका दायर की गई। इस मामले पर हाईकोर्ट ने पूर्व में आवेदक के पुत्र को कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिये थे।
मामले पर गत दिवस हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सचिन सोनी, राज्य सरकार की ओर से उपमहाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव, सिहोरा एसडीओपी शशिकांत शर्मा और टीआई अशोक तिवारी हाजिर हुए। पुलिस अधिकारियों ने युगलपीठ को बताया कि उन्हें यह पता चला है कि सोनू गुप्ता का अपहरण नहीं हुआ, अलबत्ता कर्ज में दबा होने के कारण वह घर से गायब है।
सुनवाई के दौरान टीआई अशोक तिवारी ने भी अपना पक्ष युगलपीठ के समक्ष रखा। अपने आदेश में युगलपीठ ने लिखा है कि टीआई काफी अहंकारी ढंग और ऊंची आवाज में पेश आए, जिससे उनका रवैया अहंकारी प्रकृति का लगा।
युगलपीठ ने उन्हें समझाया कि वे एक पुलिस ऑफीसर हैं, जो सरकारी नौकर होते हैं। उनको जो अधिकार दिये गये, वे जनता की सेवा के लिये है, न कि उन पर राज करने के लिये। युगलपीठ ने उन्हें सलाह दी कि भविष्य में वे सीमा में रहें।
इन तमाम बातों को युगलपीठ ने आर्डरशीट में दर्ज करके इसकी एक प्रति डीजीपी को भेजने के निर्देश दिये। इसके साथ ही युगलपीठ ने याचिकाकर्ता के पुत्र को 23 मार्च तक खोजने के निर्देश अनावेदक पुलिस अधिकारियों को दिये।
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